सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कहा कि सरकारी कंपनियों से एजीआर फंड में 4 लाख करोड़ रुपए बकाए की मांग को स्वीकार नहीं किया जा सकता है। यह अनुचित है। अदालत ने कहा कि दूरसंचार विभाग (डीओटी) को अपनी इस मांग को वापस लेने पर विचार करना चाहिए। जस्टिसअरुण मिश्रा, जस्टिस एस अब्दुल नजीर और जस्टिस एमआर शाह की बेंच ने सरकारी कंपनियों से एजीआर बकाए की मांग करने पर सवाल उठाते हुए कहा कि इस मामले में उसके आदेश कोगलत तरीके से समझा गया। अदालत पीसीएसयू कंपनियों के एजीआर बकाए के मामले की सुनवाई नहीं कर रही थी।
डीओटी मांग का कारण बताते हुए एक हलफनामा दाखिल करेगा
डीओटी की तरफ से कोर्ट में सॉलिसिटर जनरल तुषारमेहता ने कहा कि वह एक हलफनामा दाखिल कर यह बताएंगे कि सरकारी कंपनियों से एजीआर बकाया देने की मांग क्यों की गई?डीओटी ने गेल इंडिया से करीब 1.83 लाख करोड़ रुपए, ऑयल इंडिया से 48,489 करोड़ रुपए, पावर ग्रिड कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (पीजीसीआईएल) से 22,062.65 करोड़ रुपए और गुजरात नर्मदा वैली फर्टिलाइजर्स कॉरपोरेशन (जीएनएफसी) से 15,019.97 करोड़ रुपए बकाए की मांग की है।एजीआर बकाए के मुद्दे पर गुरुवार को हुई सुनवाई में बेंच ने निजी क्षेत्र की टेलीकॉम कंपनियों से भी हलफनामा दाखिलकर यह बताने के लिए कहा कि वे एजीआर बकाया किस तरह चुकाएंगी।
पिछली सुनवाई में अदालत ने निजी मोबाइल कंपनियों को बकाए का खुद आकलन करने पर फटकार लगाई थी
सुप्रीम कोर्ट ने 18 मई को हुई सुनवाई में भारती एयरटेल, वोडाफोन आईडिया और अन्य मोबाइल फोन कंपनियों को अपने बकाए का आकलन खुद करने को लेकर फटकार लगाई थी। उस दिन अदालत ने इन कंपनियों को ब्याज और जुर्माना के साथ पिछले बकाए का भुगतान करने के लिए कहा था। यह राशि कुल करीब 1.6 लाख करोड़ रुपए बैठती है। अदालत ने कंपनियों को अपने बकाए का आकलन करने की इजाजत देने के लिए डीओटी को भी फटकार लगाई थी। कोर्ट ने कहा था कि 24 अक्टूबर 2019 को बकाए के कैल्कुलेशन के लिए जो फैसला हमने दिया था, वह आखिरी है।
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