न थी हाल की जब हमें अपने ख़बर-रहे देखते औरों के एब ओ हुनर
पड़ी अपनी बुराइयों पर जो नज़र तो निगाह में कोई बुरा न रहा
नई दिल्ली (12-01-2018)- हमेशा की तरह आज भी हिंदु या मुसलमान बनकर नहीं, बल्कि सबसे पहले एक भारतीय और फिर पत्रकार होने के बाद ही कुछ कहता हूं। कोई भी अपराध, हत्या रेप या अपहरण हमेशा समाज के लिए घातक है। न अपराधी का कोई मज़हब होता है, न जाति । हिंदुं धर्म को मानने वाले किसी इंसान के साथ होने वाली हत्या या अपहरण जैसी वारदात में चोर, हत्यारा या अपहरणकर्ता हिंदु धर्म को मामने वाला भी शामिल हो सकता है और मुसलमान भी । ऐसे ही मुसलमान के साथ होने वाले अपराध में शामिल अपराधी ही होता न कि कोई हिंदु या मुसलमान।
इतिहास गवाह है कि महाभारत में अभिमन्यू जैसे बहादुर को धोखे से मारने वाला कोई मुसलमान नहीं था, न ही द्रोपदी के कपड़े किसी मुसलमान ने उतारे, न ही कंस कोई मुसलमान था, न ही रावण का इस्लाम से कोई लेना देना था। ठीक ऐसे ही कर्बला की जंग में आल-ए-रसूल के क़ातिल हिंदु नहीं थे। न ही इमाम हसन हुसैन और उनके साथियों को शहीद करने वाला कोई हिंदु था। शिवाजी का सबसे भरोसे का आदमी मुस्लिम ही थी। और महाराण प्रताप का भरोसेमंद भी मलिक काफूर मुस्लिम ही था। अकबर के नौ रत्नों में बीरबल और मान सिंह समेत कई हिंदु धर्म को मानने वाले लोग ही थे। तो क्या हम ये भूल गये कि हर समाज में और हर धर्म को मानने वालों मे अच्छे लोग भी होते हैं और ख़राब भी। जबकि आज दुनियां चांद पर जाने और अंतरिक्ष में बस्तियां बसाने की बात कर रही है, और हम लोग भला अपने सामने की सच्चाई को मानने में क्यों नाकाम हैं।
सरकार बीजेपी की हो या कांग्रेस की या फिर लालू की हो या मुलायम की। भला कौन सा ऐसा दिन है जब किसी गरीब आदमी के दर पर सरकार ने भूख मिटाने का साधन भिजवाया हो। कौन सा ऐसा दिन है जब किसी गरीब का बच्चा अपने स्कूल की फीस के लिए बेफिक्र हुआ हो कि सरकार उसकी फीस भर रही है। कौन ऐसा दिन है जब कोई गरीब या आम आदमी बिना बोझ उठाए या काम करे अपने बच्चों का पेट पाल सका हो। और हां कौन सा ऐसा दिन है जब अंबानियों और बिरलाओं और टाटाओं जैसों के रिश्ते इंदिरा जी राजीव, मुलायम सिंह से लेकर मोदी और बड़े बडे नेताओं के साथ ख़राब रहे हों। मायावती सरकार में भी जेपी खुश था और मुलायम की सरकार में भी। नाम लिखता रहूंगा तो फहरिस्त लंबी हो जाएगी।
लेकिन आज बात करते हैं वो जिससे हम ठीक ऐसे ही मुंह चुराते हैं, जैसे शतुरमुर्ग ख़तरे से बचने के लिए रेत मे मुंह छिपाकर समझता है कि खतरा टल गया। और बिल्ली को देखकर कबूतर के आंख बंद कर लेने से भी ख़तरा टलता नहीं है, बल्कि लालइलाज हो जाता है। बहुत से बाबाओं के डेरों में क्या चल रहा है, सबके सामने है। लेकिन असल को छिपाने या उस पर पर्दा डालने से समाज का ही नुक़सान है। बाबाओं से असल शिकायत उन लोगों के दिलों से पूछो जिनकी बेटियां उनके चंगुल में फसकर बर्बाद हुई हैं। उन बच्चों की माताओं से पूछो जिनको अपने लाल की लाश तक नहीं मिली है। हजारों लड़कियों को कथित रूप से अपनी हवस का शिकार बनाने का दावा करने वाले एक बाबा के आश्रम से बच्चियों को मुक्त कराने के लिए महिला संघठनों को मांग करनी पड़ रही है। प्रज्ञा और असीमाननंद भले ही बेगुनाह लगने लगे हों, लेकिन उनके और नक्सली आतंक जैसे ख़तरों पर पर्दा डालना और बाबाओं और आश्रमों की हक़ीक़त से मुह मोड़ना ख़ुद समाज के लिए घातक है।
गाय पर राजनीति करने और एक धर्म विशेष के मानने वालों को टारगेट करने वाले, अगर अकले हरियाणा में हिंदुओं के ही संचालन मे चल रही गऊशालाओं और नंदीशालाओं में मरने वाली गायों और कुत्तों द्वारा नोची गई गायों, ख़ुद गऊशाला प्रबंधन के हाथों गढ्ढों में दबाई गई गायों की संख्या उजागर कर दें, तो देश में कोहराम मच जाएगा। राजस्थान से लेकर उत्तर प्रदेश और पंजाब में गायों को लेकर क्या स्थिति है इस पर किसी चैनल में डिबेट करने की हिम्मत क्यों नहीं हुई।
लेकिन अफसोस.. हर चैनल में डिबेट के नाम पर मदरसा, मुस्लिम आंतक और तीन तलाक़ ही बचा है। संसद में जब ये आंकड़ा रखा गया कि फिलहाल देश में 24 लाख तलाक़ या पतियों द्वारा छोड़ दी गई महिलाओं में सिर्फ 2 लाख मुस्लिम हैं और गुजरात की एक भाभी जी समेत 22 लाख के क़रीब ग़ैर मुस्लिम और हिंदु महिलाएं हैं, तो भला समाजहित में इंसाफ से परहेज़ क्यों। मुसलमान तो खुश होगा कि कम से कम उसके लिए सरकार चिंतित तो है। और हिंदु समाज के साथ होने वाली नाइंसाफी यानि 22 लाख के क़रीब हिंदु महिलाएं अपने हक़ के लिए भटक रही है। मथुरा से लेकर बनारस और हरिद्वार के विधवा आश्रमों में हिंदु धर्म को मानने वाली महिलाओं के साथ क्या सलूक हो रहा है, ये किसी देखने या दिखाने की हिम्मत किसी ने क्यों नहीं की।
हां ये भी सच है कि तीन तलाक़ जैसा मुद्दा उठने और उस पर सवाल खड़े होने के लिए ख़ुद मुस्लिम समाज और उसके कुछ स्वंभू नेता और धर्म गुरु ही हैं। तलाक़ को लेकर पैग़म्बर ए इस्लाम, रहमतुल्लिलआलमीन हज़रत मौहम्मद(स.) ने कहा था कि तलाक़ जायज़ बातों में सबसे नापसंद काम है। यानि भले ही इसको जायज़ कह दिया गया हो लेकिन जिस बात को ख़ुद आक़ा(स.) ने नापंसद कर दिया तो उसके करने से पहले इंसान को बहुत सोचना चाहिए। साथ ही तालक़ देने के लिए तरीक़े को छोड़कर तलाक़ तलाक़ कहना भी एक आदत बन गया है, जो कि बेहद घातक है। पति पत्नी के बीच मनमुटाव हो सकता है।अगर बात किसी भी तरह न निभ सके तो इसके लिए उसको जलाकर मारने या हत्या करने से बेहतर है, तलाक़ दे दिया जाए। लेकिन तलाक़ देने के बीच जो समय इस्लाम ने तय किया है उसको भी ध्यान रखा जाए। इसके अलावा मुसलमानों में बढ़ती अशिक्षा की वजह से भी कथित आंतक या अपराध की तरफ मुस्लिम नवयुवकों का भटकाव समाज के लिए एक चुनौती है। उसको रोकने की पहल भी समाज को करनी चाहिए। इसके लिए सीधे तौर पर समाज और उसके कथित ठेकेदार पूरी तरह जवाबदेह हैं।
वैसे भी किसी भी धर्म को मानने वाले का कृत्य उस धर्म के लिए सर्टिफिकेट नहीं हो सकता है। हिंदु धर्म को मानने वाला अगर कोई अपराध करता है तो उसके लिए हिंदु धर्म को ज़िम्मेदार नहीं कहा जा सकता है। जैसे कि रावण के कृत्य, कंस के अन्याय, द्रोपदी के चीरहरण, हर्षद मेहता के घोटाले, लालू यादव के चारा घोटाले, नाथुराम गोडसे के हाथो हुए क़त्ल, पाकिस्तान को भारत के ख़ुफिया दस्तावेज़ देने वाली एक आरोपी महिला या ऐसे ही सैंकड़ो और हिंदु धर्म को मानने वालों की वजह से हिंदु धर्म की पवित्रता पर कोई भी सवाल नहीं उठा सकता है। ठीक ऐसे ही अगर कसाब और अफज़ल जैसों की वजह से इस्लाम पर कोई सवाल खड़ा नहीं कर सकता है।
लेकिन बतौर एक भारतीय और पत्रकार, समाजहित में आज एक बात उठाना चाहता हूं। जैसे जैसे इस्लाम को बेवजह बदनाम करने के नाम पर रात दिन चर्चा की जा रही है, लेकिन उसके ख़िलाफ कुछ साबित न कर पाने की ही वजह से आज तक इस्लाम का प्रचार और प्रसार तेज़ी से हुआ है। दुनियां में सबसे तेज़ी से फैलने वाले धर्मो में इस्लाम को प्रमुख माना जाता है। हांलाकि बतौर मुस्लिम मेरे लिए ये एक सुखद अनुभूति है। लेकिन मैं ये बात समझाना चाहता हूं कि जो काम मुगल और मुस्लिम धर्म गुरु तक नहीं कर पाए, आज वही काम यानि इस्लाम का प्रचार और प्रसार पश्चिमी मीडिया और अब कुछ हद तक भारतीय मीडिया ने कर रखा है। बेहद माफी के साथ आगाह करना चाहता हूं कि इस्लाम को बदनाम करने और कुछ बाबाओं और कई दंबगों की काली करतूत से मुंह मोड़ने की दशा में अंजाम शतुरमुर्ग वाला न हो जाए। दुनियां भर के अलावा भारत में भी कई बड़े और कट्टर उन्मादी नेताओं के घर की लड़कियों और नई पीढ़ी का रुझान इस्लाम की तरफ सिर्फ इसी लिए बढ़ा है कि उनके घर में हमेशा इस्लाम और मुसलमान की ही चर्चा रहती होगी.. भले ही खलनायक के तौर पर । लेकिन जब सच्चाई सामने आती थी, तो उनको अपनो पर शर्म और इस्लाम से प्यार हो जाता होगा.। सबूत के तौर पर कई नाम आपके मन में भी आ रहे होंगे। हांलाकि ये कोई पैमान भी नहीं है इंस्लाम छोड़कर दूसरे धर्मों में जाने वाले लोग भी हैं लेकिन आंकड़ा देखा जाए तो इंस्लाम में आने वालों की तादाद ही ज्यादा बताई जाती है।
बहरहाल मरा मरा करते करते राम हो जाने की तरह खलनायक कब हीरो बन जाए ये कहा नहीं जा सकता। लेकिन इतना तो तय है कि समाज को सही दिशा और दशा देने के लिए शिक्षित और समझदार लोगों की ज़िम्मेदारी ज्यादा है। शंभू के हाथों एक मुसलमान को जीवत जला देने से इस्लाम को भले ही कोई नुक़सान हो या नो हो… लेकिन कथित हिंदु आंतक की चर्चा करने वालों के लिए ये एक मिसाल ज़रूर हाथ लग जाती है। चाहे एक चर्च के पादरी को कथिततौर पर जला कर मारने वाला कोई दारा हो.. या फिर कोई शंभू… इन लोगों की हरकतों ने ही शायद कथित हिंदु आतंक की चर्चा को बढ़ावा दिया है। जो कि किसी भी तरह ठीक नहीं है क्योंकि हमारा मानना यही है कि किसी भी धर्म के मानने के अपराध से उस धर्म को जोड़ना सही नहीं है।
लेकिन कहीं ऐसा न हो कि हम मदरसों के ख़िलाफ सबूत ही ढूंडते रह जाएं और हज़ारों कमसिन बच्चियों कुछ बाबाओं के आश्रम में अपना सब कुछ गंवा बैठें। और हम तीन तलाक़ पर बहस करते रहे और गुजरात की भाभी जी की तरह लाखों महिलाएं अपने अधिकारों के लिए विधवा आश्रमों और सड़कों पर भटकने मांगने को मजबूर हो जाएं।
देश की असल समस्या गरीबी है, बेरोज़गारी है, अशिक्षा है, मंहगाई है, करप्शन है, अमीर और गरीब का फर्क़ है। इन पर बहस करो इन को दूर कर दो आंतकी अपने आप ही पैदा होने बंद हो जाएगें।
“एक गरीब मां पत्थर उबालती रही तमाम रात
बच्चे फरेब खाके चटाई पे सो गये”।
(लेखक आज़ाद ख़ालिद टीवी पत्रकार हैं, डीडी आंखों देखीं, सहारा समय, इंडिया टीवी, इंडिया न्यूज़, वॉयस ऑफ इंडिया समेत कई नेश्नल चेनल्स में महत्वपूर्ण पदों पर कार्य कर चुके हैं, वर्तमान में सिटीज़न्स वॉयस न्यूज़ चैनल में बतौर चेनल हेड कार्यरत हैं। नोट-ऊपर लिखे शेर किसके हैं नहीं मालूम लेकिन शायर साहेब का आभार।)
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