नई दिल्ली/बिहार (02 नवंबर 2019)- आपके बीच के किसी आम आदमी के ख़ास बनने के सफर से भी ज़्यादा अच्छा तब लगता है, जब वही ख़ास इंसान बनने के बावजूद आपके बीच फिर से आम इंसान की तरह आपको नज़र आता है। दरअसल बिहार के एक छोटे से इलाक़े के किसी आम से परिवार के एक शख़्स को जब भी लोग देश के मीडिया की बड़ी स्क्रीम पर बोलते हुए बल्कि ग़लत लोगों को धमकाते हुए देखते होंगें तो यक़ीनन उनको सिर्फ अच्छा नहीं लगता होगा बल्कि गर्व भी होता होगा। जी हां इसी संदर्भ में मैं फिलहाल उस शख़्स के बारे में बात कर रहा हूं जो लगभग हर रोज़ एनडीटीवी पर आकर बड़ी ही सादगी से अपना परिचय यह कर देता है कि मैं रवीश कुमार..उसी रवीश कुमार की फेसबुक वॉल पर एक पोस्ट देखकर लगा कि इस शख़्स के बारे में चंद लाइनें इस वक़्त लिखने से बेहतर के है कि उनकी पोस्ट को ही आप तक पहुंचा दूं….तो हाज़िर है रवीश कुमार की यह पोस्ट…फोटो के साथ आप भी महसूस कीजिए कि सादगी में कितना मज़ा है…
“छठ में गाँव आया हूँ । घर के लोग मेरी परीक्षा ले रहे थे कि मैं दौरा उठाऊँगा की नहीं। नंगे पाँव चलूँगा कि नहीं। सबको ग़लत साबित कर दिया। कितनी निगाहों और इम्तहानों से मेरी ज़िंदगी गुज़रती है, ख़ुद को उन सबसे मुक्त रखता हूँ लेकिन नंगे पाँव चलकर लोगों की तकलीफ़ को महसूस किया और दौरा उठा कर उस भार को जी लिया जो सबके हिस्से आता है। लोक पर्व में लोक होना पड़ता है। बहुत आनंद आया। आप सभी को छठ की बधाई। मुझे ज़मीन पर रखने के लिए भी शुक्रिया।”
(रवीश कुमार की फेसबुत वॉल से साभार)