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इसांफ का इम्तिहान!

यूं तो आज दो ख़बरें बड़ी हैं। लेकिन आज की बड़ी ख़बर के बजाए एक दबी हुई ख़बर को बड़ा बनाकर पेश किया जाए तो कोई ताज्जुब नहीं होना चाहिए। दरअसल आज सभी मीडिया हाउसों पर हाथरस में एक दलित की बेटी की अस्मत लूटने, उसकी रीढ़ की हड्डी को तोड़ने, उसकी जुबान काटने वाले चार दबंगो की हैवानियत के हाथों एक बेबस लड़की की मौत की खबर को 15 दिनों तक दबाए रखने वाला मीडिया आज जमकर चलाएगा। हांलाकि आज का दिन सुप्रीमकोर्ट के आदेशों को रौंदते हुए संविधान की धज्जियां उड़ाते हुए 6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद को सरेआम पूरी दुनियां के सामने शहीद करने वालों, सरकार में रहते हुए उसको बचाने की जिम्मेदारी निभाने में नाकाम रहने वाले हुकमरानों, सुर्पीमकोर्ट को गुमराह करने जैसे कई अपराधिक मामलों पर दोषियों पर फैसला सुनाने का भी दिन है। हम इस मामले पर फैसला सुनाने की बात कह रहे हैं हांलाकि दिन तो यह इंसाफ का होना चाहिए, लेकिन जिस तरह से बाबरी मस्जिद को तोड़े जाने, वहां पर किसी मंदिर को तोड़कर मस्जिद बनाने के सबूत न होने, अवैध रूप से मस्जिद में मूर्तियां रखे जाने को मानने वाली सुप्रीमकोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा कि भले ही वहां पर किसी मंदिर को तोड़कर मस्जिद बनाने के सबूत न हों, भले ही 1947 के बाद बाबरी मस्जिद में मूर्तियां अवैध रूप से रखीं गईं हो जिसकी कि एफआईआर तक दर्ज है, भले ही 6 दिसंबर 1992 को सुप्रीमकोर्ट के आदेशों को रौंदते हुए बाबरी मस्जिद को तोड़ा जाना अपराधिक कृत्य हो,जिसकी भी एफआईआर दर्ज है, लेकिन हमारा फैसला यह है यहां पर राम मंदिर बनाया जाएगा और मस्जिद कहीं और बना लें। तो उसी मामले, यानि बाबरी मस्जिद को अवैध रूप से तोड़ने वाले लोगों के खिलाफ आज सीबीआई की एक विशेष अदालत में फैसला सुनाये जाने की संभावना है। इंसाफ क्या होगा ये अभी कहना जल्दबाजी होगा। लेकिन हम इस बारे में अदालत का सम्मान करते हुए कोई टिप्पणी नहीं करना चाहेंगे। आज सभी सवाल आपको ही सोचने हैं, और अपने किसी कानून के जानकार से या किसी वकील को फीस देकर कुछ प्वाइंट्स जरूर पूछ लेना। ताकि आपको भी समझ मे आ जाए कि इस पूरे मामले में सिर्फ हिंदु संघठन, बजरंग दल, बीजेपी, या कांग्रेस ही दोषी नहीं है बल्कि उनके अलावा बाद में सरकार बनाने वाले मुलायम सिंह यादव, मायावती जी. अखिलेश यादव की सरकारों का भी मुस्लिम समाज के साथ क्या गेम रहा। इस मामले में कुछ 49 आरोरियों में से 17 तो दुनियां से ही रुखसत हो गये हैं। जबकि जो मामला दीवानी का था उसकी जांच सीबीआई को दी गई, और फौजदारी के लिए उत्तर प्रदेश पुलिस पर भरोसा किया गया। साथ ही मामलों को लखनऊ और रायबरेली बांट कर भी बड़ा गेम किया गया है। सबसे पहले तो आप ये बात जरूर पूछना कि देश की अदालतों में आम तौर पर दीवानी यानि प्रापर्टी विवाद से तेज क्रिमनल केस की सुनवाई और फैसला आज आ सकता है। जबकि बाबरी मस्जिद के मामले में दीवानी यानि प्रापर्टी के अधिकार का विवाद लोअर कोर्ट से लेकर हाइकोर्ट और सुप्रीमकोर्ट तक होता हुआ रिवियू पिटेशन तक रिजेक्ट होते हुए राम मंदिर के हक मे सुना दिया गया। जबकि अयोध्या थाने में 1947 के आसपास दर्ज एक एफआईआर जिसमें कहा गया है कि जब मुस्लिम समाज के लोग नमाज अदा करके अपने अपने घर चले गये तो कुछ असामाजित लोगों ने मस्जिद मे मूर्तियां रख दीं। और जिस मस्जिद और भूमि पर यथास्थिति बनाए रखने के आदेश खुद अदालत ने दे ऱखे थे, हांलाकि इस बीच कांग्रेस सरकार ने मुस्लिमों के साथ गद्दारी करते हुए बाबरी मस्जिद में ताला डलवाया कर नमाज बंद कराई और बाद मे ताला खुलवाकर पूजा शुरु करा दी थी। उसी अवैध रूप से तोड़ने वाले लोगों के खिलाफ न तो कंटेप्ट और न ही किसी अपराधिक षडयंत्र का फैसला अभी तक आ पाया है। यानि इस बार फौजदारी ने दीवानी को पछाड़ दिया है। इसके अलावा सबसे खास बात यह है कि जिस सुप्रीमकोर्ट ने किसी भी महिला के द्वारा अपनी आबरू लूटे जाने या किसी भी प्रकार की यौन हिंसा या बलात्कार की शिकायत के बाद उस महिला की तुंरत एफआईआर लिखते हुए दोषियों की गिरफ्तारी और उसके खिलाफ तुरंत कार्रवाई के निर्देश दे रखे हों उसी सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस पर एक महिला ने रेप और यौन हिंसा के आरोप लगा रखे थे. लेकिन अफसोस उन आरोपों का तो कोई पता नहीं चल सका लेकिन इसी दौरान चीफ जस्टिस महोदय ने बाबरी मस्जिद के मामले में ऐतिहासिक फैसला सुना दिया। दिलचस्प बात ये भी है इसी फैसले के फौरन बाद वो रिटायर होते ही राज्य सभा में भेज दिये गये। हम ये तो नहीं कहेंगें कि उनको बाबरी मस्जिद के खिलाफ फैसला सुनाने के लिए ईनाम के तौर पर राज्यसभा भेजा गया है। लेकिन इतना तो है कि हम और हमारे देश की जनता सुप्रीमकोर्ट को बेहद सम्मान की नज़र से देखते हैं। बहरहाल सुप्रीमकोर्ट के आदेशों को रौंदते हुए, बाबा साहेब के संविधान की आत्मा को कुचलते हुए, बाबरी मस्जिद को तो़डने वालों के खिलाफ कंटेप्ट आफ कोर्ट से लेकर कई प्रकार के अपराधिक मामलों में फैसला से लोगों को काफी उम्मीदें हैं। हांलाकि आज ही के दिन एक और मामले को आनन फनन में गर्माया जा रहा है, वो है मथुरा की ईदगाह का मामला। बाबरी मस्जिद के मामले मे सबसे दिलचस्प बात ये है कि कई सौ साल पहले जबकि हमारे देश मे न सुप्रीमकोर्ट था, न संविधान था न लोकतंत्र बल्कि राजशाही के दौर में आरोप लगा कि किसी मंदिर को तोड़कर मस्जिद बना दी गई। जबकि खुद सुप्रीमकोर्ट ने भी माना कि किसी मंदिर को तोड़कर मस्जिद बनाने के सबूत नहीं है। बावजूद इसके एक लोकतंत्र में संविधान और सुप्रीमकोर्ट की मौजूदगी में पूरी दुनियां के सामने तोड़ी गई बाबरी मस्जिद को लेकर हमारी अदालत आज क्या फैसला सुनाती है। इस पर बहुत लोगों की नज़र है। क्योंकि इतिहास लिखा नहीं जाता बल्कि इतिहास हमारे द्वारा आज लिए गये फैसलों के दस्तावेज़ों के आधार पर संजोया और सजाया जाता है। और हां हाथरस के एक गरीब दलित की बेटी के लाथ हुए रेप की घटना की 9 दिन बाद एफआईआर होना, 15 दिन तक उसका अस्पताल मे जिंदगी और मौत के बीच झूलना, दंबगों के हाथों इज्जत लूटने के बाद कमर को तोड़ना जुबान काटने की घटना के बीच सबसे बड़ा सवाल यही है कि दरिंदों ने जुबान तो उस बेबस लड़की की काटी थी लेकिन इस 16 दिनों तक हमारा मीडिया कैसे गूंगा और खामोश हो गया था। #babrimasjid #babri_masjid_demolition #azadkhalid #news_with_azad_khalid

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आज़ाद ख़ालिद टीवी जर्नलिस्ट हैं, सहारा समय, इंडिया टीवी, वॉयस ऑफ इंडिया, इंडिया न्यूज़ सहित कई नेश्नल न्यूज़ चैनलों में महत्वपूर्ण पदों पर कार्य कर चुके हैं। Read more

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