नई दिल्ली (27 नवंबर 2019)- कल यानि गुरुवार को शिव सेना के संस्थापक बाला साहेब ठकारे के परिवार से पहली बार कोई शख़्स सीएम की गद्दी कर पंहुच कर सूबे की शीर्ष सियासत पर बैठेगा। क्योंकि अभी तक बाला साहेब ठाकरे और उनके परिवार के बारे में किंगमेकर या रिमोट थामने वाले नामों की ही चर्चा रही है। महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव 2019 के शुरु में ही उद्धव ठाकरे ने बातों बातों में संकेत दिेये थे कि इस बार कुर्सी चाहिए। बहरहाल कुछ ही देर बाद उद्धव ठाकरे महाराष्ट्र की गद्दी पर होंगे। इससे पहले क्या हुआ, किस तरह देवेंद्र फड़णवीस कुछ घंटे के दोबारा सीएम बने और किस तरह अजित पवार अपने चाचा से भागते भागते उन्ही की गोद में जा बैठे और कुछ घंटो के उप मुख्यमंत्री के तौर पर उनका नाम भी दर्ज हो गया।
लेकिन इस सबसे अलग थोड़ा पीछे चलकर देखते हैं कि आख़िर शरद पवार ने इस पूरे गेम में किस तरह से साबित किया कि शेर कभी बूढ़ा नहीं होता।
दरअसल कुछ ही दिन पहले शरद पवार के खिलाफ कथिततौर पर केंद्र के इशारे पर कुछ जांच ऐजेंसियों की कार्रवाई की चर्चा जैसे ही गर्म हुई तो महाराष्ट्र की सियासत के दिग्गज शरद पवार ने बैकफुट के बजाए फ्रंटफुट पर खेलते हुए ख़ुद ही जांच ऐजेंसियों के दफ्तर जाने का ऐलान कर दिया। साथ ही एनसीपी के कार्यकर्ताओं को सड़क पर उतरने का भी इशारा कर दिया। कुछ ही दिन पहले की इस घटना के बाद मुंबई की स़ड़को पर सियासत के उतरने और शरद पवार के तेवर से पूरी सरकार और प्रशासन मानों हिल ही गया था। हालात ये बने थे कि मुबंई पुलिस कमिश्नर ने बाक़ायद शरद पवार को पूछताछ जैसे किसी कथित मामले के लिए किसी भी जांच ऐजेंसी के कार्यालय न जाने का अनुरोध किया था। शरद पवार को जानने वाले लोग उनके तेवरों को भी जानते हैं। सोनिया गांधी के विदेशी मूल को लेकर भले ही बाहर से विरोध की राजनीति होती रही हो। लेकिन शरद पवार ने कांग्रेस में रहते हुए ही सोनिया के ख़िलाफ न सिर्फ बिगुल बजाया था बल्कि कांग्रेस के दो टुकड़े करके एनसीपी खड़ी कर दी थी।
तो क्या उन्ही शरद पवार के तेवर और राजनीतिक सूझबूझ के ट्रैप मे बीजेपी जा उलझी या फिर कर्नाटक और गोवा जैसी मलाई को आसानी से गटकने की जल्दी में मुंह जला बैठी। वैसे भी बीजेपी हाइकमान ने देवेंद्र फड़णवीस को जितना मज़बूत और पैंतरेबाज़ माना था शायद वो भी उसकी भूल थी।
वैसे भी बीजेपी का किसी भी प्रदेश में अपना बेस कैडर इतना मज़बूत नहीं है जितना कि उसने वहां के स्थामनीय दलों के दम पर खड़ा कर लिया है। चाहे बात बिहार की हो या झारखंड की या फिर कहीं और की ।
लेकिन महाराष्ट्र की सत्ता की घमासान में सबसे ख़ास सवाल तो अभी बाक़ी ही है। दरअसल शरद पवार ने जांच ऐजेंसियों की जांच के नाम पर होने वाली कार्रवाई के बाद अपने तेवरों से साफ कर दिया था कि वो मराठी मानुष हैं और गुजराती जोड़ी के बस मे आसानी से आने वाले नहीं। और शायद पीएम मोदी भी भांप चुके थे कि यहां आसानी से दाल गलने वाली नहीं है, तभी तो संसद की शीतकालीन सत्र के शुरु में ही पीएम नरेंद्र मोदी ने बाक़ायदा एनसीपी और शरद पवार का नाम लेकर उनकी पार्टी की तारीफ की थी। हांलाकि तारीफ तो बीजद की भी की गई थी। लेकिन शरद पवार को लेकर उनका रुख बहुत कुछ बदलाव के संकेत दे रहा था।
अब आते हैं असल सवाल पर। तो क्या शरद पवार ने फिल्म दीवार की तरह अपने पंटर को विरोधी ख़ेमें में भेजकर वहां की गतिविधि और अपने ऊपर लगे दाग़ कथित तौर पर लॉंड्री में धुलवा लिये हैं। वैसे भी अजित पवार के उप मुंख्यमंत्री बनते ही भले ही एसीबी यानि एंटिकरप्शन ब्यूरो ने उनको हज़ारों करोड़ रुपए के घोटालों के सभी मामलों में क्लीनचिट दिये जाने से इंकार किया हो। लेकिन क्या बीजेपी के साथ जाकर प्यार की पींगे बढ़ाकर बीजेपी के सरकार में भले ही चंद घंटे ही सही लेकिन उप मुख्यमंत्री रहने वाले किसी भी शख़्स के ख़िलाफ अब बीजेपी खुलकर कोई कार्रवाई कर पाएगी। यानि अजित पवार विरोधी के ख़ेमे में भेजे भी गये और वापस निकाल भी लिए गये। हो सकता है कि ये कोई फिल्मी पटकथा लग रही हो लेकिन माया नगरी की दिनचर्या में रुपहले पर्दे की अक्सर बातें आज़माई भी जाती हैं।
और फिर आज ही शिव सेना सासंद संजय राउत का ये कहना कि अजित पवार बड़ा काम करके आए हैं उनको सम्मान दिया जाएगा। उधर अजित पवार का दावा कि एनसीपी का था एनसीपी का ही रहूंगा। और रही सही कसर विधानसभा के स्पेशल सत्र के मौके पर सुप्रिया सूले ने अजित पवार को बतौर भाई गले लगा कर बधाई देते हुए पूरी कर दी है। यानि डब्ल्यूड्ब्ल्यूई की तरह सब कुछ स्क्रिप्ट्ड ही था!
जबकि इस सारे गेम में गवर्नर भगत सिंह कोश्यिारी को लेकर काफी चर्चाएं गर्म हैं। कहा तो यहां तक जा रहा है कि वफादारी के चक्कर में गवर्नर जैसे गरिमामय और संवैधानिक पद की गरिमा के अनुरूप काम नहीं किया गया। लोगों का मानना है कि भगत सिंह कोश्यिारी की होश्यिारी कहीं न कहीं धरी ही रह गई।
बहरहाल महाराष्ट्र की सत्ता की पूरी उठापठक में शरद पवार सियासत के पावर बैंक बन कर उभरे और उन्होने गुजराती जो़डी बनाम मराठी मानुष की बहस में उद्धव ठाकरे से मिलकर शह और मात का जबरदस्त गेम खेला। जिसका नतीजा कल सुबह पूरा देश देखेगा।