ग़ाज़ियाबाद (12 जनवरी 2024)-
बड़े ही ग़ौर से सुन रहा था ज़माना
हम ही सो गए दास्तां कहते कहते
अलविदा हाजी तय्यब कु़रैशी
दुनिया की सबसे बड़ी सच्चाई यही है कि “हर नफ्स को मौत का मज़ा चखना है”। कल ब-रोज़ जुमा ग़ाज़ियाबाद के हरदिल अज़ीज़ आम इंसान को भाई की तरह प्यार देने वाले ग़ाज़ियाबाद में आम इंसान ख़ासतौर से मुस्लिम समाज की मज़बूत आवाज़ हाजी तय्यब कु़रैशी साहब इस दुनियां ए फानी को छोड़कर अपने मालिक ए हक़ीक़ी से जा मिले। (इन्नालिल्लाहि व इन्नालिल्लाहिराजिऊन) अल्लाह का उनपर ख़ास करम रहा कि उनकी नमाज़ ए जनाज़ा को जुमे का दिन मयस्सर हुआ। अल्लाह मरहूम जनाब हाजी तय्यब कु़रैशी साहब की मग़फिरत फरमाए उनके दरजात बुलंद करे उनके एहले ख़ाना को सब्र ए जमील अता फरमाए।
दरअसल हाजी तय्यब कु़रैशी सिर्फ एक शख्सियत न होकर एक दौर थे जिसने ग़ाज़ियाबाद में बेहद कमज़ोर दौर में भी मज़बूत आवाज़ बनकर लोगों के जज़्बात को समझा। यह सच है की हाजी तैय्यब कुरैशी एक एक सियासी शख्सियत थे और बहन जी के साथ बीएसपी में रहकर काफी समय तक गाजियाबाद की आवाज बने रहे इसके अलावा चौधरी अजीत सिंह के साथ भी उन्होंने एक राजनीतिक पारी खेली लेकिन निजी तौर पर वह सियासी नहीं थे बल्कि सियासत में रहकर भी एक साफ सुथरी और निष्पक्ष छवि जनता के सामने पेश करते रहे और शायद यही वजह है की सियासत के मैदान में समझौतों के दम पर वह कोई बड़ा पद तो हासिल न कर सके लेकिन जनता के दिल में उनका अलग मुकाम था।
हाजी तय्यब कु़रैशी के जाने से ग़ाज़ियाबाद में कमज़ोरों और मुस्लिम समाज की आवाज़ उठाने वाली क़तार में एक ख़ला पैदा हुई है उसको भरने में समय लगेगा।
हाजी तय्यब कु़रैशी एक कामयाब सामाजिक पारिवारिक ज़िंदगी गुज़ार कर एक भरा पूरा परिवार छोड़कर गए। यूं तो हाजी तय्यब कु़रैशी अपने आप में बेमिसाल थे लेकिन उनके बड़े बेटे हाजी ख़ालिद कुरैशी में अपने पिता जैसी नरमी और समझ देखने को मिलती है जोकि यक़ीनन अपने पिता की तरबीयत का असर ही कहा जा सकता है। ग़ाज़ियाबाद की मुस्लिम अवाम ख़ासतौर से हाजी तय्यब कु़रैशी को अर्से तक अपने दिलों में बसाए रखेगी।