नई दिल्ली (25 जनवरी 2018)- कौन कहता है कि राजपूत बहादुर नहीं होते। इतिहास के बहादु
र आज भी उतने ही बहादुर हैं। अपनी आन बान और शान के लिए जान पर खेल जाने वाले राजपूत आज भी अपनी इज़्ज़त के लिए कुछ भी कर गुजरने को तैयार है। इतिहास गवाह है कि राजपूतों की ज़बान और उनकी बहादुरी बेमिसाल रही है।
लेकिन ये क्या….क्या कोई राजपूत बेबस स्कूली बच्चों को अपने गुस्से का निशाना बना सकता है। क्या डिलीवरी के लिए अस्पताल जा रही एक लाचार मां का रास्ता रोका जा सकता है। क्या किसी राजपूत के होते हुए उपद्रवी मामूस और बेबस लोगों के साथ मारपी़ट कर सकते हैं। लेकिन अफसोस देशभर की सड़कों और सिनेमाघरों पर पद्मावत फिल्म के विरोध के नाम पर जो कुछ देखा गया उसको बहादुरी का क़तई नाम नहीं दिया जा सकता।
इससे भी अफसोसनाक और शर्मनाक बात ये है कि कश्मीर में बहादुरी दिखाने वाली हमारी पुलिस और उनकी पेलेट गन भी मासूम स्कूली बच्चों की मदद करने के लिए कहीं बेबस और लाचार नज़र आ रही हैं।
तो क्या सुर्पीम कोर्ट तक के आदेशों को न मानने वाले लोग का़नून और सरकार से बड़े हो गये हैं। सवाल ये भी है कि क्या देश का क़ानून कुछ लोगों के लिए अलग और कुछ लिए अलग है।
हांलाकि पद्मावत को लेकर सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के बावजूद सड़कों पर जो कुछ हो रहा है उसको लेकर कंटेम्ट ऑफ कोर्ट की याचिका डाली गई है, जिस पर सोमवार को सुनवाई होनी है।
दरअसल सुप्रीम कोर्ट में सोमवार को उन दो याचिकाओं पर सुनवाई होगी जिसमें पद्मावत को लेकर देशभर में हो रही हिंसा पर कंटेम्प्ट ऑफ कोर्ट का मामला चलाने की मांग की गई है। इनमें से अदालत की अवमानना की पहली याचिका कांग्रेसी नेता तहसीन पूनावाला ने दायर की है, जिसमें चार राज्यों में फिल्म पद्मावत को लेकर हिंसा की बात की गई है। तहसीन पूनावाला ने याचिका में चार राज्यों में संजय लीला भंसाली की फिल्म पद्मावत को लेकर हिंसा का हवाला देते हुए कहा है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद राजस्थान, हरियाणा, मध्य प्रदेश और गुजरात में लगातार हिंसक घटनाएं हो रही है। जिसके लिए ये सभी राज्य नाकाम रहे हैं, जबकि सुप्रीम कोर्ट का कहना था कि कानून व्यवस्था राज्यों की जिम्मेदारी है। जबकि एक और याचिका विनीत ढांडा ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की है। जिसमें राजपूत करणी सेना के तीन नेताओं, सूरजपाल, कर्ण सिंह और लोकेंद्र सिंह कलवी के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की अवमानना का मामला चलाने की मांग की गई है। इस मामले की सुनवाई सोमवार होगी।
लेकिन सबसे बड़ा सवाल यही है कि जिस पुलिस, डंडे, पेलेट गन और गोलियों से देश के ही एक हिस्से के प्रदर्शन कारियों को क़ाबू किया जाता रहा है वही तमाम बहादुरियां यहां कैसे बेबस नज़र आ रही है।