
नई दिल्ली (26 फरवरी 2020)- 5 ट्रिलियन की इकॉनॉमी का सपना देखने, बेरज़ोगारी और महिला सुरक्षा जैसे सवालों में उलझने वाले देश की राजधानी पिछले तीन दिन से धधक रही है। लेकिन इस सबके बीच एक बड़ा सवाल और उठने लगा है कि आख़िर किसने जलाई दिल्ली? विदेशी अल्पसंख्यकों से प्रेम और अपने अल्पसंख्यकों में डर पैदा करने वाली सोच ने, सड़क पर उतर कर सीएए का विरोध कर रहीं उन महिलाओं ने जिनको अभी तक बुर्का और पर्दे का कैदी कहा जाता रहा है या फिर कथित तौर पर पाकिस्तान ज़िंदाबाद के नारे लगाने वाली कुंजा कपूर ने, पुलिस की मौजूदगी में जामिया व शाहीनबाग़ क्षेत्र गोली चलाने वाले कपिल और गोपाल ने, उनको हथियार देने वाले बाउंसरों ने, गोली चलाने तक ख़ामोश खड़े रही दिल्ली पुलिस ने, शर्जील इमाम ने, गोली मारो सालों को नारा देने वाले बीजेपी मंत्री अनुराग ठाकुर ने या फिर दिल्ली की शांति के ताबूत में आख़री कील ठोकने वाले कपिल मिश्रा ने।
ये तमाम सवाल उठने की एक वजह जामिया कॉर्डिनेशन कमेटी की तरफ से जारी की गई एक प्रेस रिलीज है। जिसमे कहा गया है कि सोमवार को दिल्ली के हालात पर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की नाकामी और उनसे कोई ठोस कार्रवाई करने की मांग करने गये 41 छात्रों और जामिया अलूम्नी को दिल्ली पुलिस ने सिविल लाइन थाने में हिरासत में ले लिया है। जामिया कॉर्डिनेशन कमेटी का आरोप है कि पहले ही लिखित में सुचित करके दिल्ली के मुख्यमंत्री के घर पहुंचे छात्रों के डेलीगेशन के साथ दिल्ली पुलिस ने न सिर्फ मारपीट की है बल्कि उनको अपराधियों की तरह ट्रीट किया है। इस बारे में दिल्ली पुलिस की तरफ से फिलहाल न तो कोई स्पष्टीकरण ही दिया गया है न ही अधिकारिक तौर पर इस बारे में दिल्ली पुलिस से कोई बात भी नहीं हो पा रही है।
इसके अलावा रविवार रात को दिल्ली पुलिस द्वारा जिन छात्रों को दिल्ली के हालात पर वार्ता के लिए बुलाया गया था, उनके साथ तुगलग रोड थाने के बाहर न सिर्फ धक्का-मुक्की और मारपीट की गई, बल्कि जबरन डिटेन करके पुलिस के ट्रक में ठूंस कर निजामुद्दीन थाने ले जाया गया । इतना ही नहीं वहां मौजूद मीडिया कर्मियों तक को जबरन ट्रक में बैठा कर थाने लाया गया। इस दौरान जब पुलिस वालों को अपना आई कार्ड और वॉलेट दिखाया तो उन्होने छीन कर अपने पास रख लिया जो कि अभी तक भी वापस नहीं मिला है। जब छात्रो व ख़ुद मेरे द्वारा इस बारे में ज्वाइंट सीपी श्रीवास्तव और डीसीपी मीणा जी को अवगत कराया तो उन्होने उसके लिए अपना बड़प्पन औऱ इंसानियत दिखाते हुए बाकायदा अफसोस और रिगरेट का इज़हार किया। लेकिन सवाल ऊपर के अफसरों की माफी का नहीं बल्कि उस हिदायत का है, जो ऊपर से ही नीचे के पुलिस कर्मियों को दी गईं हैं। जिसके बाद पुलिस पर कथिततौर पर एक खास सोच का टूल बनकर काम करने के आरोप लगने लगे हैं।
दरअसल पिछले लगभग ढाई महीने से दिल्ली समेत देशभर में लाखों लोग संविधान में प्रदत्त अधिकारों के तहत सीएए को लेकर सरकार को जगाने के लिए प्रदर्शन कर रहे हैं। लेकिन उत्तर प्रदेश से लेकर दिल्ली और देशभर में पुलिस पर सरकार का टूल बन कर काम करने का आरोप सामने आ रहे हैं। एक समुदाय के एक पढ़े लिखे नौजवान को उसके कथित भड़काऊ बयान पर गिरफ्तारी से लेकर पुलिस रिमांड तक लेनी वाली पुलिस अभी तक ये नहीं पता लगा पा रही है कि सरेआम गोली चलाने वाले कपिल और गोपाल को घातक हथियारों की खेप किसने दी और इनके अलावा इन लोगों ने किन किन अपराधिक तत्वो को हथियार सप्लाई किये हैं। साथ ही इस पूरे घिनौने कृत्य में कौन कौन लोग शामिल हैं। होते होते हालात ये बने कि दिल्ली पुलिस के हैडकांस्टेबल रतन लाल अपने डीसीपी को बचाने में शहीद हो गये। जबकि डीसीपी ख़ुद घायल अस्पताल में हैं और दर्जनों लोग मौत की आगोश में सो गये है।
इस सब पर चर्चा से पहले बात दिल्ली के बीजेपी नेता कपिल मिश्रा की, जिन्होने शर्जील इमाम और अनुराग ठाकुर जैसों से भी आगे बढ़ कर अपने भड़काऊ बयानों से दिल्ली को हिंसा की आग में झोंक दिया। हो सकता है कि कपिल मिश्रा पर कार्रवाई के लिए शायद दिल्ली पुलिस सही समय का इंतजार कर रही हो। लेकिन मुख्यमंत्री से मिलने गये छात्रों को हिरासत में लेने जैसी किसी भी कार्रवाई पर स्पष्टीकरण से बचना भी लोगों में सवाल खड़े कर रहा है। ऐसे में दिल्ली पुलिस अपनी साख को बचाने के लिए कथित तौर पर टूल बनने के आरोपों से बाहर निकले और इंसाफ की लाज रखते हुए बिना भेदभाव के काम करे?