अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र संघ अल जुबैल ने सऊदी अरब के औद्योगिक क्षेत्र में सर सैयद डे का आयोजन किया। जिसमें बीबीसी में कार्यरत वरिष्ठ पत्रकार कुर्बान अली ने अध्यक्ष के रूप में हिस्सा लिया और मुख्य अतिथि के रूप में भारत से राजनेता, व्यवसायी और सामाजिक कार्यकर्ता तारिक़ सिद्दीक़ी ने भाग लिया।
इस मौके पर बोलते हुए वरिष्ठ पत्रकार क़ुर्बान अली ने कहा कि सर सैयद ने न सिर्फ भारत बल्कि उपमहाद्वीप के मुसलमानों की तकदीर बदल दी, इसलिए इसे बार-बार याद करना बेहद जरूरी है। महात्मा गांधी ने कहा था कि वे शिक्षा के पैगम्बर हैं, आने वाली पीढ़ियां उनकी ऋणी रहेंगी। सर सैयद ने तमाम विरोधों और परेशानियों को सहकर अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय जैसी संस्था की स्थापना की और अफ़सोस की बात यह है कि डेढ़ सौ साल बाद भी सर सैयद के नाम पर कोई दूसरी संस्था स्थापित नहीं हो सकी।
भारत के राजनेताओं ने मुसलमानों का वोट लिया लेकिन उनकी स्थिति को बदलने के लिए कुछ नहीं किया। इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि हमने स्वयं अपनी स्थिति को बदलने के लिए कुछ नहीं किया है। हम बातें बहुत करते हैं और उम्मीद करते हैं कि कोई पड़ोसी कोई और जिम्मेदारी उठाएगा, लेकिन जब तक हम सामूहिक रूप से अपनी जिम्मेदारियों पर खरे नहीं उतरेंगे तब तक बदलाव की कोई उम्मीद नहीं है।
उन्होने कहा कि धार्मिक नफरत के आधार पर कोई देश नहीं चल सकता। भारत विभाजन के बाद की स्थिति सबके सामने है। इस वक्त भारत में धार्मिक द्वेष चरम पर है। केवल मुसलमान ही नहीं बल्कि सभी अल्पसंख्यक, पिछड़े वर्ग और महिलाएं बेहतर स्थिति में नहीं हैं, उनमें भय का माहौल है। देश के अस्तित्व और अखंडता के लिए धर्मनिरपेक्ष समुदाय के साथ हमें भी अपनी जिम्मेदारी उठानी चाहिए।
मुख्य अतिथि ऑल इंडिया प्रोफेशनल्स कांग्रेस के पूर्वी यूपी के अध्यक्ष तारिक़ सिद्दीक़ी ने अपने विचार रखते हुए कहा कि हमारी तीन पहचान हैं एक हम मुसलमान हैं, दूसरी हम अलीग हैं, तीसरी हम भारतीय मुसलमान हैं। मुसलमान होने के नाते हम एक-दूसरे की आलोचना करते हैं, एक-दूसरे पर दोषारोपण करते हैं, लेकिन खुद जिम्मेदारी नहीं लेना चाहते, कर्तव्यों को भूलकर अपने हक की लड़ाई में हम बहुत आगे निकल चुके हैं।
उन्होंने समकालीन और धार्मिक शिक्षा के विरोध को दूर कर मानवता को लाभ पहुंचाने वाली शिक्षा की वकालत करते हुए उसे मौलिक मानने को कहा । हमें कठिनाइयों से भागना नहीं चाहिए, हमें अपनी जिम्मेदारियों को निभाना चाहिए। भारतीय मुसलमानों के रूप में, हम किसी भी देश में कहीं भी हों, हमें अपने भारत के विकास और उत्थान के लिए चिंतित होना चाहिए। भारत एक बड़ी अर्थव्यवस्था है, हमें इस बात की चिंता करनी होगी कि हम भारत की अर्थव्यवस्था में कैसे योगदान दे सकते हैं। उन्होंने जकात प्रबंधन प्रणाली पर विस्तार से चर्चा की और कहा कि व्यक्तिगत रूप से जकात के भुगतान के साथ-साथ एक सामूहिक प्रणाली बनाई जानी चाहिए ताकि इसके माध्यम से आवश्यक और महत्वपूर्ण कार्य पूरे किए जा सकें और जो लोग अभी भी जकात के पात्र हैं उन्हें जकात दी जाए।
अन्य वरिष्ठ अलीग ने भी कार्यक्रम को संबोधित किया। इस मौके पर अतिथि थे जी वकार अब्दुल गफूर दानिश, दम्मम अमोबा के अध्यक्ष मसरूर हसन ख़ान, अनीस बख्श, मेराज अंसारी, सैयद वहीद लईक़, आसिफ़ सिद्दीक़ी, मुहम्मद नफ़ीस, बाक़िर नक़वी, नवीद ख़ान, आरिफ अली सिद्दीकी, गुलाम मुस्तफ़ा, डॉ. सलीम, शोएब, कुरैशी, कलीम सिद्दीकी, साक़िब जौनपुरी, मुहम्मद सिराज, आकिफ़ के अलावा बड़ी संख्या में अलीग व अन्य मौजूद थे।
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