
मुंबई (26 नवंबर 2019)- महाराष्ट्र में बाला साहेब ठाकरे का ट्रेंड किया हुआ और शिव सेना का सच्चा सिपाही यानि शिव सैनिक यहां की राजनीतिक उठा-पठक में पार्टी के लिए संजीवनी बन कर उभरा है। साथ ही सियासत की लगभग आधी सैंचुरी मार चुके शरद पवार के कार्यकर्ताओं ने भी साबित कर दिया है कि ज़मीनी राजनीति में शरद पवार के पास आज भी पावर है।
दरअसल महाराष्ट्र की सियासत में मंगलवार का दिन भी इतिहास के तौर पर याद किया जाएगा। भले 26/11 की यादें आज भी यहां दिलों को दुखाती हैं लेकिन इस बार तो 26/19 में राजनीतिक इतिहास के तौर पर याद किया जाएगा, जब 78 घंटे के डिप्टी सीएम अजित पवार और 80 घंटे के सीएम यानि देवेंद्र फड़णवीस को याद किया जाएगा।
महाराष्ट्र की सियासत को लेकर सुप्रीम कोर्ट की सख़्ती और फ्लोर टैस्ट के इम्तिहान से घबरा कर शायद देवेंद्र फड़णवीस और अजित पवार के पैर उखड़ गये हैं। दोनों ने ही एक के बाद एक करके फ्लोर टेस्ट से पहले महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री और उप मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया है।
इस मौके पर देवेंद्र फडणवीस ने लगभग खिसियाहट भले लहजे में कहा कि चुनावों में महाराष्ट्र की जनता ने बीजेपी-शिवसेना गठबंधन को जनादेश दिया था। उनका कहना था कि महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव 2019 में हमारे 105 एमएलए जीते थे, यानी 67 प्रतिशत सीटों पर हमारे ही प्रत्याशी जीते थे। फड़णवीस का कहना था कि हम तो सरकार बनाने के लिए तैयार थे, लेकिन शिवसेना नंबर गेम और सौदेबाजी करने लगी थी। देवेंद्र फडणवीस ने गठबंधन टूटने पर सफाई दी कि मेरे पास बहुमत नहीं है, और ढाई-ढाई साल सीएम पद का वादा नहीं किया था। मुंबई में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने इस्तीफा के ऐलान के साथ प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान कहा कि कुछ ही देर पहले मेरे पास डिप्टी सीएम अजित पवार आए थे। उन्होंने बताया था कि कुछ कारणों से मैं आपके यानि बीजेपी सरकार के गठबंधन का हिस्सा नहीं बन सकता हूं। ऐसे में अजित पवार के इस्तीफे के बाद मेरे पास बहुमत नहीं है। इसलिए मैं भी राज्यपाल को अपना इस्तीफा देने जा रहा हूं।
लेकिन इस सबके बीच शरद पवार की राजनीतिक समझ ने बड़ा काम किया वहीं शिव सेना के सिपाही यानि शिव सैनिकों ने भी उद्धव को जता दिया कि वो उनके लिए कुछ भी कर सकते हैं। दरअसल चर्चा यही है कि जब अजित पवार ने बीजेपी से हाथ मिलाकर खुद को डिप्टी सीएम और देवंद्र फड़णवीस को सीएम की कुर्सी तक पहुंचा लिया था। तो उनके पास सभी विधायकों को कै़द करने या उनको क़ाबू रखने का सबसे बड़ा चैलेंज था। इसके लिए कभी विधायको दिल्ली या गुरुग्राम या फिर किसी अज्ञात जगह पर अपने क़ाबू में रखना था। लेकिन शरद पवार ने अपने कार्यकर्ताओं को सीधे एक्शन में जाने को बोल दिया और शिव सैनिक तो रहता ही एक्शन मॉड में है। बस फिर क्या था जहां जहां कथित तौर पर विधायकों को क़ैद किया गया या कोई विधायक छिपाया गया वहां रेड करके उनको बाहर निकाला गया। यहां तक कि कार्यकर्ताओं ने अपने विधायकों की अपने स्तर पर लोकेशन निकाली और उनको पार्टी मुखिया तक पहुंचा दिया। ऐसे में अजित पवार या बीजेपी का कथिततौर पर दिया हुआ कोई भी लालच विधायकों को बांध न सका।
मजबूरन सत्ता का एक हवाई क़िला सिर्फ 80 घंटों में ही ढेर हो गया। लेकिन इस सबके बीच जहां राजनीति में कर्नाटक. गोवा और कई राज्यों का ज़िक्र होगा तो संविधान दिवस पर दुनियां के सबसे लोकतंत्र की सबसे बड़ी ताक़त यानि वोटर और कार्यकर्ताओं की असल ताक़त भी याद की जाएगी।