चीन पीछे हटने को राजी हो गया है। माना जा रहा है कि भारत के दबाव में इस बार वह 7 दिन में ही झुक गया है। 15 जून की रात गलवान में हिंसक झड़प हुई थी। इसके बाद सोमवार को चीन सीमा पर स्थित मॉल्डो में दोनों देशों के बीच लेफ्टिनेंट जनरल लेवल की बातचीत हुई, जो 11 घंटे चली।
आर्मी की तरफ से मंगलवार को जारी बयान के मुताबिक, सोमवार को हुई बातचीत मेंशांति कायम करने पर रजामंदी बनी। दोनों देश अब पूर्वी लद्दाख में टकराव वाली जगहों से अपने सैनिक पीछे हटाएंगे।डी-एस्केलेशन की प्रोसेस धीरे-धीरे होगी। यानी धीरे-धीरे दोनों देशों के सैनिक पीछे हटेंगे।
पिछली बार 30 दिन में राजी हुआ, लेकिन 7 दिन में पलट गया
चीन इस बार वाकई अपने सैनिक हटा लेगा या नहीं, इस पर शक है। दरअसल, यह पहला मौका नहीं है, जब चीन डिसएंगेज होने यानी सैनिकों को पीछे करने पर राजी हुआ है। वह एक बार अपनी बात से पलट चुका है।
5-6 मई को जब पूर्वी लद्दाख की पैंगोंग झील के फिंगर-5 इलाके में भारत-चीन के करीब 200 सैनिक आमने-सामने हो गए थे, तभी से चीन गलवान घाटी के पेट्रोल पॉइंट 14 पर जमा हुआ था।
उस वक्त भी मॉल्डो में ही बातचीत हुई थी
विवाद के 30 दिन बाद यानी 6 जून को जब मॉल्डो में ही भारत-चीन के बीच लेफ्टिनेंट जनरल लेवल की बातचीत हुई थी। तब चीन पेट्रोल पॉइंट 14 से जवानों को पीछे हटाने पर राजी हो गया था। उसने अपने कैम्प भी हटा लिए थे। वहां 16 बिहार इंफैन्ट्री रेजिमेंट के कमांडिंग ऑफिसर कर्नल संतोष बाबू इस पर नजर रखे हुए थे और चीन की सेना से बातचीत कर रहे थे।
8 दिन ही बीते थे कि 14 जून को चीन ने अचानक अपने कैम्प दोबारा खड़े कर दिए। जब कर्नल संतोष बाबू 15 जून की शाम 40 जवानों के साथ खुद बातचीत करने पहुंचे तो चीन के तकरीबन 300 सैनिकों ने उन पर हमला कर दिया। गलवान घाटी की इसी झड़प में कर्नल संतोष बाबू समेत भारत के 20 जवान शहीद हो गए।
2. डोकलाम में उसने 73 दिन लगाए थे
16 जून 2017 को डोकलाम में विवाद तब शुरू हुआ, जब भारतीय सेना ने वहां चीन के सैनिकों को सड़क बनाने से रोक दिया।
चीन का दावा था कि वह अपने इलाके में सड़क बना रहा था। इस इलाके का भारत में नाम डोका ला है, जबकि भूटान में इसे डोकलाम कहा जाता है।
चीन ने तब डोकलाम से पीछे हटने में 73 दिन लगाए। 28 अगस्त 2017 को चीन पीछे हटने को राजी हुआऔर उसी दिन उसने सैनिक भी हटा लिए थे। बाद में वहां विवाद नहीं हुआ।
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