नई दिल्ली (8 दिसंबर 2019)- देश के प्रथम नागरिक महामहिम राष्ट्रपति महोदय के घर से कुछ किलोमीटर दूर, दुनियां के बेहतरीन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यालय से कुछ किलोमीटर दूर और दुनियां में अपनी क़ाबलियत का डंका ख़ुद ही बजाते, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के घर से भी कुछ ही किलोमीटर दूर देश की राजधानी दिल्ली के रानी झांसी रोड पर अनाज मंडी इलाक़े में 43 इंसानों की जलकर और धुएं से दम घुटकर मौत हो गई।
इस मौत का सबसे ख़तरनाक और गंभीर पहलु ये है कि सैंकड़ों लोगों को रोज़गार देने के नाम पर मौत बांटने वाली ये फैक्ट्री फायर डिपार्टमेंट से एनओसी के बजाय महज़ मंथली पर चल रही थी। जी हां ये आरोप नहीं बल्कि सच्चाई है कि पूरी दिल्ली में सीलींग और रिहायशी इलाक़ो के ख़िलाफ सुप्रीम कोर्ट तक की नाराज़गी के बावजूद अगर एक फैक्ट्री मे हाइली इन्फ्लेमेबल रैक्सीन बैग्स और अलग अलग वस्तुए बन रही हैं तो यक़ीनन एमसीडी. दिल्ली पुलिस और अधिकारियों के आशीर्वाद के बग़ैर ये सब नामुमकिन है।
शुरुआती जानकारी के मुताबिक़ जिस फैक्ट्री में ये दर्दनाक हादसा हुआ है, उसके गेट पर बाहर से ताला लगा था और हादसे के शिकार अंदर से मदद की गुहार लगाते रहे। इस बीच आग, धुएं और दम घुटने से रोज़गार की तलाश में काम कर रहे 43 लोग तड़प तड़प कर मौत की आगोश में सो गये।
ख़ुद दिल्ली के फायर सेफ्टी विभाग का कहना है कि सूचना के बाद जब रेस्क्यू टीम वहां पहुंची तो बाहर और छत के ऊपर तक के गेट बंद थे। अंदर से आ रही चीख़ पुकार को सुनकर फायर विभाग के कर्मियों ने बाहर का गेट तोड़ा और ऊपर का गेट खोलकर पीड़ितों को बाहर निकाला। फैक्ट्री से लगभग 60 लोगों को बाहर निकाला गया।
अभी तक की जानकारी के मुताबिक़ दिल्ली के LNJP यानि लोकनायक जयप्रकाश नारायण अस्पताल में 34 लोगों की मौत हो चुकी है। इसके अलावा दिल्ली के ही लेडी हॉर्डिंग्स हॉस्पिटल में नौ के मरने की ख़बर है। दिल्ली के रानी झांसी रोड पर हुए इस अग्निकांड में फॉयर डिपार्टमेंट के जाबांज सिपाहियों ने 54 लोगों को बाह निकाल कर बचाया भी है। इनमें से कुछ का इलाज अलग अलग अस्पतालों में चल रहा है। चश्मदीद और पुलिस के मुताबिक़ हादसे वाली फैक्ट्री में स्कूल बैग्स बनते थे, और यहां पर काम करने वाले मज़दूरों के रहने, खाने, सोने आदि का भी यहीं इंतज़ाम था।
बहरहाल पिछले कई हादसों की तरह इसमें भी हो सकता है, कि संवेदना के नाम पर मुआवज़ा, जांच और कार्रवाई के नाम पर एक बडा़ आश्वासन देखने को मिल जाए। लेकिन सवाल यही है कि आख़िर कौन से हादसे के बाद हमारा प्रशासन और सरकारें ये तय करेंगी कि बस अब और नहीं।
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