नई दिल्ली.चीन ने जिस गालवन घाटी में भारत के तीन जवानों की जान ले ली है। वह गालवन घाटी लद्दाख में एलएसी पर स्थित है। बगल में गालवन नदी बहती है। यह वही अक्साई चिन इलाका है, जिसे चीन ने अपने कब्जे में ले रखा है। गालवन नदी काराकोरम रेंज की पूर्वी छोर समांगलिंग से निकलती है। फिर पश्चिम में बहते हुए श्योक नदी में मिल जाती है।
गालवन घाटी का पूरा इलाका रणनीतिक रूप से भारत के लिए काफी अहम है। भारतीय सैनिक गालवन नदी में भी नाव के जरिए नियमित गश्त करते हैं, ताकि चीन के अतिक्रमण को रोका जा सके। 1962 के युद्ध में भी गालवन उन प्रमुख जगहों में था, जहां भारतीय-चीनी सेना के बीच युद्ध हुआ था।
- गोरखा पोस्टपर चीन ने हमला बोला था
1962 में चीन के भारतीय इलाकों पर कब्जों के दावों के बाद दोनों देशों की सेनाएं एक-दूसरे सामने आ गई थीं। दरअसल, भारतीय गोरखा सैनिकों ने 4 जुलाई 1962 में घाटी में पहुंचने के लिए एक पोस्ट बनाई थी। इस पोस्ट ने समांगलिंग के एक चीनी पोस्ट के कम्युनिकेशन नेटवर्क को काट दिया। जिसे चीन ने अपने ऊपर हमला बताया था। इसके बाद चीन सैनिकों ने गोरखा पोस्ट को 100 गज की दूरी पर घेर लिया था। भारत ने चीन को धमकी दी थी कि वह इसे किसी भी कीमत पर खाली कराकर रहेगा। इसके बाद भारत ने चार महीने तक इस पोस्ट पर हेलिकॉप्टर के जरिए खाद्य और सैन्य सप्लाई जारी रखी थी।
- गालवन पोस्ट पर भारी बमबारी के लिए चीन ने बटालियन भेजी थी
भारत-चीन युद्ध 20 अक्टूबर 1962 को शुरू हुआ। चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी ने इस गालवन पोस्ट पर भारी गोलीबारी और बमबारी के लिए एक बटालियन को भेजा था। इस दौरान यहां 33 भारतीय मारे गए थे, कई कंपनी कमांडर और अन्य लोगों को चीनी सेना ने बंदी बना लिया। इसके बाद से चीन ने अक्साई-चिन पर अपने दावों वाले पूरे क्षेत्र पर कब्जा कर लिया।
- गालवन के पश्चिम इलाके पर चीन 1956 से कब्जे का दावा करता आ रहा
गालवन घाटी अक्साई चिन क्षेत्र में है। इसके पश्चिम इलाके पर 1956 से चीन अपने कब्जे का दावा करता आ रहा है। 1960 में अचानक गालवन नदी के पश्चिमी इलाके, आसपास की पहाड़ियों और श्योक नदी घाटी पर चीन अपना दावा करने लगा। लेकिन भारत लगातार कहता रहा है कि अक्साई चिन उसका इलाका है। इसके बाद ही 1962 में भारत-चीन के बीच युद्ध हुआ था।
- गुलाम रसूल गालवन के नाम पर है घाटी का नाम
इस नदी का नाम गुलाम रसूल गालवन के नाम पर रखा गया है। रसूल गालवन लेह के रहने वाले थे। माना जाता है कि उन्होंने ही इस नदी को खोजा था। उन्हीं के नाम पर इस घाटी का नाम भी पड़ा। उन्होंने 1899 में इस नदी का पता लगाया था।
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