नई दिल्ली (01 मार्च 2020)- ये सच्चाई है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के भारत दौरे के समय हमारे प्रधानमंत्री महोदय ने पाकिस्तान को बेनक़ाब करके रख दिया। पीएम नरेंद्र मोदी ने आतंकवाद को लेकर पाकिस्तान को न सिर्फ आड़े हाथों लिया बल्कि उसको आतंक का एक्सपोर्टर तक साबित कर दिया। भले ही कुछ लोग इस पर सवाल उठाएं या राजनीति करें, लेकिन ये हमारे लिए गर्व की बात है। प्रधानमंत्री मोदी की इस कूटनीतिक और राजनीतिक चाल को न सिर्फ देश के मीडिया ने बल्कि दुनियांभर के मीडिया ने प्रमुखता से दिखाया है। इंटरवेश्नल बिरादरी के सामने पाकिस्तान के बेनक़ाब होने और आतंकवाद के मामले पर किरकिरी होने पर ख़ुद पाकिस्तान भी बौखलाया हुआ है, और पाकी मुखिया इमरान खान तक समझ नहीं पा रहे हैं कि आख़िर मोदी की धुआंधार बैटिंग के सामने उनकी अगली बॉल कौन सी होनी चाहिए। लेकिन अफसोस, इस सबके बावजूद कुछ लोग इसको भी पचा नहीं पा रहे हैं। चाहे सीएए का मामला हो या फिर एनआरपी का सवाल, इस पर कुछ लोग मोदी और केंद्र सरकार को घेरने की कोशिश कर रहे हैं। लोगों का सवाल है कि सिटजनशिप अमेंडमेंट एक्ट यानि सीएए के तहत आख़िर पाकिस्तान, बंग्लादेश और अफगानिस्तान के अल्पसंख्यकों पर महरबानी करने वाली सरकार, नेपाल, भूटान, श्री लंका, म्यामार और चीन के अल्पसंख्यकों से भेदभाव के साथ साथ अपने ही देश के करोड़ों अल्पसंख्यकों से कथिततौर पर दूरी क्यों बना रही है। इतना ही नहीं दिल्ली की हिंसा को लेकर बाबरी मस्जिद विध्वंस से लेकर गुजरात दंगे तक की चर्चा करते हुए सरकार को घेरने की कोशिश तक की जा रही है। सवाल तो ये है कि क्या ऐसे वक्त में जबकि ट्रंप के सामने पाकिस्तान को आतंकवाद का निर्यातक साबित किया जा चुका है तब हमको 1992 में कोर्ट के आदेशों को रौंदते हुए बाबरी मस्जिद को कुछ आतंकियों द्वारा ढहाने की घटना पर सवाल उठाने चाहिए। क्या साल 2002 के गुजरात नरसंहार और उसमें हज़ारों लोगों की हत्या के साथ साथ एक पूर्व सांसद और उसके घर पर शरण लेने वालों को मौत के घाट उतारने और सैंकड़ो महिलाओं की आबरू लूटे जाने और बच्चों तक को मार डालने की घिनौनी वारदात को याद करना चाहिए। साथ ही बाबू बजरंगी, माया कोडनानी और न जाने ऐसे ही कितने आरोपियों की चर्चा करनी चाहिए जिनपर आरोप है कि उनको ऊपर से ही आशीर्वाद प्राप्त था। इसके अलावा कुछ लोग दिल्ली के शाहीन बाग और जामिया क्षेत्र में कपिल गुर्जर और गोपाल नाम के दो युवकों द्वारा की गई फायरिंग और कुंजा कपूर नाम की महिला द्वारा बुर्का पहन कर कथिततौर पर पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगाने और माहौल खराब करने की कोशिश की घटना को उछालने से भी फिलहाल हम सहमत नहीं है। दरअसल ऐसे समय में जबकि ट्रंप के सामने पाकिस्तान को आंतकवाद पर पूरी तरह घेर लिया गया हो। आतंकवाद को लेकर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पाकिस्तान की कमर तोड़ दी गई हो, तो ऐसे में दिल्ली में हुए दंगे और दर्जनों मस्जिदों और मज़ारों को आग लगाने और तोड़े जाने की घटना पर आंसू बहाना फिलहाल उचित नहीं है। माना कि किसी भी मस्जिद में आग लगाने और उसके मीनार पर जबरन भगवा झंडा लहराने की घटना किसी भी तरह आतंकवादी घटना से कम नहीं है, लेकिन फिलहाल इस रोने चिल्लाने से राष्ट्रहित में परहेज करना चाहिए। साथ ही हमारे पास दिल्ली पुलिस पर भरोसा करने के अलावा कोई चारा भी तो नहीं, पुलिस को कार्रवाई करने का भी समय देना चाहिए। हांलाकि पुलिस पर भी कई लोग सवाल उठा रहे हैं। उनका आरोप है कि अपनी मांगो को लेकर संवैधानिक तरीकों से शांतिपूर्वक धरना दे रहे प्रदर्शनकारियों को धमकाने वाले कपिल मिश्रा और अनुराग ठाकुर के अलावा पुलिस की मौजूदगी में खुलेआम फायरिंग करने वाले कपिल गुर्जर और गोपाल जैसे कई लोगों के काले कारनामों पर पर्दा डालने के लिए दिल्ली पुलिस नये नये कथित स्वांग रच रही है। लेकिन ये सच्चाई है कि दिल्ली पुलिस देश का सबसे बेहतर और तेज़ तर्रार पुलिस बल है। हमको उसकी क्षमताओं पर भरोसा करना चाहिए। साथ ही इंतज़ार करना चाहिए कि दिल्ली में सरकारी खर्च पर अरविंद केजरीवाल द्वारा लगाए गये कैमरों की रिकार्डिंग सार्वजनिक करते हुए फुटेज की मदद से आरोपियों की धड़पकड़ की जाएगी। साथ ही गुजरात नरसांहर के दौराव वहां के सासंद अहसान जाफरी की तरह कथिततौर पर चारों तरफ से दंगाइयों से घिरे और पुलिस से मदद की गुहार लगाने वाले पार्षद ताहिर के घर की छत पर पड़े पत्थरों और कोल्ड ड्रिंक की बोतलों में कथित तौर पर पैट्रोल की तस्वीरें खींचने वाले कैमरे की मदद से मस्जिदों और घरों को आग लगाने वाले और खुलेआम तलवारें लहराने वालों की तस्वीरें भी ज़रूर सामने लाई जाएंगी। हमें भरोसा करना चाहिए कि ड्रोन की मदद से या ऊंचाई से काम करने वाला कोई भी कैमरा सिर्फ एक छत की ही तस्वीरें नहीं खींचता, बल्कि आसपास की वीडियो और तस्वीरें दंगाईयों को बेनक़ाब कर देंगी।
रहा सवाल भरोसे का, तो निष्पक्षता के आरोपों के बावजूद देश की राजधानी के पुलिस पर हमको भरोसा होना ही चाहिए। भले ही उसके अंदर कुछ लोग ऐसे भी हों जिनकी कार्यशैली और उनके कथित पक्षपात पूर्ण रवय्ये से सवाल खड़े होने लगे हों। लेकिन ये सच्चाई है कि डोनाल्ड ट्रंप के सामने पाकिस्तान को आंतकवाद का एक्सपोर्टर साबित करने की शुभ घड़ी में हमको देशहित में संयम से काम लेते हुए सैंकड़ो साल पुरानी मस्जिद को कोर्ट के आदेशों को रौंदते हुए तोड़ने, गुजरात में पूर्व सासंद अहसान जाफरी समेत हज़ारों लोगों की हत्या के और महिलाओं से बलात्कार के बावजूद बाबू बजरंगी जैसे नामों या नानावटी कमीशन की रिपोर्ट पर या फिर फिलहाल देश की ही राजधानी में 1984 को दोहाराते हुए धार्मिक स्थलों को जलाने और दर्जनों को मौत के घाट उतारने वाले आंतकियों की चर्चा नहीं करनी चाहिए। साथ ही पूरे देश को इस पर भी अफसोस करना चाहिए कि दिल्ली पुलिस के हैंड कास्टेबल रतन लाल ड्यूटी देते हुए शहीद हुए हैं और आईबी कर्मी अमित शर्मा का परिवार भी उनको खोने के गम से बेहाल है। और दिल्ली पुलिस के डीसीपी आज भी घायल अवस्था में अस्पताल में जीवन की जंग लड़ रहे हैं। जनता को भरोसा करता चाहिए कि दिल्ली में लगे कैमरों की फुटेज को देशभर के सामने तेज़ तर्रार मीडिया की मदद से सार्वजनिक किया जाएगा, ताकि देश के माहौल के घातक चेहरों को सामने लाया जा सके। और हां हमको अपने प्यारे देश के न्यायिक सिस्टम और पुलिस पर भरोसा रखते हुए ये भी भरोसा करना चाहिए कि अगर दोषी हाथ लग गये तो यक़ीनन बख्शे नहीं जाएंगे।
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