लखनऊ/नई दिल्ली (15 मार्च 2018)- "ये किसने शाख़-ए-गुल लाकर क़रीब ए आशियां रख दी- कि मैंने शौक़ ए गुल बोसी ...
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बहन जी उत्साह नहीं मंथन का समय है-क्या अखिलेश भय्या के गुलदस्ते की ख़ुशबू से दूर होगी गैस्ट हॉउस कांड की बद-बू?
बहन जी उत्साह नहीं मंथन का समय है-क्या अखिलेश भय्या के गुलदस्ते की ख़ुशबू से दूर होगी गैस्ट हॉउस कांड की बद-बू?
लखनऊ/नई दिल्ली (15 मार्च 2018)- "ये किसने शाख़-ए-गुल लाकर क़रीब ए आशियां रख दी- कि मैंने शौक़ ए गुल बोसी में काटों पे ज़ुबां रख दी" .... हो सकता है कि कुछ ज़्यादा समझदार लोग सीमाब अकबराबादी के इस शेर ...
| by Azad Khalid