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पार्क और मैदानों में बच्चे कैसे खेलें? एक्सपर्ट्स दे रहे पैरेंट्स को 5 सलाह; ताजी हवा फायदेमंद, पर सोशल डिस्टेंसिंग बेहद जरूरी



क्रिस्टीना कैरॉन. देशअनलॉक हो गया है।बच्चों के खेलने की जगह यानी पार्क और मैदान भीखुलने लगे हैं। यह खबर बच्चों के लिए तो ठीक है, लेकिन माता-पिता चिंतित हो गए हैं। क्योंकि कोरोनावायरस अब दोगुनातेजीसे फैल रहा है औरवैक्सीन के आने के बारे में अभीकोई पुख्ता जानकारी नहीं है। ऐसे में क्या बच्चों की खेल के मैदान में वापसी अच्छा आइडिया है?

एक्सपर्ट्स से समझें 5बड़े सवालों के जवाब और सलाह-

क्या प्ले ग्राउंड्स सेफ हैं?

  • खेल के मैदान जैसी जगहों पर कोरोनावायरस का जोखिम बहुत ज्यादा है। यहां सफाई और सोशल डिस्टेंसिंग को लेकर अलग-अलग सोच रखने वाले लोग शामिल होते हैं। हां, खेल के खुलेमैदानों में ताजी हवा और लोगों के बीच पर्याप्त दूरी का फायदा भीहोता है। बशर्ते भीड़ न हो।
  • मॉल जैसी जगहों पर, खतरा ज्यादा है।क्योंकि यहां पर हवा रुकी होती है। इस वजह से सांस से निकलने वाले ड्रॉपलेट्स हवा में तैरते रहते हैं। एक्सपर्ट्स के मुताबिक, बाहर की हवा का फ्लो वायरस को कम करने में मदद करता है। हालांकि, ज्यादा भीड़ वाले प्लेग्राउंड में ज्यादा जोखिम हो सकता है।

क्या वायरस मैदानों की सतह पर रह सकता है?

  • यह अभी तक साफ नहीं है कि प्लास्टिक या मैटल सतह पर वायरस कितनी देर तक रह सकता है। सेंटर्स फॉर डिसीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन के मुताबिक, किसी वायरस युक्त सतह को छूने के बाद हाथ को चेहरे, नाक या आंख से लगाकर आप कोविड-19 का शिकार हो सकते हैं, लेकिन यह वायरस फैलने का मुख्य जरिया नहीं है।
  • द न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन में प्रकाशित स्टडी के मुताबिक, वायरस सबसे ज्यादा देर तक प्लास्टिक और स्टेनलैस स्टील पर रहता है। इन सतहों पर वायरस 72 घंटों तक रहता है।
  • द लैंसेट में छपी एक और स्टडी बताती है किवायरस स्टेनलैस स्टील और प्लास्टिक पर 4 दिन तक रह सकता है। हालांकि, शोधकर्ताओं ने यह साफ किया है कि इन चीजों पर से वायरस निकालने के लिए जिस तरीके का इस्तेमाल किया है वह सतह को अचानक छूने को लेकर नहीं है।

क्या सतह को डिसइंफेक्ट करना जरूरी?

  • विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, यह स्टडीज लैब के माहौल में की गई थीं। जहां न तो सतह को साफ किया गया था और न ही डिसइंफेक्ट, इसलिए असल दुनिया में इनकी जानकारी सावधानी से दीजानी चाहिए।
  • यह भी साफ नहीं है कि जिस वायरस की शोधकर्ताओं ने खोज की थी उसने संपर्क में आने वालों को संक्रमित किया या नहीं। सीडीसी प्लेग्राउंड में मैटल और प्लास्टिक सतह की सफाई की सलाह देती है, लेकिन इन्हें डिसइंफेक्ट करना जरूरी नहीं है।
  • कुछ स्टडीज बताती हैं कि सूरज की रोशनी सतह पर रह रहे वायरस को कम करने में मदद कर सकती हैं, लेकिन अभी तक यह स्टडी खेल के मैदानों पर नहीं की गई है।

क्या बच्चों को मैदान में मास्क पहनना चाहिए?

  • सीडीसी प्लेग्राउंड में मास्क पहनने की सलाह देता है। यहां तक की फेस मास्क के उपयोग के खिलाफ रहे डब्ल्यूएचओ ने जून में सरकारों से मास्क के प्रचार की बात की। आम लोगों जिन कॉटन मास्क का उपयोग कर रहे हैं, वे सर्जिकल मास्क और एन-95 रेस्पिरेटर जितने प्रभावी तो नहीं हो सकते, लेकिन बड़े ड्रॉपलेट्स से सुरक्षा देते हैं।
  • अमेरिकन एकेडमी ऑफ पिडियाट्रिक्स कमेटीके वाइस चेयरमैन और असिस्टेंट प्रोफेसर डॉक्टर सीन ओ लियरी के मुताबिक, कई बार छोटे बच्चों के लिए मास्क पहनना बुरा भी हो सकता है। इसलिए सावधानी बेहद जरूरी है।
  • डॉक्टर सीन ने बताया किउदाहरण के लिए अगर आपका बच्चा लगातार चेहरा छू रहा है और मास्क एडजस्ट कर रहा है तो हो सकता वह खुद को संक्रमित कर ले। सीडीसी के अनुसार 2 साल से कम उम्र के बच्चों को मास्क नहीं पहनाना चाहिए। इससे दम घुटने का जोखिम होता है।

मैदान में खुदऔर बच्चों की सुरक्षा के लिए क्या करें?

  • अगर मैदान बच्चों से भरा हुआ है तो वहां से लौटने पर विचार करें और किसी और वक्त पर आएं। अगर आसपास बच्चों के हाथ धुलाने के लिए कोई बाथरूम नहीं है तो सीडीसी हैंड सैनिटाइजर रखने की सलाह देता है। पूरे हाथ पर सैनिटाइजर लगाएं और बच्चेको हाथ रगड़नेके लिए कहें। कुछ भी खाने से पहले बच्चे के हाथ साफ कराएं।
  • अगर आप सैनिटाइजर का उपयोग करने पर विचार कर रहे हैं तो पानी की बोतल भी साथ रखें। क्योंकि सीडीसी के मुताबिक, गंदे हाथों पर सैनिटाइजर कम प्रभावी होता है। पहले बच्चे के हाथ धुलाएं और फिर सैनिटाइजर लगाएं।
  • डॉक्टर लियरी बताते हैं कि आखिर में बच्चों को वायरस फैलने का मुख्य कारण न मानें, बड़े लोग बच्चों से ज्यादा तेजी से वायरस फैलाते हैं। यह याद रखें की बच्चों का ध्यान रखने वाले बड़े भी दूसरों से दूर रहें।

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एक्सपर्ट्स की सलाह- अगर खेल का मैदान बच्चों से भरा हुआ है तो घर लौटने के बारे में सोचें और किसी और वक्त पर जाएं।

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Originally published on www.bhaskar.com

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