रंजन गोगोई शर्म करो-शर्म करो क्यों उचित नहीं?
भारत की सबसे बड़ी अदालत और दुनियां के सबसे बड़े लोकतंत्र की जनता के लिए इंसाफ की सबसे बड़ी उम्मीद सुप्रीमकोर्ट के पिछले चीफ जस्टिस यानि मुख्य न्यायाधीश रहे श्रीमान रंजन गोगोई साहब ने आज यानि 19 मार्च 2020 को बाक़ायदा राज्यसभा के सदस्य के तौर पर शपथ यानि क़सम खा ली है कि ईमानदारी और किसी भी भेदभाव के बग़ैर जनता और देश की सेवा करेंगे। हांलाकि कुछ इसी तरह की क़सम उन्होने उस वक़्त भी खाई होगी जब उनको सुप्रीमकोर्ट का चीफ जस्टिस बनाया गया था, कि मैं बिना के दबाव के इंसाफ करूंगा। ख़ैर ये बात कुछ बाद में।
तो हम बात कर रहे थे कि सुप्रीमकोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस या मुख्य न्यायाधीश या यूं कहें कि देश में इंसाफ के सबसे बड़े मंदिर के सबसे बड़े मठाधीश ने राज्यसभा यानि देश की सबसे बड़ी पंचायत यानि संसद के सदस्य के तौर पर शपथ ले ली है। मुख्य न्यायाधीश जैसी आदरणीय सेवा के बाद श्रीमाम रंजन गोगोई जब राजनीति जैसी विवादित फील्ड की सदस्यता या कथिततौर पर ईनाम लेने की जिस वक़्त शपथ ले रहे थे, उसी दौरान उनके ही समकक्ष कई सदस्यों ने शेम शेम यानि शर्म करो शर्म करो जैसे नारे लगा कर हंगामा मचा रखा था। हम शेम शेम करने वालों के नारों से सहमत नहीं हैं। क्योंकि राज्यसभा हो या लोकसभा, संसद तक पहुंचने के लिए नेता या कोई भी बड़े से बड़ा शख्स भी ये जानता है कि 130 करोड़ की आबादी वाले देश के कुछ गिने चुने लोगों मे शामिल होने के लिए क्या क्या पापड़ नहीं बेलने पड़ते। श्रीमान रंजन गोगोई के राज्यसभा सदस्य के तौर पर शपथ के दौरान शेम शेम करने वाले लोगों को ये समझना चाहिए कि इस समय भले ही वो उनको बधाई न देते, लेकिन यहां तक पहुंचने के लिए श्रीमान रंजन गोगोई साहब की तपस्या त्याग मेहनत और समर्पण को समझना चाहिए था। शेम शेम करने वाले लोगों से हम पूछना चाहते हैं कि ये तो वो जानते ही होंगे कि कोई भी छोटे से छोटा पद पाने के लिए कितनी कु़र्बानी देनी पड़ती है। तो क्या श्री रंजन गोगोई राज्यसभा तक वैसे ही पहुंच गये। अगर आप आंकलन करें तो श्री रंजन गोगोई की मेहनत, त्याग और कुछ पाने की तमन्ना से भी बड़ा है उनका रिस्क यानि जोखिम। शेम शेम करने से पहले इतना तो समझ लेते कि श्री रंजन गोगोई ने यहां तक पहुंचने के लिए जो रिस्क लिया था वो किसी के लिए आसान नहीं था। इज्जत का रिस्क, देश के इंसाफ की देवी के तराजू की क्रेडिबिललिटी का रिस्क। राज्यसभा पहुंचने या कथिततौर पर इसी तरह के कुछ दूसरे हिडन ईनाम पाने के लिए श्री रंजन गोगोई साहब ने जो मेहनत, स्टडी और लगन का सबूत दिया है उसको भी समझना होगा। सुप्रीमकोर्ट का चीफ जस्टिंस रहने वाले श्री रंजन गोगोई साहब के नाम, देश का सबसे बड़ा रिकार्ड तब बना जब वो अपने तीन अन्य जज साथियों के साथ देश में पहली बार सुप्रीमकोर्ट और देश की न्याय व्यवस्था पर सवाल उठाने के लिए मीडिया के सामने बाक़ायदा प्रेस कांफ्रेस करते हुए देखे गये थे। हांलाकि कहा तो ये भी जाता है कि इसके बाद उन्होने अपने साथियों के कंधे पर बंदूक चलाकर सरकार के पाले में जाकर अपनी क़ाबलियत और घुट्टी मे शामिल राजनीति का परिचय देते हुए सुप्रीमकोर्ट के चीफ जस्टिस की कुर्सी पर अचूक निशाना साथ लिया था। हांलाकि कुछ लोग तो ये भी आरोप लगा रहे हैं कि प्रेस कांफ्रेंस के बाद ही आगे की रणनीति और समझौतो के तहत सबसे बड़ी अदालत के मुखिया तक का सफर संभव हो सका था। तो क्या इसके बाद भी किसी नादान को श्री रंजन गोगोई की समझदारी पर शक रह सकता है। इसके अलावा चाहे मामला राफेल जैसे हज़ारों करोड़ के कथित घोटाले का हो या फिर सीबीआई के दो डायरेक्टरों का एक दूसरे पर करोड़ों की रिश्वत लेने के आरोपों का मामला या फिर बाबरी मस्जिद को बनाने के लिए किसी मंदिर को न तोड़े जाने के सबूत, पहली बार मंस्जिद में मूर्तियां रखने का अपराधिक मामला या फिर 1992 में अदालत के आदेशों को रौंदते हुए सैंकड़ो साल पुरानी मस्जिद को तोड़ने का अपराधिक व कंटेंप्ट ऑफ कोर्ट के मामले के बावजूद ये कहना कि मस्जिद बनानी है तो पांच एकड़ ज़मीन लो और कहीं और बनाओ। राज्यसभा में श्री रंजन गोगोई साहब की शपथ के दौरान शेम शेम करने वालो इतना तो सोच लेते कि इंसाफ के सबसे बड़े मंदिर के मुखिया के आसन पर बैठकर इतना बड़ा फैसला सुनाने की हिम्मत क्या हर कोई जुटा सकता है। शेम शेम करने वालो हमको आपसे शिकायत है, कि एक इंसान की ख़ुशी को किरकिरी करने के लिए शेम शेम करने से पहले क्या आपने सोचा कि श्री रंजन गोगोई ने इस फैसले को अंतिम रूप देने से पहले किस किस तरह के समझौते और दबाव का सामना नहीं किया होगा। किसी का विरोध करना और उसके ऊपर उंगली उठाना बहुत आसान है। एक सदस्य के शपथ के दौरान शेम शेम का यानि शर्म करो शर्म करो का नारा लगाकर आपने राज्यसभा के इतिहास में उस काले अध्याय को जोड़ दिया है कि जब आपने ये तक नहीं सोचा कि सुप्रीमकोर्ट के चीफ जस्टिस के पद पर बैठे एक शख्स के विरुद्ध एक महिला ने वही आरोप लगाए जिसके लिए ख़ुद सुप्रीमकोर्ट कहता है कि पहले एफआईआर लिखो और गिरफ्तारी करो और महिला को इंसाफ देने के लिए जांच करो। तो क्या आपको शेम शेम करने से पहले ये ख़्याल आया कि कितने दबावों, क़ुर्बानियों और समझौतों के बाद कोई यहां तक पहुंचा है। राज्यसभा के सदस्य के तौर पर शपथ के दौरान श्रीमान रंजन गोगोई साहब के ख़िलाफ शेम शेम यानि शर्म करो शर्म करो जैसे घटिया नारे लगाने वालो क्या आपने कभी सोचा कि राफेल जैसा मामला हो, या फिर कोई ऐसा मामला, जैसे फैसलो को लेने के लिए श्रीमान रंजन गोगोई साहब ने कानून की मोटी मोटी किताबें न जाने कितनी बार पढ़ी होंगी। और फिर सबसे बड़ी बात तो ये कि भले ही मेहनत कितनी ही हो, कुर्बानी कितनी भी हो लेकिन सबसे बड़ा सवाल तो है रिस्क का यानि जोखिम का है। क्या आंखों पर पट्टी बांधे इंसाफ की देवी की तराज़ू पर, देश की सबसे बड़ी अदालत के मुखिया पर, क्या देश की, दुनियां की, जनता की, मीडिया की नज़र नहीं रहती, जबकि एक ही फैसले से पूरी दुनियां में देश की और हमारे इंसाफ के तराज़ू की थू थू हो सकती है! इस सबको जानते हुए श्रीमान रंजन गोगोई ने कई फैसलों के दौरान कथिततौर पर जितना रिस्क लिया है, क्या आपने कभी उसके बारे में सोचा है। ये हिम्मत सब के अंदर नहीं होती जनाब।
किसी दूसरे पर उंगली उठाना बेहद आसान है, वैसे भी श्रीमान रंजन गोगोई एक बड़ा नाम है उनके पिता ख़ुद एक बड़े राजनीतिज्ञ थे, राजनीति उनकी घुट्टी में शामिल है। राज्यसभा जैसा पद उनके लिए कोई बड़ी बात नहीं है, हो सकता है कि अब कुछ लोग ये भी कहने लगें कि राज्यसभा के अलावा भी उनको कई ईनाम दिये गये हैं। तो साहब इस तरह की बातों से परहेज़ करना चाहिए। बस इतना याद रखिए कि श्रीमान रंजन गोगोई ने जो बात ख़ुद कही थी कि रिटायरमेंट के बाद सरकार से मिलने वाले पद किसी के भी कार्यकाल के फैसलों पर शक पैदा करता है, और इसके अलावा स्व. अरुण जेटली ने भी यही कहा था कि रिटायरमेंट के बाद मिलने वाले पद कई तरह के सवाल खड़े करते हैं। लेकिन इस सबके बावजूद श्रीमान रंजन गोगोई साहब के शपथ ग्रहण के दौरान शर्म करो शर्म करो जैसे नारे गूंजना बेहद गंभीर मामला है। राज्यसभा की सदस्यता जिसके बारे में कुछ लोग यहां तक कहते हैं कि ये तो चंद करोड़ रुपये में भी खरीदी जा सकती है, जैसे कथित ईनाम पर श्रीमान रंजन गोगोई से जलना किसी भी तौर पर उचित नहीं है। और फिर रहा सवाल शपथ का तो इसी तरह की शपथ उन्होने कई बार तब भी ली थी जब उनको कभी जज या चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया तक बनाया गया था, तो भला ऐसी एक्सपीरिंयस़्ड परस्नलिटी पर उंगली उठाना और शेम शेम करना कैसे उचित माना जा सकता है। अंत मे इतना ही कहना है कि भले ही आप किसी की कुर्बानी और समर्पण को देश के इंसाफ के साथ कथिततौर पर गद्दारी या फिर इंसाफ के स्तंभ से धोखा कहो, लेकिन किसी दूसरे को शेम शेम कहने से पहले ख़ुद पर शेम करो शर्म करो और देश के वर्तमान हालात पर दूसरों पर उंगली उठाने से पहले ख़ुद भी सोचो कि हमारी जिम्मेदारी क्या है और हमको खुद क्या करना है। और हां कीचड़ हमेशा दूसरों पर उछालने के लिए ही नहीं होती बल्कि कभी कभी उसमें फूल भी खिल सकते हैं। और देश को एक बेहद लुभावना सबका साथ सबका विकास और सबका विश्वास जैसा नारा दिया जा सकता है।