नई दिल्ली (16 जनवरी 2018)- एम्स आज भी मरीजों के भरोसे का प्रतीक है ये कहना भारत के राष्ट्रपति राम कोविंद का। राष्ट्रपति रामनाथ सिंह कोविंद ने मंगलवार को नई दिल्ली में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान यानि एम्स के 45 वें दीक्षांत समारोह को संबोधित करते हुए कहा कि एम्स गुणवत्ता, प्रतिबद्धता और समृद्ध अनुभव का दूसरा नाम बन गया है। संकाय व चिकित्सकों साथ-साथ छात्र भी हमारे राष्ट्र और चिकित्सीय बिरादरी के गौरव हैं।’ राष्ट्रपति महोदय ने कहा कि मरीजों और उनके परिजनों को डॉक्टरों पर अत्यधिक भरोसा हैं। यह आप लोगों पर निर्भर है कि आप इस भरोसे को उचित सम्मान दें और करूणा व उचित देखभाल के साथ उन्हें चिकित्सकीय सेवा प्रदान करें। केंद्रीय स्वास्थ्य व परिवार कल्याण मंत्री श्री जे.पी.नड्डा तथा एम्स, नई दिल्ली के अध्यक्ष भी इस अवसर पर उपस्थित थे। कार्यक्रम में 572 स्नातक छात्रों को डिग्री प्रदान की गई।
स्वास्थ्य मंत्रालय के प्रयासों की सरहाना करते हुए राष्ट्रपति महोदय ने कहा कि मंत्रालय द्वारा शुरू किए गए इन्द्रधनुष कार्यक्रम की मदद से स्वास्थ्य मंत्रालय प्रतिरक्षण-अंतर को समाप्त करने तथा सभी बच्चों को जानलेवा बीमारियों से सुरक्षा प्रदान करने का प्रयास कर रहा है। हमारे देश में दोनों ही तरह की समस्याएं हैं- मोटापा और कुपोषण। इसके साथ ही हमारे देश में बच्चों तथा बुजुर्गों की बहुत बड़ी जनसंख्या है। ये दोनों समूह हमारी चिकित्सा प्रणाली के समक्ष चुनौतियां पेश करते हैं।
इस मौके पर केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जे.पी.नड्डा ने छात्रों को बधाई देते हुए कहा कि प्रभावी, किफायती और कम लागत वाली चिकित्सा प्रणाली आज की जरूरत हैं। इस चुनौती का सामना करने के लिए एम्स अपने संकायों का विस्तार कर रहा है और सरकार इसे पूर्ण सहयोग प्रदान कर रही है। उन्होनें कहा कि एम्स को पूरे विश्व में सम्मान के साथ पहचाना जाता है।
जेपी नड्डा ने कहा कि प्रत्येक बच्चे के प्रतिरक्षण के लिए 2014 में मिशन इन्द्रधनुष की शुरूवात की गई थी। अब तक 3.2 करोड़ बच्चों को प्रतिरक्षण की दवाई दी गई है। 5 वर्ष से कम उम्र वाले बच्चों की शिशु मृत्यु दर 2013 में 49 से घटकर 2016 में 39 हो गई है।
इस मौके पर जे.पी.नड्डा ने चिकित्सा क्षेत्र में लाईफ टाइम अचीवमेंट पुरस्कार भी प्रदान किया। समारोह में डॉ. पुरषोत्तम उपाध्याय, प्रोफेसर ललित मोहन नाथ, प्रोफेसर उषा नायर, डॉ. मेहरबान सिंह, प्रोफेसर इन्दिरा नाथ तथा प्रोफेसर एम.सी. माहेश्वरी ने पुरस्कार प्राप्त किया।
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