नई दिल्ली (08 फरवरी 2018)- राफेल विमान डील मामले पर सियासत थमने का नाम ही नहीं ले रही है। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधीने इस डील को लेकर कई सवाल खड़े किये थे। इस मामले पर अब मौजूदा सरकार ने भी सफाई के साथ-साथ आक्रामक रुख़ इख़्तियार कर लिया है। मौजूदा सरकार का आरोप है कि इस मामले पर बेवजह राजनीति की जा रही है। साथ ही पिछली सरकार पर आरोप लगाया है कि तब की कार्यशैली सबके सामने है।
दरअसल सरकार ने राफेल विमान ख़रीद मामले पर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के सवालों पर बाक़ायदा बयान जारी किया है। पीआईबी द्वारा जारी एक बयान में कहा गया है कि फ्रांस से 36 राफेल विमानों की खरीद के लिए 2016 में अंतर-सरकारी समझौते यानि आईजीए के बारे में तमामा आरोप लगाये जा रहे हैं। ऐसे भ्रामक वक्तव्यों के कारण इससे गंभीर क्षति भी हो रही है जो राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए भी आघात है।
प्रेस रिलीज़ में कहा गया है कि हमें यह याद रखना चाहिए कि यह केंद्र की पिछली सरकार के दस साल के कार्यकाल के तहत भारतीय वायु सेना यानि इंडियन एयरफोर्स की आवश्यक ताकत को पूरा करने के लिए 2002 में में इसकी परिकल्पना की गई थी। 2012 में तत्कालीन रक्षा मंत्री ने स्थाई संस्थागत प्रक्रिया पर अभूतपूर्व व्यक्तिगत वीटो का इस्तेमाल किया था, जिसके चलते वह 126 मध्यम मल्टी-रोल कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (एमएमआरसीए) की खरीद की प्रकिया की शुरूआत हुई थी। यह तभी संभव हो पाया जब आईएएफ की लड़ाकू क्षमता में गिरावट आई थी। रिलीज़ में कहा गया है कि तथ्यों को तोड़-मरोड़ करने के एक अन्य प्रयास में, सरकार से पूछा गया है कि वह किसी प्रतिस्पर्धी लड़ाकू विमानों का प्रतिनिधित्व करने वाली एक विशेष कंपनी के साथ वार्ता क्यों नहीं करता है। ऐसा लगता है कि कि तत्कालीन सरकार ने स्वयं ही बोली प्रक्रिया बंद होने के बाद कंपनी की अवांछित पेशकश को खारिज कर दिया था, जिसे वह आसानी से यह भूल गया था, उन्होंने राफेल (डीए) को एल 1 बिडर घोषित कर दिया था और फरवरी 2012 में इसके साथ बात-चीत की शुरूआत की थी।
सरकारी बयान में कहा गया है कि यह मांग की जा रही है कि इस अनुबंध से संबंधित विवरण और मूल्य का खुलासा सरकार करे लेकिन सरकार ने इसे अवास्तविक करार देकर नकार दिया है।(इससे पहले भी गोपनीयता की आवश्यकताओं के अनुरूप को ध्यान में रखते हुए, यूपीए सरकार ने विभिन्न रक्षा खरीदों की कीमत का खुलासा करने में असमर्थता व्यक्त की थी, जिसका उत्तर संसद प्रश्नों में भी समाहित है)। राफेल एयरक्राफ्ट डील से संबंधित अनुमानित अधिग्रहण लागत के बार में पहले ही संसद को अवगत कराया जा चुका है। जैसा की मांग किया जा रहा है कि इस डील से संबंधित आइटम-वार लागत और अन्य जानकारी भी उफलब्ध कराई जाए, इस बारे में सरकार ने अपना रूख स्पष्ट करते हुए कहा है कि इससे हमारी सैन्य तैयारियों और राष्ट्रीय सुरक्षा को प्रभावित करेगा। इस तरह के विवरण 2008 में हस्ताक्षरित सुरक्षा समझौते के दायरे के तहत भी आएंगे। इसी कारण से अनुबंध के मद-वार विवरण का खुलासा नहीं कर रहे हैं, सरकार केवल पिछली सरकार द्वारा हस्ताक्षरित 2008 के द्विपक्षीय भारत-फ्रांस समझौते के गोपनीय प्रावधानों के पत्र और भावना का ही सम्मान कर रही है।
चूंकि 36 विमानों के लिए 2016 अनुबंध के बारे में संदेह पैदा होने जैसा मांग की जा रही है,सरकार ने यह एक बार फिर से इसे जोरदार रूप से दोहराया है कि सरकार द्वारा सुरक्षित सौदा क्षमता, मूल्य, उपकरण, वितरण, रखरखाव, प्रशिक्षण जैसे मामलों में बेहतर है। पि।ली सरकार ने किन कारणों से इसे दस वर्षों में भी पूरा नहीं किया। जबकि वर्तमान सरकार ने सिर्फ एक वर्ष में इसे बात-चीत से अंजाम तक पहुंचा दिया है।
एक बार फिर जोर दिया गया है कि आईएएफ की जरूरत को पूरा करने के लिए फ्रांस के साथ अंतर-सरकारी समझौते (आईजीए) के माध्यम से 36 राफेल विमानों की खरीद में रक्षा प्रोक्योरमेंट प्रक्रिया के अनुसार सभी पहलुओं में अनिवार्य, संचालन और निगरानी सहित सभी मुद्दों का ध्यान रखकर किया गया है और आईजीए में प्रवेश करने से पहले सभी आवश्यक मंजूरी जैसे सुरक्षा पर मंत्रिमंडल समिति (सीसीएस) तक की ले ली गई थी। 2009-10 के दौरान आईएएफ द्वारा विमान का सफलतापूर्वक मूल्यांकन भी किया जा चुका था।
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