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लॉकडाउन से नवाबों के शहर से सुहाग नगरी तक दिहाड़ी मजदूर बेरोजगार, आगरा का जूता और कानपुर का चमड़ा उद्योग बंद



कोरोनावायरसके चलते देश में 14 अप्रैल तक 21 दिनों का लॉकडाउन है। हालांकि, उत्तर प्रदेश में 22 मार्च को जनता कर्फ्यू के बाद अधिकतर जिलों में 23 मार्च से लॉकडाउन कर दिया गया था। नतीजा औद्योगिक इकाइयां ठप हो गईं। चाहे वो लखनऊ का चिकनकारी या जरदोजी काम हो या आगरा काजूता उद्योग। इसका सीधा असर दिहाड़ी मजदूरों पर पड़ा। मजदूरों ने जैसे-तैसेलॉकडाउन के 14 दिन बिता दिए,लेकिनकोरोनावायरस से संक्रमितों की संख्या घटने के बजाय बढ़ती जा रही है। उत्तर प्रदेश सरकार ने स्पष्ट कर दिया है कि, यदि यही हालत रहे तो लॉकडाउन आगे भी बढ़ेगा। ऐसे में व्यवसाय ठप रहे तो दिहाड़ी मजदूरों के सामने खाने का संकट खड़ा हो रहा है। दैनिक भास्कर ने यूपी के10 शहरों के प्रमुख उद्योग व उनसे जुड़े कामगारों का हाल जाना।

1. लखनऊ: चिकनकारी और जरदोजी

21 दिनों के लॉकडाउन के चलते लखनऊ के चिकन के कपड़ों का कारोबार ठप है। पुराने लखनऊ में रहने वाले ऐसे कारीगरों का परिवार दिहाड़ी मजदूरों की तरह ही जीवन जीते हैं। लंबे समय से चिकन कारोबारी में जुड़ी आशमा हुसैन बताती हैं चिकन और जरदोजी कारीगरों का न श्रम विभाग में रजिस्ट्रेशन हैं और न ही इनका खाता है। इसलिए उत्तर प्रदेश सरकार से एक हजार रुपए की मदद भी नहीं मिली। सरकार को इनके बारे में अलग से सोचना होगा।

पुराने शहर लखनऊ में घर-घर चिकनकारी का काम होता है।

सप्ताह में मिलती थी मजदूरी, अब नहीं बचे पैसे
20 साल से जरदोजी का काम कर रहे नफीस काजी ने बताया कि दिन में 180 से लेकर 350 तक कमाते रहे हैं। हफ्ते में मजदूरी मिलती है। जितना काम, उतनी दिहाड़ी तय होती है। अब घर में पैसे नहीं बचे हैं। फिलहाल हमारे मोहल्ले वाले हम सबकी मदद कर रहे हैं। इतने रुपए भी नहीं कमाएकि महीने भर घर में बैठकर खा सकेंगे।

500 करोड़ रुपए के नुकसान का अनुमान

फैशन डिजाइनर आशमा के मुताबिक- पूरे लखनऊ में चिकनकारी का बिजनेस कितना बड़ा है? इसका कोई तय आंकड़ा तो नहीं है,लेकिन इसके करीब400-500 करोड़ रुपए के होने का अनुमान है। यहां इस तरह के गारमेंट्स के मैन्‍यूफैक्‍चरर्स की संख्‍या करीब 1500 से 2000 है। इनमें से कइयों का सालाना कारोबार 1.5 करोड़ से 2 करोड़ के बीच है। लखनवी चिकन गारमेंट्स की मांग केवल देश में ही नहीं, बल्कि भारत के बाहर यूरोप, ऑस्‍ट्रेलिया, अमेरिका, कनाडा आदि देशों में भी है। टोटल प्रोडक्‍शन का लगभग 10-15% यहां से निर्यात होता है। करीब पांच लाख से ज्यादा कारीगर बेरोजगार हो गए हैं। हमनेतो अपने साथ काम करने वाले कारीगरों को एक हफ्ते की मजदूरी देदी थी। येदिहाड़ी मजदूरी में नहीं आते, बल्किहैंडीक्राफ्ट स्किल में आते हैं। इसलिए इन्हेंलॉकडाउन में राज्य सरकार की मदद नहीं मिल पाएगी।

होलसेलर्स के सभी आर्डर रद्द हुए
लखनवी चिकन घर के मालिक विनोद खन्‍ना ने बताया कि कढ़ाई का काम लखनऊ में घर-घर में होता है। चिकन की कढ़ाई केवल हाथ से की जाती है। पूरा प्रोडक्‍ट तैयार होने में 1 महीने से लेकर 5-6 महीने तक का वक्‍त लगता है, जो कढ़ाई के पैटर्न पर निर्भर करता है। चिकन के गारमेंट्स के लिए होलसेलर्स के पास ऑर्डर्स जनवरी-फरवरी में ही आ जाते हैं। लेकिन इस समय सभी ऑर्डर कैंसिल कर दिए जा रहे हैं। जिनका एडवांस हैं, वो भी कैंसिल कररहे हैं। हालात ही ऐसे हैं कि कोई कुछ नहीं कर सकता।

लखनऊ: दिहाड़ी पर काम करते हैं चिकनकारीमजदूर।

2. मेरठ: स्पोर्ट्स इंडस्ट्री

लॉकडाउन से मेरठ की स्पोर्टस इंडस्ट्री से जुड़े हजारों कर्मचारियों के सामने दो वक्त की रोटी का संकट खड़ा हो गया है। स्पोर्ट्स इंडस्ट्रीज से जुड़े अधिकतर कर्मचारी प्रति पीस के हिसाब से अपनी मजदूरी करते हैं। यानि दिनभर में वह कितने पीस बनाता है उसी हिसाब से उसे पैसे मिलते हैं। लेकिन लॉकडाउन होने से अब ये लोग घर पर ही खाली बैठे हैं।

जल्द नहीं मिली कोई सहायता तो भूखे रहने की नौबत आएगी

जानी के रहने वाले अहसान ने बताया कि वह शहर में एक स्पोर्टस कारोबारी के यहां क्रिकेट की गेंद बनाने का काम करता है। एक दिन में वह 300 रुपए तक मजदूरी कर लेता है, लेकिन अब लॉकडाउन की वजह से वह घर पर ही है। अभी दो-तीन दिन का राशन तो घर में लेकिन, उसकेबाद क्या होगा, कैसे वह परिवार के लिए दो वक्त की रोटी का इंतजाम करेगा पता नहीं। अहसान का श्रम विभाग में भी रजिस्ट्रेशन नहीं है, ऐसे में उसे सरकार की ओर से मिलने वाली सहायता भी नहीं मिल सकेगी। जानी के ही सुरेंद्र का भी कहना है कि वह बल्ले बनाने की एक फैक्ट्री में काम करता है। वहां उसे प्रति बल्ले के हिसाब से ही पैसे मिलते हैं, अब रविवार से वह घर पर खाली बैठा है। अभी 14 अप्रैल तक लॉकडाउन किया गया है, कैसे परिवार का पेट भरेगा वह यह सोचकर परेशान है। घर में जो थोड़ा बहुत राशन है वह भी धीरे-धीरे खत्म हो रहा है। यदि जल्दी कोई सहायता नहीं मिली तो परिवार के भूखा रहने की नौबत आ जाएगी।

करोड़ों का व्यापार ठप, दिहाड़ी मजदूर परेशान

व्यापारी नेता लोकेश अग्रवाल का कहना है कि लॉकडाउन से शहर का ही नहीं पूरे देश का कारोबार प्रभावित हुआ है। मेरठ जिले में ही करोड़ों का कारोबार प्रभावित है। सबसे अधिक प्रभाव दैनिक मजदूरों पर पड़ रहा है। ऐसे मजदूर जो रोज कमाकर ही अपने परिवार के लिए रोटी का इंतजाम करते हैं। उन्हें सबसे अधिक परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।

3. कानपुर: चमड़ा उद्योग

कानपुर के चमड़े की डिमांड पूरे विश्व में है। यूरोपीय देशों से लेकर चीन, उत्तरी कोरिया और इंडोनेशिया में कानपुर का बना हुआ लेदर मटेरियल एक्सपोर्ट किया जाता है। जब से कोरोनावायरस ने दस्तक दी तो यूरोपीय देशों समेत पड़ोसी देशो ने सभी तरह के आर्डर कैंसिल कर दिए है। विदेशों को जाने वाले चमड़े से बने उत्पाद बंदरगाहों पर पड़े है। इसके साथ ही बड़ी संख्या में माल गोदामों में पड़ा हुआ है। आर्डर कैंसिल होने के बाद चमड़ा कारोबारियों को सबसे बड़ा नुकसान हुआ है।

कानपुर में चमड़ा उद्योग ठप होने से मजदूर बेरोजगार हुए हैं।

25 हजार करोड़ का नुकसान

लेदर इंडस्ट्री वेलफेयर एसोसिएशन के प्रवक्ता अय्यर जमाल ने कहा- कोरोनावायरस की वजह से चमड़ा उद्योग को लगभग 25 हजार करोड़ का नुकसान हो चुका है। अभी इस संबध में क्लोजिंग की वजह से नुकसान की पूरी डिटेल आनी बाकी है। लॉकडाउन की वजह से कच्चा चमड़ा भी सड़ कर बर्बाद हो रहा है।

सरकार राशन का करा दे इंतजाम

चकेरी के जाजमऊ चुंगी में रहने वाले आदर्श ने बताया कि मैं बस्ती का रहने वाला हूं। यहां पर अपने परिवार के साथ रहता हूं। मैं और मेरा छोटा भाई टेनरी मे काम कर के अपने परिवार और गांव में रहने वाले माता पिता का भरण-पोषण करते हैं। कोरानावायरस का असर चमड़ा उद्योग पर होली से पहले ही दिखने लगा था। विदेशों से मिलने वाले सभी आर्डर लगातार कैंसिल हो रहे थे। जिन आर्डरों पर काम चल रहा था उनको हमने दिन-रात काम करके पूरा कर दिया था। इसके बाद वो माल विदेशों को नहीं जा सका। होली की छुट्टी पर सभी मजदूर अपने-अपने गांव चले गए।

छुट्टी के बाद जब हम लोग वापस लौटे हमे हफ्तें में तीन या चार दिन ही मात्र काम मिलने लगा। एक दिन की दिहाड़ी 300 रुपए मिलती थी। जब लगातार काम नहीं मिलेगा तो हम लोग अपने परिवार का पालन पोषण कैसे करेंगे। लॉकडाउन के बाद तो हम लोग गांव भी नहीं जा सकते हैं। अपने-अपने घरों के अंदर रहने का मजबूर हैं। जो हमारे पास पैसा था वो आटा, दाल, चावल सब्जी खरीदने में खर्च हो गए। हमारे सामने सबसे बड़ी मजबूरी यह कि 14 अप्रैल तक कैसे जीवन व्यतीत करेंगे? अली ने कहा- सरकार को हमें एक हजार रुपए की जगह राशन दे दे तो परिवार की जरूरतें पूरी हो जाएंगी।

4. फिरोजाबाद: कांच उद्योग

लॉकडाउन की वजह से सुहागनगरी फिरोजाबाद के कांच कारखाने भी बंद कर दिए गए हैं। कारखानों में काम करने वाले मजदूरों के सामने दो वक्त की रोटी का इंतजाम करना भी मुश्किल हो रहा है। फिरोजाबाद के गांव जरौली कलां में रहने वाले 55 वर्षीय रामलाल बताते हैं कि वह चूड़ी कारखाने में जुड़ाई का काम करते हैं। जहां से मिलने वाले पैसे से वह किसी तरह घर का खर्च चलाते हैं। उनके पास खेतीबाड़ी भी नहीं है। उनका पूरा परिवार जिसमें पत्नी राममूर्ति, दो बेटी शिखा और दीपा के अलावा एक छोटा बेटा सुरेंद्र हैं, जिनके खर्च की जिम्मेदारी भी उनके कंधों पर है। कारखाना 21 दिनों के लिए बंद हो जाने के बाद वह काफी परेशान हैं। सरकार की तरफ से मिलने वाली सहयोग राशि भी उन्हें प्राप्त नहीं हुई है। उनके पास करीब 5 दिन का राशन रह गया है। उसके बाद वह किस तरह परिवार का भरण पोषण कर सकेंगे, यह सोचकर वह परेशान हैं।

लॉकडाउन संकट की घड़ी जैसा, राम का नाम लेकर जी रहे

राजा का ताल में रहने वाले 48 वर्षीय मोती सिंह का कहना है कि उनका परिवार उनकी मजदूरी से ही चल रहा है। 12 घंटे कारखाने में पसीना बहाने के बाद उन्हें ढाई सौ रुपए मिलते हैं। जिससे वह दो वक्त की रोटी का इंतजाम कर पाते हैं। उनके पास तो एक भी दिन का राशन नहीं है। सरकार द्वारा भी कोई सहयोग उन्हें प्राप्त नहीं हुआ है। फिलहाल उन्होंने गांव के ही कुछ लोगों से राशन उधार लिया है, जिसे कारखाना शुरू होने के बाद वह वापस कर देंगे। वह कहते हैं कि यह 21 दिनों का लॉक डाउन उनके लिए संकट की घड़ी जैसा है। इन दिनों में वह प्रत्येक दिन राम का नाम लेकर गुजारते हैं। उनका परिवार जिसमें पत्नी और दो बेटे हैं का पूरा सहयोग मिल रहा है इसलिए वह इस विषम परिस्थिति का सामना कर पा रहे हैं। लॉक डाउन में हो रहे नुकसान को लेकर द गिलास इंडस्ट्रीज के हनुमान प्रसाद गर्ग बताते हैं कि प्रतिदिन कारखानेदारों को करीब 60 से 80 लाख प्रति दिन के हिसाब से नुकसान उठाना पड़ रहा है। लेकिन कर भी क्या सकते हैं? इस दरमियान पूर्व में मिले आर्डर भी कैंसिल हो चुके हैं।

5. कन्नौज: इत्र उद्योग

कन्नौज का मुख्य व्यापार इत्र उद्योग है, जो यह घर-घर में होता है। इस व्यापार से सबसे ज्यादा किसान और मजदूरवर्ग जुड़ा हुआ। इत्र का निर्माण फूलों से किया जाता है, जिससे फूलों की निकली खशबू नेचुरल इत्र कहलाती है। लेकिन कोरोना ने इस इत्र व्यापार पर ही अपना ग्रहण लगा दिया है। फूलों की खेती करने वाले किसानों की परेशानी बढ़ती ही जा रही है और 21 दिनों के बाद भी यदि लॉकडाउन बढ़ा तो भुखमरी का संकट भी खड़ा जाएगा।

सारोतोप गांव के जान मोहम्मद बताते हैं-, लॉकडाउन के चलते मार्केट में फूल नहीं जा पा रहा है और पूरा फूल खेतों में ही गिरकर खराब हो रहा है। यदि हम लोगों को दो-चार घंटे की छूट दे दी जाए तो हम लोगों के फूल मंडियों तक जाने लगें। हम लोग गरीब आदमी है और इसी पर निर्भर हैं। रोजाना हजार दो हजार रुपए का नुकसान हो रहा है। खेती किसान का सबकुछ बेकार हो रहा है और सब भुखमरी पर आ रहे हैं। अगर ऐसा ही 21 दिन के बाद भी चलता रहेगा तो आदमी तबाह हो जायेगा। इत्र एसोसिएशन के महामंत्री पवन त्रिवेदी ने बताया कि इत्र व्यापार तो बिलकुल ही बंद चल रहा है और 21 दिन तक जब भारत बंद है तो इत्र व्यापार का चलने का सवाल ही नहीं है। ट्रांसपोर्ट बंद है न किसी तरह का माल आ सकता है और न ही जा सकता है तो पूरी तरह से व्यापार बंद है। इत्र इंडस्ट्रीज का नुकसान करोड़ों रुपएमें हैं।

6. हरदोई: हथकरघा उद्योग

हरदोई का हथकरघा उद्योग पहले से चरमराया हुआ था, अब इस लॉकडाउन के दौरान बुनकरों का कहना है कि उनके खाने के भी लाले पड़ने वाले हैं। सरकार ने मजदूरों की मदद की तो बात की है लेकिन बुनकरों के साथ गैरो सा बर्ताव किया है। जबकि इंसान की पहली जरूरत कपड़ा है। बच्चा पैदा होते ही पहले कपड़ा पहनाया जाता बाद में रोटी… ये कहना है मल्लावां के जावेद का। लेकिन सरकार ने तन ढकने वाले बुनकरों के साथ सौतेला व्यवहार किया है। जावेद अली के साथ 20 कारीगर हैं, जो उनके लिए काम करते है, लेकिन काम बंद होने के बाद अब दो वक़्त की रोटी के भी लाले पड़ रहे हैं।

हरदोई:मजदूर जावेद अपने परिवार के साथ।

भूखे पेट कैसे लड़ेंगे बीमारी से?

जावेद के परिवार में उनकी मां, पत्नी और 4 बच्चे यानी 7 लोगों का परिवार है। सरकार ने काम शुरू करने के लिए 25 लाख का लोन दिया था। कलेक्ट्रेट में एक दुकान दी गयी थी। मल्लावां से हरदोई आकर दुकान करने में 300 रोज़ का खर्च है। कभी कभी बोहनी भी नही होती, कभी हज़ार 5 सौ का बेच लेते हैं। महीने में एक बार ऐसा भी हो जाता कि 2 से 5 हजार तक भी बिक जाता है। लेकिन लॉकडाउन के बाद से काम ठप है। जोड़ तोड़कर जो पैसा बचाया था, वह खत्म हो चुका है। कुछ दिन का राशन घर में बचा हुआ है। अब आगे के दिन कैसे काटेंगे यह नहीं पता? मेरे जैसे कई कारीगरों का यही हाल है। न हाथ में रुपए हैं और न ही कहीं से मिलने की उम्मीद है। भूखे पेट कैसे इस बिमारी से लड़ेंगे?

7. अलीगढ़: ताला और हार्डवेयर उद्योग

कोरोना की महामारी के चलते अलीगढ़ के ताला व्यापारियों पर भी ताला लग गया है। यहां 70 फीसदी लॉक एवं हार्डवेयर का कार्य किया जाता है। यहां लगभग 200 ताला व्यापारी एक करोड़ रुपए मासिक का कार्य करते हैं और वहीं 2500 से 3000 ऐसे व्यापारी हैं जो लगभग 25 लाख रुपए प्रतिमाह का कार्य करते हैं। इन दोनों का औसतन व्यापार लगभग 750 सौ करोड़ प्रतिमाह का निकल कर आता है, लेकिन लॉकडाउन के चलते पूरा कारोबार ठप पड़ा है। हालांकि, अलीगढ़ लॉक एवं हार्डवेयर एसोसिएशन ने निर्णय लिया है- इस आपात की घड़ी में वह किसी कर्मचारी का इस माह का वेतन नहीं काटेंगे और वह कर्मचारी का घर बैठे हुए पूरे माह का वेतन देने का काम करेंगे।

लॉक एवं हार्डवेयर एसोसिएशन के अध्यक्ष पवन खंडेलवाल ने बताया- अपने सभी कर्मचारियों का दूसरे माध्यमों से भी ख्याल रखने का काम कर रहे हैं। हर कारीगर को संगठन के माध्यम से उनकी राजी खुशी हाल-चाल लेने के साथ उनसे पूछा जा रहा है कि किसी भी कारीगर के पास पैसे या खाने-पीने का अभाव तो नहीं है? जिस भी मजदूर के द्वारा पैसे नहीं होने की बात बताई जा रही है तो उन सभी मजदूरों को बुलाकर या अन्य माध्यमों से उनकी मदद करने का कार्य किया जा रहा है।

उधारी पर हो रहा दो जून की रोटी का इंतजाम
मजदूर रामकिशन ने बताया कि जिस तरह से देश के अंदर कोरोनावायरस को लेकर जो हालात बने हुए हैं, उससे सबसे ज्यादा नुकसान दिहाड़ी मजदूरोंपर पड़ा है। इस समय जो लोग रोज काम कर अपने परिवार का पालन पोषण करते थे। आज उनके सामने बड़े गंभीर हालात हैं और वह दो वक्त की रोटी जुटाने के लिए इधर उधर से मांग कर गुजारा कर रहे हैं।

8. मुरादाबाद: पीतल उद्योग

एक्सपोर्टर प्रखर गुप्ता बताते हैं- पूरी दुनिया से 8000 करोड़ रुपए की विदेशी मुद्रा का व्यापार यहां से होता है।लॉक डाउन के बाद से मुरादाबाद के पीतल कारोबारियों का अब तक ढाई से तीन हजार करोड़ रूपए का नुकसान हो चुका है। कन्टेनर मुंबई बंदरगाह और यूरोप बंदरगाह पर पड़े हुए हैं। विदेशी कारोबारियों ने कन्टेनर रिसीव करने से ही मना कर दिया है। कहा- अपना माल वापस मंगा लो। अब यही चिंता है कि वापसी उठा नहीं सकते, क्योंकि खर्चा और ज्यादा हो जाएगा। पीतल कारोबारी अंकित का कहना है कि उनका पांच से दस करोड़ रुपए का कन्टेनर मुम्बई बंदरगाह पर फंसे हुए हैं। फैक्ट्री में 250 से 300 लोग काम करते हैं। दस लाख रुपए फर्म का खर्चा है। इस समय बहुत मुश्किल हालात से गुजरना पड़ रहा है।

मुरादाबाद: पीतल फैक्ट्रियों में काम करने वाले मजदूर लॉकडाउन से परेशान हैं।

बच्चों की पढ़ाई, मां-बाप का इलाज कैसे होगा?
कारीगर अशरफ कहते हैं- हम दो भाई 350 रुपए की दिहाड़ी पर पीतल की छिलाई का काम करते हैं। अब यह स्थिति है कि घर में रखे रूपए भी खत्म होने की कगार पर हैं। घर में पिता की तबियत खराब है। घर की हालत सोचकर पिता रोने लगते हैं। बस यही दुआ है कि जल्द से जल्द हालात सुधर जाएं। मसूद अली पीतल फर्मो में ठेकेदारी करते हैं। इनके पास 15 से 20 पीतल कर्मचारी काम करते हैं। मसूद ने कहा- फैक्ट्रियों का ज्यादातर पीतल का माल एक्सपोर्ट होता है। कोरोना की वजह से कारोबार बिल्कुल ठप हो चुका है। 200-400 रुपए की दिहाड़ी पर कारीगर काम करते हैं। उनको कुछ रुपये दे चुका हूं, लेकिन,मेरे पास भी रुपए नहीं है। कारीगर रहमत अली ने बताया कि आगे क्या स्थिति होगी? सोचकर रोंगटे खड़े हो रहे हैं। बच्चों की पढ़ाई, मां बाप का इलाज के लिए कहां से पैसा आएगा? बस इसी बात की चिंता है।

9. भदोही: कालीन उद्योग
भदोही को कालीन नगरी कहा जाता है। सीईपीसी (कालीन निर्यात एवं संवर्धन परिषद) के चेयरमैन सिद्धनाथ सिंह ने बताया-अगर कोरोना का प्रभाव जून माह तक कम नहीं हुआ तो 2000 करोड़ का लगभग नुकसान कालीन इंडस्ट्री को होगा। पिछले वित्तीय वर्ष में 12000 करोड़ का व्यापार हुआ था। देश में 700 से ज्यादा एक्सपोर्टर और करीब 15 लाख के ऊपर बुनकर, छोटे व्यापारी प्रभावित होंगे। जबकि, भदोही व मिर्जापुर में करीब 600 एक्सपोर्टर होंगे और 8 से 10 लाख बुनकर इस उद्योग से जुड़े हैं। भारत के कॉरपेट की खपत टर्की, चीन, अमेरिका, जर्मनी, जापान जैसे देशों में सबसे ज्यादा है। चीन और अमेरिका में इस साल जून तक 4 एक्सपो होने की संभावना थी, जो कैंसल है, जबकि मार्च में दिल्ली एक्सपो रद्द होने से 400 करोड़ का करीब नुकसान हुआ है।

बुनकरों को इसलिए नहीं मिली मदद
ह्यूमन वेलफेयर एशोसिएशन के जनरल सेकेट्री और पद्मश्री डॉ. रजनीकांत ने बताया इस उद्योग से जुड़े बुनकर मनरेगा मजदूर, दिहाड़ी मजदूर और पंजीकृत श्रमिक की श्रेणी में नहीं आते हैं। सरकार ने 1000 रुपए देने की योजना बनाई, लेकिन वो पंजीकृत मजदूरों के लिए है। बुनकर स्किल वर्कर की श्रेणी में आते हैं। इनको नॉट ( धागे की गांठ), डिजाइन, कलर, स्किल के हिसाब से प्रतिदिन 300 से 600 रुपए तक मेहनताना मिलता है। इसलिए इन मजदूरों को 1000 रुपए भी नहीं मिले।

काम ठप, आने वाले दिन बहुत मुश्किल भरे
गोपीगंज के बुनकर अब्दुल्ला ने कहा- मेरा कोई रजिस्ट्रेशन लेबर ऑफिस में नहीं है। फरवरी आखिर से ही बुनाई का काम बंद हो गया है, जो कुछ इकठ्ठा पैसा था, उसी से परिवार चल रहा है। वहीं बुनकर रहमान ने बताया कि 21 दिन बाद भी यही स्थिति रही तो घर में खाना भी नहीं बन पाएगा। सुनने में आया है कि राशन कार्ड पर राशन हम लोगों को मिलेगा। बुनकर संजय ने बताया कि स्थितियां हम लोगों के परिवार को आने वाले महीने के बाद बुरी तरह से परेशान करेंगी। काम पूरा ठपपड़ा है।

10. आगरा: जूता उद्योग
ताजनगरी आगरा में 250 कंपनियां ऐसी हैं जो यहां बने जूतों को विदेशों में भेजती हैं। जबकि, 670 कंपनियां देश में व्यापार करती हैं। हर साल 3380 करोड़ रुपए का कारोबार सिर्फ लेदर से बने जूतों से होता है। वहीं, फोम व अन्य सामग्रियों से बनने वाले जूते का सालाना कारोबार 20 हजार करोड़ का है।इस उद्योग से करीब पांच लाखों का जुड़ाव है।

राशन कम लगे, इसलिए एक समय बन रहा खाना
थाना शाहगंज क्षेत्र के नगला गंगाराम निवासी पद्मचंद्र और उनके भाई विवेक एक ही घर में परिवार के साथ रहते हैं। परिवार में 12 लोग हैं। इनमें से पांच लोग जूता कारीगर हैं और एक युवक मजदूरी करता है। परिवार के विवेक कुमार ने कहा- इटली व अन्य देशों में कोरोना की दस्तक के बाद काम पर असर पड़ा था। जैसे-तैसे दो जून की रोटी का इंतजाम कर पा रहे थे। लेकिन, अब लॉकडाउन से रोज की दिहाड़ी भी खत्म हो चुकी है। घर पर राशन खत्म होने की कगार पर है और बाहर निकलने पर पुलिस सख्ती दिखा रही है। यदि लॉकडाउन बढ़ा तो समझ नहीं आ रहा है कि आगे दिन कैसे काटेगा? जेब में पैसे नहीं है और बाजार में सब सामान महंगा बिक रहा है। विवेक की पत्नी कहती हैं- राशन कम खर्च हो, इसलिए एक ही समय खाना बना रहे हैं।

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Day lock workers unemployed, Agra shoe and Kanpur leather industry closed from lockdown to Nawabs city to Suhag city


कानपुर के चमड़े की डिमांड पूरे विश्व में है। यूरोपीय देशों से लेकर चीन, उत्तरी कोरिया और इंडोनेशिया में कानपुर का बना हुआ लेदर मटेरियल एक्सपोर्ट किया जाता है। जब से कोरोनावायरस ने दस्तक दी तो यूरोपीय देशों समेत पड़ोसी देशो ने सभी तरह के आर्डर कैंसिल कर दिए है। विदेशों को जाने वाले चमड़े से बने उत्पाद बंदरगाहों पर पड़े है। इसके साथ ही बड़ी संख्या में माल गोदामों में पड़ा हुआ है।

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आज़ाद ख़ालिद टीवी जर्नलिस्ट हैं, सहारा समय, इंडिया टीवी, वॉयस ऑफ इंडिया, इंडिया न्यूज़ सहित कई नेश्नल न्यूज़ चैनलों में महत्वपूर्ण पदों पर कार्य कर चुके हैं। Read more

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