नई दिल्ली (30 मार्च 2020)- कोरोना वायरस से निबटने में सरकार की कोशिशों पर दबे अल्फाज़ में निशाना साधते हुए राहुल गांधी ने सरकार को सहयोग करने के लिए कांग्रेस की तरफ से लाखों कार्यकर्ताओं के साथ खड़े रहने की पेशकश की है। राहुल गांधी की पीएम को चिठ्ठी को लेकर अनायास ही लोगों के मुंह से निकला होगा कि राहुल बाबा क़दम तो सराहनीय है लेकिन कम से कम इन हालात में तो मज़ाक़ न करें।
दरअसल राहुल गांधी ने पीएम मोदी को चिठ्ठी लिखकर कहा है कि सरकार को कोरोना से निबटने के लिए कोशिशों को भारत के हालात के हिसाब से संचालित करना चाहिए और संकट की इस घड़ी में कांग्रेस के लाखों कार्यकर्ता उनके साथ हैं।
भले ही देश की सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस के पास कभी लाखों क्या करोड़ो कार्यकर्ता हों लेकिन मौजूदा वक्त में कुछ चापलूस नेताओं को छोड़कर कार्यकर्ताओं की बात करें तो ख़ुद पार्टी हाईकमान को पता है कि कार्यकर्ता कितने हैं। और फिर अगर फिलहाल राहुल गांधी के दावे पर यक़ीन कर भी लिया जाए तो, देश की सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस गोवा में सरकार बनाने से कैसे चूकी, ये जनता से ज्यादा ख़ुद राहुल गांधी समझते होंगे। शिवराज सिंह सरकार के ख़िलाफ 15 साल के एंटिकंबेसी का फायदा उठाने के लिए मध्य प्रदेश में अगर कांग्रेस के पास लाखों कार्यकर्ता होते और पार्टी ज़मीन पर काम करती तो आज कमलनाथ सरकार की भ्रूण हत्या न होती। उधर राजस्थान में भी सरकार रस्सी पर करतब दिखाने जैसे हालात से गुज़र रही होती।
पार्टी में उन नेताओं का बोलबाला है जो चापलूसी के दम पर हाईकमान के चहते बने हुए हैं, नतीजा आम कार्यकर्ता अपमानित होकर छिटकता गया। ख़ुद अपनी कमान में लोकसभा, कई प्रदेशों में विधानसभा के दर्जनों चुनावों में भद्द पिटवाने के बाद भी राहुल गांधी की चिठ्ठी में लाखों कार्यकर्ताओं का दावा मज़ाक़ नहीं तो और क्या है।
देश कोरोना वायरस के संकट से जूझ रहा है। ऐसे में राजनीतिक बातों से परहेज़ करते हुए सिर्फ इतना ही कहना है कि कांग्रेस मुख्यालय में कई दशक से बड़े पदाधिकारी की सीट पर ही बातें बाते करते सो जाने वाले वोरा जी को जब कोई नया कार्यकर्ता देखता होगा तो उसके मन में सवाल उठता होहा कि यहां नया होने के लिए कब मुहूरत निकलेगा। सवाल उनकी उम्र का या किसी दूसरे पर भरोसा करने का नहीं, बल्कि सवाल सिर्फ यही है कि कई कई पीढ़ी से पार्टी के लिए दरिया बिछाने वाला कार्यकर्ता जब पार्टी पर कई साल से कुछ निकम्मे और चापलूस चेहरों को देखता रहेगा तो भला काम कैसे चलेगा। बात अकेले वोरा जी की या फिर किसी और अति सीनियर सिटीज़न की नहीं है, बल्कि सवाल तो ये है उंगली पर गिनकर चंद तिकड़मबाजो से घिरी कांग्रेस आज भी आत्ममंथन करने को तैयार नहीं है।
राज परिवारों और कमलनाथ की धुरी के बीच फंसा कार्यकर्ता जब ये सोचेगा कि कई साल से मलाईदार पदों पर रहे सिधियां खुद ही न सेटिसफाई रहे न वफादार और दर्जनो मलाईदार पर पदों पर दशकों से डटे कमलनाथ किसी दूसरे को मौका देने के बजाय सरकार गंवाना बर्दाश्त कर सकते .हैं। जबकि एक और राजा साहब ने सिंधिया के कंधे पर बैठकर कमलनाथ को ही ठिकाने लगा दिया। तो क्या ऐसे में कोई कार्यतर्ता अपनी चांस आने का कोई सपना देखने की हिम्मत जुटा पाएगा।
ख़ैर माफी चाहता हूं कोरोना के बीच सियासी चर्चा लंबी हो गई। लेकिन राहुल जी की चिठ्ठी एक सराहनीय कदम है। उनकी कोशिश हमेशा दूरियां घटाने की रही है। ये अलग बात है कि लोक सभा में गले लगने की तरह पीएम मोदी उनको अपनी ही नज़र से पहचानते भी हैं। और हां पीएम अपनी ही रणनीति पर काम करते है आपकी सलाह का स्वागत कैसे होगा राहुल ये आप भी जानते हैं।
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