नई दिल्ली (12 नवंबर 2019)- चुनावों के नतीजे आने के बाद लगभग आधा महीने बाद भी महाराष्ट्र में सरकार बनाने की रस्साकशी अपने अंत की ओर बढ़ गई है। अपना अपना एक ही डीएनए बताने वाले बीजेपी और शिव सेना के मज़बूत में सत्ता को लेकर आख़िरकार दरार आ ही गई है। दरअसल महाराष्ट्र और हरियाणा चुनाव के नतीजे आने के बाद हरियाणा में भले ही चौधरी देवीलाल के पोते दुष्यंत चौटाला ने बीजेपी की राहें आसान कर दी हों। लेकिन महाराष्ट्र में बाला साहब ठाकरे के पोते ने बीजेपी की राहें रोक लीं हैं।
कई दिनों की खींचतान और राजनीतिक पैंतरेबाज़ी के बाद पीएम मोदी ने सख़्त क़दम उठाते हुए शिव सेना के आगे राजनीतिक तौर पर झुकने से इंकार कर दिया है। नतीजे के तौर पर अब वहां राष्ट्रपति शासन की लगभग तैयारियां हो चुकीं है। मोदी की कैबिनेट ने महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन लगाने की सिफारिश कर दी है। महाराष्ट्र चुनावी नतीजों के आने के कई दिन बाद भी में सरकार बनाने की तीन कोशिशों के नाकाम होने के बाद सूबे में अब राष्ट्रपति शासन लगता नज़र आ रहा है। चुनावी नतीजों के आवे बाद से ही बीजेपी राज्य में सरकार बनाने में नाकाम रही जिसके बाद राज्यपाल ने शिवसेना को 24 घंटे में बहुमत जुटाने को कहा था। और जैसी कि उम्मीद थी शिवसेना ये जादुई आंकड़ा नहीं जुटा पाई। उधर एनसीपी भी फेल रही है। जिसके बाद दिल्ली में मोदी कैबिनेट ने महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन की सिफारिश की है।
कैबिनेट के फैसले के बाद अब शिवसेना ने राज्य में राष्ट्रपति शासन की सिफारिश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है।
उधर इस मामले पर कांग्रेस ने राज्यपाल भगत सिंह कोशियारी पर सवाल खड़े किये हैं। कांग्रेस का कहना है कि सबसे गवर्नर को चुनाव से पहले बनने वाले गठबंधन यानि शिव सेना और बीजेपी को सरकार बनाने को कहना चाहिए था। उसके बाद एवसीपी और कांग्रेस को। कांग्रेस ने राज्यपाल द्वारा कांग्रेस को आमंत्रित न करने पर सवाल खड़े किये हैं।
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