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नौ साल से जारी गृहयुद्ध के कारण बेघर हुए बच्चों की कहानी; ये कैंपों में पैदा हुए, इन्हें नहीं पता कि घर में खिड़की-दरवाजे होते हैं



सीरिया और तुर्की की सीमा पर शरणार्थी लोगों के लिए एतेमे कैंप है। यहां कई परिवारों ने शरण ले रखी है। 2011 से शुरू हुए युद्ध ने उनकी जिंदगी तबाह कर दी है। इसी कैंप में इन परिवारों के कई बच्चों ने जन्म लिया। शरणार्थीठप्पेये बच्चे जमीन पर आए। इन्होंने जीवन कभी अपना घर नहीं देखा, शांति नहीं देखी। जन्म से ही कैंपों में रहने वाले ये बच्चे घर का मतलब तक नहीं जानते हैं। इन्हें ये भी नहीं पता कि घर में खिड़की औरदरवाजे भी होतेहैं।

एतेमे कैंप में चार महीने का बच्चा अब्दुल रहमान। अब्दुल के माता-पिता इदलिब प्रांत के गांव के रहने वाले हैं। वे इस कैंप में सालों से रह रहे हैं।
नौ साल की रानिम बरकत को उसी साल बेघर होना पड़ा, जिस साल उसका जन्म हुआ। रानिम को घर के नाम पर बस कैंप की यादें हैं।
तीन साल के मुहम्मद अल-बासा का जन्म भी इसी कैंप में हुआ।
मायसा महमूद अभी पांच साल की है। उसके माता-पिता भी सीरिया के इदलिब प्रांत से हैं। मायसा कहती है कि कैंप में उसके खिलौने सुरक्षित नहीं रह पाते।
पांच साल की मरियम अल-मुहम्मद के परिजनों ने बताया कि सीरिया के हॉम्स शहर में उनका अच्छा घर था, लेकिन हालात खराब हुए तो मजबूरी में उन्हें यहां रहना पड़ रहा है।
जुमाना और फरहान अल-अल्यावी दोनों जुड़वां भाई बहन हैं। इनके माता-पिता भी पूर्वी इदलिब से आते हैं।
सीरिया में सबसे ज्यादा प्रभावित शहर इदलिब और अलेप्पो हैं। दो साल के वालिद अल-खलीद के परिजन अलेप्पो के रहने वाले हैं। वालिद का जन्म दो साल पहले कैंप में ही हुआ था।
सात साल के मोहम्मद अबदल्लाह के परिजन इदलिब के गांव जबल अल-जवैया के रहने वाले हैं। अबदल्लाह शरणार्थी कैंप में बाद में आया। वो कहता है कि घर की थोड़ी-थोड़ी याद है। हमारा घर कुछ पुराना था।

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एतेमे कैंप में 6 साल की रवन अल-अजीज। घर क्या होता है, इस सवाल पर उसने कहा- जहां पर दोस्त और परिवार रहते हैं। इसमें आग लग जाती है और यह हवा में उड़ जाता है।

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Originally published on www.bhaskar.com

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