गुरुग्राम (04 जनवरी 2018) – दिल्ली हो या गुरुग्राम अस्पतालों की मनमानी थमने का नाम ही नहीं ले रही है।ऐसा ही एक और मामला सामने आया है गुरुग्राम में, जहां एक मरीज के परिजनों का आरोप है कि उनको 7 महीने के इलाज के लिए 84 लाख का बिल थमा दिया गया है। इतना ही नहीं अब इलाज के नाम पर एक निजी अस्पताल मरीज से 9 लाख रुपए भी वसूलने का आरोप भी अस्पताल पर लग रहा है। इस मामले पर फिलहाल अस्पताल की तरफ से कोई जवाब नहीं दिया जा रहा है। लेकिन मरीज के परिजनों ने अपनी शिकायत सीएम विंडो पर दर्ज करा दी है।
गुरुग्राम के पारस अस्पताल के डॉक्टरों पर गलत ऑपरेशन व इलाज करने का आरोप लगा है। हरियाणा के हिसार जिले के जंगबीर पहल ने सीएम ¨विंडो पर दी गई अपनी शिकायत में कहा है कि उनका 24 वर्षीय भांजा सुनील कुमार, गुरुग्राम के पारस अस्पताल में पिछले 6 माह से दाखिल है, और डॉक्टरों के लापरवाही की वजह से सुनील वेंटिलेंटर पर पहुंच गया है। मरीज के मामा जगबीर सिंह का आरोप है कि अब तक अस्पताल वाले 84 लाख रुपये से ज्यादा का बिल बना चुके हैं और ठीक होने के बजाय मरीज की हालात दिन प्रति दिन बिगड़ती जा रही है।
दरअसल सुनील बीते जून माह में नहर में नहाते समय घायल हो गया था। इस हादसे में सनील की गर्दन और सिर में गंभीर चोटें आई थी। चोटिल होने के बाद सुनील का हिसार के एक अस्पताल में गर्दन का ऑपरेशन किया गया था। बाद में हिसार के डॉक्टरों ने बताया कि गर्दन की चोट का ऑपरेशन कर दिया गया और सिर में चोट होने की वजह से अब सुनील को न्यूरो सर्जन को दिखाने की जरूरत है। जिसके बाद 16 जून 2017 को गुरुग्राम के पारस अस्पताल में लाया गया था। मरीज के मामा जगबीर सिंह का आरोप है कि हमने न्यूरो सर्जन से दिखाने की मांग की। लेकिन पारस के डॉक्टरों ने कहा कि सुनील का इलाज न्यूरो सर्जन नहीं, बल्कि नेक-स्पाइन सर्जन देखेंगे।जगबीर का आरोप है कि डॉक्टरों ने हमारे मना करने के बाद भी गर्दन का ऑपरेशन कर रॉड डाल दी, जबकि हमने बताया था कि गर्दन का ऑपरेशन हो चुका है और अब ऑपरेशन करने की जरूरत नहीं लेकिन डॉक्टरों जबरन ऑपरेशन किया। ऑपरेशन करने के दो माह बाद जब सुनील की तबियत ज्यादा खराब होती दिखी, तो डॉक्टरों ने कहा कि ऑपरेशन गलत हो गया और गर्दन में डाली गई रॉड को निकाल दिया। मामा जंगबीर का आरोप है कि डॉक्टरों ने सुनील के बिल में वो दवा और इंजेक्शन भी शामिल किए हैं, जो सुनील को लगाए ही नही गये।
कुल मिलाकर एक बार फिर यही सवाल सामने है कि क्या अस्पताल अपने मरीजों को अपनी कमाई का साधन मानने लगे हैं।