मुस्लिम समाज.. क्या एक बेबस, बेसहारा, रहनुमाई, कयादत से महरूम और बेशर्म समाज है या फिर एक ज़िंदा कौम…ये सवाल इसलिए कि देश की राजधानी दिल्ली में हुए पिछली वारदातों में भले मस्जिदों को आग लगाई गई हो मज़ारों को फूंका गया या फिर मस्जिदों पर भगवा झंडा फहराने के ख़बरे और तस्वीरे सामने आईं हों लेकिन गिरफ्तारी और कार्रवाई के नाम पर कई साल से जेल में किस समाज के लोग जेल में बंद हैं और गोली मारो सालों को जैसे भड़काऊ भाषण देने वाले और सरेआम तलवारें और हथियार लहराने वालों के खिलाफ क्या कार्रवाई ये सभी को मालूम है। शायद पिछली कार्रवाई और मुस्लिम समाज के बेशर्म कथित रहनुमाओं के खामोशी के बाद अपराधिक तत्वों की तो हिम्मत बढ़ी ही है लेकिन पुलिस प्रशासन की एक तरफा कार्रवाई और समाज के खिलाफ अपराधियों को सरक्षण और एक तरफा कार्रवाई का चलन भी बढ़ा है। जिसका सबूत है देशभर के बाद राजधानी दिल्ली में भी सरेआम हथियार तलवारे लहराते लोगों द्वारा कथिततौर पर मस्जिद पर भगवा फहराने की कोशिश के बाद बचाव में भड़के टकराव के बाद राजधानी की पुलिस ने 14 लोगों को गिरफ्तार किया जिनमें सभी 14 आरोपी मुस्लिम समाज के ही हैं। यानि एक तरफा कार्रवाई। दिलचस्प बात ये है कि मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक जब इस बारे में दिल्ली पुलिस के आला अधिकारी से पूछा गया तो उन्होने कहा कि अभी हम जांच कर रहे हैं ये सब शरुआती कार्रवाई है। यानि शुरुआती कार्रवाई में 14 मे 14 यानि सौ प्रतिशत एक ही समुदाय के तो फिर आगे क्या उम्मीद होगी। यानि जिस पुलिस को सरेआम सड़कों पर तलवारे, त्रिशूल हथियार तमंचे लहराते और किसी दूसरे समुदाय के धार्मिक स्थल पर जबरन भगवा फहराते शांति दूत नज़र नहीं आए और उसने कार्रवाई के नाम पर पीड़ित समुदाय को ही गिरफ्त में ले लिया। और ये हाल तो है देश की राजधानी दिल्ली का। तो भला खैरगड़ या करोली या फिर देश के दूसरे दूर दराज के इलाकों में क्या हुआ होगा ये कोई भी आसानी समझ सकता है। लेकिन आज हम मुस्लिम समाज को बेबस या मजलूम समाज न कहकर बेशर्म समाज कहें तो शायद कुछ लोगों को बुरा तो ज़रूर लगेगा। लेकिन उनकी इत्तिला के लिए अर्ज है कि कई कई करोड़ की शादिया करने वाले इसी समाज के लोगों या फिर किसी भी पार्षद, विधानसभा या लोकसभा का टिकट पाने के लिए किसी भी राजनीतिक दल को करोड़ो का चंदा देने की दौड़ मे शामिल लोगों या फिर तलाक तक मे समझौते के नाम पर करोड़ो का लेनदेन वाले समाज का अपना कोई मीडिया हाउस तक न होना या फिर कोई सियासी मंच तक न खड़ा कर पाना बेशर्मी की अलामत नहीं है तो फिर क्या है। चलिए हम माफी के साथ अपने अल्फाज वापस लेते हैं और मुस्लिम समाज के इस तरह के लोगों को बेशर्म कहने के बजाय बेहद खुद्दार और सम्मानित मानते हैं लेकिन मौजूदा दौर में किसी भी राजनीतिक नुमाइंदगी से महरूम और एक अदद आवाज यानि माडिया हाउस तक खड़ा कर पाने वाले इस समाज के जिम्मेदारान से पूछना चाहते हैं कि उनकी खुद्दारी उस वक्त कहां चली जाती है जब ऐसी कुछ घटनाएं ये साबित करती है कि स्कूल जाने के बजाय सैंकड़ो बच्चे जब गलियों में केवल हुड़दंग या वक्तगुजारी करेंगे तो एक पढ़े लिखे समाज के बजाय एक कमजोर और बीमार समाज ऐसे ही रुसवा होता रहेगा। बहरहाल इस सबके बीच एक अच्छी खबर ये आ रही है कि भले ही भारतीय मीडिया को ब्रेकिंग या डीबेट के नाम सरेआम तलवारे और हथियार लहराते मस्जिदों पर भगवा झंडा लगाने वाले न दिखे हों लेकिन दिल्ली पुलिस की इस एक तरफा कार्रवाई को लेकर सोशल मीडिया और मीडिया पर न सिर्फ बहस शुरु हो गई है बल्कि मामला सुप्रीमकोर्ट तक जा पहुंचा है। दिल्ली पुलिस की एक तरफा कार्रवाई और भगवाधारी हुड़दगईयों को कथिततौर पर संरक्षण देने और एक समाज को दबाने की इस घटना के बाद सुप्रीमकोर्ट में बाकायाद याचिका दायर किये जाने की खबर आ रही है। रहा सवाल आपके पालिटिकल नेताओं का तो आजम खान के कई साल से सपरिवार प्रताणना के मामले मे अखिलेश भय्या की खामोशी हो या फिर ताहिर हुसैन मामले के बाद दिल्ली के सीएम का यह कहना कि दिल्ली में यात्रा पर पथराव करने वालों के खिलाफ कार्रवाई हो यानि दिल्ली के सीएम ने भी तलवारे और सरेआम लहराते लोगों को देखे बगैर इस आरोप पर मुहर लगा दी कि दोषी कौन है लेकिन इसी दिल्ली के एक विधायक ने न सिर्फ दिल्ली पुलिस की एक तरफा कार्रवाई पर सवाल उठाए है बल्कि तलवारे लहराने वालों का वीडियो भी शेयर करके अपने सीएम की आंखो पर चढ़ा धार्मिक रतौंधी को उतारने की कोशिश की जिसके तहत वो तुष्टिकरण की राजनीति करते रहे हैं। बहरहाल देश में अभी संविधान मौजूद है और दुनियां के सबसे लोकतंत्र में हमको मासूस होने के जरूरत नहीं बल्कि बस इतना याद रखो कि अल्लाह का वादा है और कुरान में भी कहा गया कि बेशक तुम ही कामयाब होगे अगर तुम मोमिन हो। #jahangirpurinews #azadkhalid #oppositionnews #muslim_in_india #jahangirpuri
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