जो हमने पढ़ा वो इतिहास है ..जो हमने अपने बड़ों से सुना वो कुछ दिन यादों और बाद में इतिहास के तौर पर याद किया जाएगा। जो हमने देखा या देख रहे हैं कल वो यादों में तब्दील होते हुए कल की आने वाली पीढ़ी के लिए इतिहास बन जाएगा। आज जो है या जो हमने हमारी पीढ़ी ने अपनी आंखों से देखा या अपनों से सुना उसको सहेज कर रखना हमारी ज़िम्मेदारी है। ताकि हमारी आनी वाली पीढ़ी तक ये अमानत पहुंच सके।
यूं तो एक भारतीय होने के नाते देश की बातें होनी चाहिएं, लेकिन फिलहाल आज अपने आबाई वतन अपने गांव की माटी से शुरआत करने का मन है।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सरसब्ज़ और दमदार ज़िले मुज़फ़्फ़रनगर का छोटा सा लेकिन बेहद ज़रख़ेज़, शानदार और पुरसुकून गांव सीकरी ।
हज़रत सालार मसूद ग़ाज़ी के इतिहास का हिस्सा, आमों के बागों से घिरी, मुंशी क़ासिम अली, मौलवी ईसा साहेब, मौलाना मूसा साहेब,मौलाना अब्दुल लतीफ साहेब की कर्मभूमि,सेठ मंजूर, हाफिज़ कल्लू, शफ़क़्क़त अली, तहसीलदार मौहम्मद हयात, डिप्टी अमजद,एम मिस्बाह, मियां शौकत और हज़ारों बुज़ुर्गों की यादों से भरी और बेहद आलीशान जामा मस्जिद से सजी सरज़मीं ए सीकरी।
सीकरी दिल्ली से उत्तर-पूर्व में लगभग 130 किलोमीटर दूर नदियों की रानी गंगा और गंग नहर के बीच स्थित एक ऐसा गांव है, जिसकी अज़मत उसको देखने और वहां के लोगों से मिलने के बाद ही समझ में आ सकती है। खेती और सिंचाई के लिए बहते राजबाहे, गन्ने के खेतों और कोल्हू से उठने वाली बेहद जानदार ख़ुश्बू और आम के मौसम में कोयल की कूक को सुनने और महसूस करने का आनंन्द वहीं रह कर लिया जा सकता है।(आप देख रहे हैं.. https://www.oppositionnews.com )
पैसे की दौड़ के बजाए ज़िंदादिली से जीना हर किसी के लिए खड़ा होना और बेहद बहादुरी इस गांव के पानी की तासीर है। (आप देख रहे हैं.. https://www.oppositionnews.com )
समझ नहीं आ रहा कहां से शुरु करूं। जो सुना है उससे, जो देखा है, वहां से… या जो अभी चल रहा है, उसे ही शेयर करूं।
बात अगर इंसानियत और शराफत की करें तो फिलहाल 12 लोगों से बात शुरु करने का मन है।
हाफ़िज़ उमेर साहेब
सबसे पहले बात हाफिज़ उमेर साहेब की.. एक बेहद शरीफ, हाफिज़ ए क़ुरआन, दुनियांवी तालीम हासिल करने वाले, जामिया के पूर्व छात्र, कनिश्नरी के मालदार मुस्लिम परिवारों में शुमार होने के बावजूद सादगी के साथ मामूली कुर्ता पजामा पहने, शरअयी दाढ़ी वाले शख़्स का हर वक़्त ज़िक्र ए इलाही में मशगूल रहना और कभी किसी की बुराई में शामिल न होना उनका दूसरों से थोड़ा अलग बनाता है। नर्म-गो इतने कि हर कोई उनसे बात कर सके। रिज़र्व इतने कि सबकी हिम्मत मज़ाक़ करने की न हो। रहम दिल और मददगार इतने कि दूसरों के लिए बड़ी से बड़ी क़ुर्बानी बिना किसी से ज़िक्र किये कर गुज़रना उनकी आदत… इंसान की नेकी को नापने का पैमाना यक़ीनन अल्लाह के पास है। लेकिन अगर कहीं गवाही की बात आई तो उनके लिए इलाक़े के लगभग हर शख़्स की ज़ुबान पर उनके हक़ में ही आवाज़ उठेगी। (आप देख रहे हैं.. https://www.oppositionnews.com )
तो बात जिन हाफ़िज़ उमेर साहेब की हो रही है। तो उनके वालिद ए मोहतरम मरहूम जनाब हाजी नूरुल्लाह साहेब को हमने देखा है, लेकिन उनके दादा जान मरहूम हाफिज़ कल्लू साहेब का नाम बेइंतिहा और बारहा सुना है। नाम से ही हाफ़िज़ कल्लू की शख़्सियत समझ में आती है, कि उनके आबा-ओ-अजदाद दीनी रग़बत वाले रहे होंगे। लेकिन सुना है कि हाफ़िज़ कल्लू साहेब किसी ज़माने में मुज़्फ़्फ़रनगर कांग्रेस पार्टी के सदर भी रहे, तो ये बात भी समझ में आई कि आज़ादी के मौक़े पर मुल्की हालात का असर हमारे गांव में और हमारे बड़ों में मौजूद था, कि हाफ़िज़ कल्लू साहेब (अल्लाह बख़्शे), न सिर्फ सियासत में थे, बल्कि ज़िले के नुमाया लोगों में थे। हाफ़िज़ कल्लू साहेब के बारे में बहुत कुछ सुना है, उनके बारे में ये भी सुना है कि वो बात वाले, और बात की ख़ातिर अड़ने वाले इंसान थे। यहां तक कि अपने विरोधी के ख़िलाफ उसके विरोधी से मुक़दमा खरीदने की हद कर तैयार रहते थे। लेकिन उनका एक वाक़या सुनाना चाहूंगा। (आप देख रहे हैं.. https://www.oppositionnews.com )उनका कोई विरोधी रहा होगा। एक दिन जब वो उसके घर के पास से गुजरे तो वहां एक मामूली क़िस्म की तामीर यानि किसी मकान का निर्माण किया जा रहा था। उन्होंने उसको गिरा दिया। और मज़दूरों से कहा कि कह देना हमने गिरवाया है। पता चला कि बाद में उससे कहा कि ये निर्माण मामूली नहीं आलीशान और मज़बूत बनाओ। ताकि आने वाली पीढ़ी के काम आ सके। (आप देख रहे हैं.. https://www.oppositionnews.com )
हाफ़िज़ कल्लू साहेब की बातें बहुत हैं, लेकिन सुनी सुनाई इसलिए आपसे ग़ुज़ारिश है कि यदि आपके पास भी उनसे जुड़ी कोई अच्छी बात कोई याद या चर्चा हो तो कृपया हमको लिखें। (आप देख रहे हैं.. https://www.oppositionnews.com )
तो बात चल रही थी हाफ़िज़ उमेर साहेब के दादा की जिनको हमने देखा नहीं, लेकिन हाफिज़ उमेरे साहेब के वालिद मोहतरम हाजी नूर उल्लाह साहेब को हमने देखा भी है उनसे बात भी की है और उनके सादगी शराफत को न सिर्फ महसूस किया बल्कि उनके बड़प्पन को समझा भी है। हाजी साहेब एक बेहद सादा, ज़मींदार, किसान, कारोबारी, सन 50 के आसपास के एजुकेटेड, विजनरी और बेहद शालीन व नफासत वाले इंसान थे। यूं तो जिस ज़माने में हाफिज़ नूर उल्लाह साहेब बड़े हुए होंगे। उस ज़माने में गांव सीकरी बाक़ी दुनियां से लगभग कटा हुआ,गंगा के खादर में बड़ा ऐसा गांव था जहां बहुत विकास के बाद भी बस को सीकरी से आगे से आगे जाने का रास्ता नहीं था। लेकिन मैंने अपनी जीवन में हाजी नूरउल्लाह साहेब के कपड़ों पर दाग़ नहीं देखा, और उनके रहन सहन में नवाबी नफासत अलग ही दिखती थी।(आप देख रहे हैं.. https://www.oppositionnews.com ) मेरे वालिद ए मोहतरम जनाब इरशाद अली (एम.के सिद्दीक़ी साहेब) और मेरे चाचा एडवोकेट हाफ़िज़ जुबैर साहेब (अल्लाह बख़्शे) हाफ़िज़ उमेर साहेब के वालिद जनाब हाजी नूरुल्लाह साहेब किसी ज़माने में एक ही हॉस्टल में रहकर एक ही कॉलेज में पढ़ाई करते थे। एक बार मेरे चाचा जुबैर और नूरुल्लाह साहेब सीकरी से जाने वाली बस में एक साथ सफर कर रहे थे। उनकी बातों की गंभीरता, गहराई, हंसी मज़ाक़, शालीनता और हास्य व्यंग बता रहा था कि आज समाज को ऐसे शालीन और सहज लोगों की सख़्त ज़रूरत है। लगे हाथ मैं अपने चाचा एडवोकेट हाफ़िज़ हाजी ज़ुबैर साहेब की सिर्फ एक बात बता दूं। उन्होंने अपने पूरे वकालत के कार्यकाल में किसी जज को मीलॉर्ड नहीं कहा। वो सिर्फ जनाब कहकर काम चलाते थे। उनका मानना था कि मीलॉर्ड तो कोई और ही है। चूंकि बात चल रही थी सीकरी के मौजूदा आइकन्स में हाफ़िज़ उमेर साहेब की और उनके परिवार की। हर बड़े पेड़ के नीचे कोई छोटा पेड़ भले ही कितना ही फलदार हो, लेकिन बड़ा पेड़ छोटे को मानों छिपाए रखता है, या फिर छोटा पेड़ ही सम्मान में सिर झुकाए रखता है।(आप देख रहे हैं.. https://www.oppositionnews.com ) कुछ ऐसा ही था हाफ़िज़ उमेर का भी हाल। अपने बड़े भाई हरदिल अज़ीज़ जुझारू और आईने की तरह साफ मरहूम भाई अम्मार साहेब के साहेब के सामने। दरअसल हाफ़िज़ उमेर साहेब बेहद सादा, अल्लाह से लौ लगाने और एंकात प्रिय शख़्स हैं। जबकि उनके बड़े भाई प्रधान अम्मार साहेब अखाड़ेबाज़, सियासी, इलाक़े के असरदार लोगों के चहेते और लोगों के लिए हमेशा खड़े रहने का दमख़म रखने वाले इंसान थे। हाफ़िज़ उमेर के परिवार के बारे में जो सुना है उससे कहीं अलग जो हमने देखा है, उसके मुताबिक़ गांव सीकरी और इलाक़े का पहला मुस्लिम ज़मींदार किसान परिवार है, जिसने केन क्रेशर लगाकर खेती किसानी को व्यापार, उत्पादन और उधोग में बदला, सीकरी में पहला लैडलाइन फोन उनके घर लगा। साथ ही सीकरी में पहली कार हाफ़िज़ उमेर के यहां आई। (आप देख रहे हैं.. https://www.oppositionnews.com )कार का ज़िक्र इसलिए, कि हो सकता है कि आज गली गली में कार वाले मौजूद हों, लेकिन उस ज़माने में पूरे सीकरी में अकेली जीप को रखने वाला हाफ़िज उमेर का परिवार और उसके सारथी प्रधान अम्मार(अल्लाह बख़्शे) ने पूरे गांव के किसी शख़्स के दुख दर्द और ख़ुशी में अपनी जीप की सेवा देने से इंकार नहीं किया। साथ ही अगर कहीं जा रहे हैं तो हर उपलब्ध सीट पर कोई न कोई लिफ्ट लेने वाला मौजूद रहा। हाफ़िज उमेर साहेब से छोटे भाई बल्कि यूं कहा जाए कि हमेशा से बुर्दबारी में बड़े दिखने वाले भाई हाजी तारिक़ सिद्दीक़ी का ज़िक्र भी इस मौक़े पर ज़रूरी है। दरअसल दिल्ली में रहकर भले ही तारिक़ भाई दिल्ली वाले हो गये हों, लेकिन शायद उनके दो दिल हैं। जिनमें से एक तो हर वक़्त सीकरी में ही पड़ा रहता है। हम जब भी किसी काम से सीकरी या किसी सीकरी वाले की तकरीब या किसी मौक़े पर जाते हैं, तो तारिक़ भाई का वहां मिलना लाज़िमी है। (आप देख रहे हैं.. https://www.oppositionnews.com ) हाफ़िज़ उमेर के सबसे छोटे और बेहद ख़ूबसूरत, ख़ूबसीरत और सब पर भरोसा करने वाले भाई शारिक़ गुड्डू का ज़िक्र किेये बग़ैर हाफ़िज़ उमेर साहेब की शख़्सियत का ज़िक्र अधूरा है। गुड्डू मियां सबसे छोटे सारी खेती को समभालने वाले और हंसमुख इंसान थे। बहुत ही कम उम्र में एक बड़े तकलीफदेह हादसे में जब उनका इंतिक़ाल पुर मलाल हुआ तो मुज़फ़्फ़रनगर के अस्पताल में मैं भी हाफ़िज़ उमेर साहेब के साथ ही था। हाफ़िज़ साहेब की आंख, उनके दर्द को बयां कर रहीं थी। लेकिन उनके ज़ुबान पर तस्बीह और ज़िक्र ए इलाही के साथ साथ लोगों को सब्र की तलक़ीन और तहम्मुल करना एक मर्द ए मुजाहिद का ही काम है। (आप देख रहे हैं.. https://www.oppositionnews.com )
हाफ़िज़ उमेर साहेब के परिवार उनके बेटे और उनके अपने व्यक्तित्व को देखकर किसी भी इलाक़े, गांव या समाज को फ़ख़्र होना लाज़िमी है।
मेरी लेखनी में मेरी जानकारी में हो सकता है कुछ कमियां हों। आपसे गुज़ारिश है कि कहीं ख़ामी नज़र आए तो राय से नवाज़ें।(आप देख रहे हैं.. https://www.oppositionnews.com )
सीकरी गांव से जुड़ी अगली शख़्सियत का नाम सही सही तो मुझे नहीं मालूम लेकिन उनको मैंने भाई कालू के नाम से ही मुख़ातिब होते सुना है। एक किसान, देखने में भी और काम से भी, सिर्फ किसान । मामूली कपड़ों में बहुत जल्दी में हुए को साइकिल पर.. नहीं तो पैदल ही.. मामूली कपड़े, शरअयी दाढ़ी और नमाज़ी। आप सोच रहे होंगे कि उनमें ऐसा क्या ख़ास है। दरअसल मौत तो हर किसी को आनी है। और हर किसी की आरज़ू भी है और दुआ भी, कि उसको मट्टी नसीब हो। ज़िदगी के बाद मौत से पहले का सफर क़ब्र का सफर… जन्नत के बाग़ों का एक बाग़ और दोज़ख़ के गढ़ों का बड़ा गढ़ा क़ब्र… क़ब्र यूं तो एक गढ्ढा है जिसको दुनियांवी भाषा में सिर्फ खोदा जा सकता है। लेकिन किसी दूसरे के लिए आख़िरी सफर के मुक़ाम को तैयार करना ख़ुशामद करके, सजाके संवार के, ख़ुलूस के साथ, अपना पसीना बहना। बड़ी बात है।(आप देख रहे हैं.. https://www.oppositionnews.com ) मैनें उनके मुंह से तो नहीं, लेकिन दूसरों से सुना है कि भाई कालू बग़ली वाली क़ब्र ख़ास तौर से हर तरह की क़ब्र उसके रुख़ उसके आदाब को बेहद बारीकी से और ख़ुलूस और अक़ीदत से बनाने के लिए अपना क़ीमती वक़्त निकालते हैं। सीकरी की बहुत सी बातों में एक बात ये भी अच्छी है कि किसी के जनाज़े किसी के आख़िरी सफर किसी को आख़िरी अलविदा कहने के लिए सभी पूरे दर्द के साथ शामिल रहते हैं। सीकरी के एक और मौजूदा आईकन भाई कालू उनके परिवार और उनके बारे में सिर्फ इतना ही कहना है कि आपके पास देने को जो भी है उसको अगर ख़ुलूस के साथ अदा किया जाए तो यही इबादत हो जाती है। (आप देख रहे हैं.. https://www.oppositionnews.com )
हम फिलहाल जिन 12 मौजूद लोगों से सीकरी के मुख़्तसर परिचय की शुरुआत कर रहे हैं, उनमें डॉक्टर काज़िम अली जिन्होंने अपने यहां आए हुए मरीज़ को इलाज के साथ साथ अपना ख़ून भी दे कर ये बताया कि डॉक्टरी पेशा नहीं बल्कि सेवा है। उनके परदादा मुंशी क़ासिम अली साहेब, पूर्वज अहमद अली साहेब और मौहमम्द अली साहेब के साथ साथ डॉक्टर काज़िम के दादा दि ग्रेट हंटर ऑफ इंडिया शफक़्क़त अली(अल्लाह बख़्शे) और उनके ताया जनाब शौकत अली साहेब जिन्होने 1932 में ग्रेजुएशन करके अपनी अगली पीढ़ी को अपनी विरासत शिक्षा से रु ब रू कराया, का ज़िक्र करूंगा।(आप देख रहे हैं.. https://www.oppositionnews.com )
साथ ही भाई शुजाउर्रहमान साहेब जिनका गौरवशाली इतिहास और शानदार वर्तमान सीकरी की शान है। भाई शुजाफर्रहमान के पिता एम मिसबाउर्रहमान साहेब पोलो के जबरदस्त खिलाड़ी थे। उनके बारे में कहा जाता है कि उनकी परस्नलेटी बेमिसाल थी। भाई शुजाउर्रहमान की हवेली आज भी बताती है कि सीकरी की शान किया थी। (आप देख रहे हैं.. https://www.oppositionnews.com )
साथ ही एक छोटा हाफिज़ बच्चा ख़ुबेब जो फिलहाल देवबंद में तालीम पा रहा है। यूं तो सीकरी में हाफिज़ बच्चों की बड़ी तादाद है। लेकिन हाफ़िज़ सय्यद का पोता और हाजी शादमियां का बेटा ख़ुबेब थोड़ा सा ख़ास है। ख़ुबेब के दादा एक मामूली मज़दूर से बड़े ज़मीनदार तक का सफर तय करने वाले हाफ़िज़ सय्यद का गौरवशाली इतिहास आज की पीढ़ी के लिए आज भी प्रेरणादायक है।
उधर भाई सुलेमान का ज़िक्र इसलिए कि बेहद बिरादरीवाद के बावजूद उनका और उनके परिवार का व्यक्तित्व थोड़ा अलग है। हांलाकि मंशी हनीफ साहेब, भाई ज़रीफ, हाफि़ज रियाज़ जैसे कई परिवार हैं, जिन्होने सीकरी की एकता के लिए बड़े काम किये हैं। आपसे गुज़ारिश है कि उनकी तफ्सील भेजें।(आप देख रहे हैं.. https://www.oppositionnews.com )
साथ ही एक ऐसा नाम जिसका ज़िक्र बहुत ज़रूरी है वो हैं मरहूम हाफिज़ काले साहेब। आपने फिल्मों में हीरो की बड़ी बड़ी कहानियां सुनी होंगी लेकिन यहां हम रीयल हीरो का सच्चा क़िस्सा भी बताएंगे, कि एक मज़दूर उस ही हवेली को ख़रीद कर उसमें रहता है, जिसके निर्माण के दौरान उसने उसमें मामूली मज़दूरी की थी। साथ मज़दूरी से ज़मींदारी तक का सफर भी, आज की पीढ़ी के लिए ये हीरो सामने लाने ज़रूरी है। आपके पास भी कोई जानकारी हो तो दीजिएगा।
बात सीकरी की हो और ज़िक्र पेड़े का न आए तो बहुत मुश्किल बात है। हमने इस पेड़े को शुरु करने वाले मरहूम गुलाम नबी साहेब को देखी भी है, उनके हाथ का एक रुपये के बहुत बड़ा पैड़ा खाया भी है, उनकी मौहब्बत और ख़ुलूस उनके लिए दिल से दुआ देने को मजबूर करते हैं। आज उनकी विरासत को संभालने वाले भाई अहमद नबी साहेब उर्फ पीर जी उसी शिद्दत के साथ सीकरी को जी रहे हैं, जो उनको विरासत में मिली। उनके परिवार के सभी लोगों का परिचय और ज़िक्र होगा। (आप देख रहे हैं.. https://www.oppositionnews.com )
कभी शिकारियों के लिए मशहूर रही सीकरी के ज़िदा निशानेबाज़ भाई अनवर का भी ज़िक्र करेंगे। उनके पिता मरहूम प्रधान रईस साहेब की बातें होंगी। भाई अनवर के परिवार के उनके बड़े भाई जनाब भाई मंज़र साहेब की भी बातें होंगी।(आप देख रहे हैं.. https://www.oppositionnews.com )
अगर बात सीकरी की हो और मौजूदा आइकन्स में मेरे फूफा बल्कि जगत फुफ़्फा फर्रू साहेब और ताए मदनी मरहूम की बात न हो तो मज़ा नहीं आएगा। हमने फूफा फर्रू मरहूम साहेब को देखा है उनका अंदाज़ उनकी मौहब्बत, सबके लिए उनकी बराबरी सीकरी की शान है। आज उनके बेटे और पोते उनकी शानदार विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं।
साथ ही ताए मदनी और उनके भाई मियां वलिये साहेब भाई भाई के प्यार की मिसाल थे। उनके बेटे पोते और परिवार आज भी सीकरी से अलीगढ़ तक देशभर में हर सीकरी वाले के लिए हमेशा तैयार खड़े रहते है। उनका ज़िक्र लंबा होगा। बस एक बात फिलहाल उनके परिवार के बारे में बता दूं कि उनके एक बेटे भाई क़ूमैश साहेब मरहूम ने एक बार मुझे अपने हाथ से आम काट काट कर खिलाए। हांलाकि हमारा अपना बाग़ भी है और कई दिन से आम बहुत खाए जा रहे थे। लेकिन मैनें सोचा कि इस ज़माने में भाई से भाई बात नहीं करता, ये अपने हाथ से, इतने ख़ुलूस से पेश आ रहे हैं, बस दिल ने कहा कि ये इसी मौहब्बत से खिलाते रहें। ताए मदनी की विरासत वाले भाई क़ुमैश मरहूम की ये मेरे लिए आख़िरी यादों में से एक है। (आप देख रहे हैं.. https://www.oppositionnews.com )
इसके अलावा सीकरी की शान वाला एक परिवार वो भी जिसका ज़िक्र मुंशी हमीफ मरहूब साहेब से शुरु होकर भाई ज़रीफ के मौजूदा परिवार से जा मिलता है। बेहद शानदार, शालीन, सभ्य और सीकरी की एकता के लिए बड़ा एहम नाम है, इस परिवार का। आपसे और मुंशी हनीफ साहेब मरहूम के परिवार वालों से गुज़ारिश है कि मालूमात शेयर करें।
अगर मौजूदा दौर की बात करें तो डेमोक्रटिक सिस्टम के तहत जनता की आवाज़ और उसके फैसले का ज़िक्र भी ज़रूरी है। सीकरी की जनता ने जिसको अपना बड़ा और प्रधान माना है, बेहद प्यारा सा, छोटा सा और नाम से ही अप्पी यानि इरफान मियां, आजकल लोगों के दिलों पर राज कर रहे हैं। दरअसल अप्पी को नाम से भी और हम तो आज भी छोटा ही मानते हैं। उनके भाई हमारे न सिर्फ अज़ीज़ हैं, बल्कि हमउम्र भी। लेकिन अप्पी का ज़िक्र करने के लिए उनके पिता और परिवार की बात भी ज़रूरी है। उनके पिता बेहद सादे शरीफ और मिलनसार वयक्ति थे। अप्पी के राजनीतिक सफर और उनके पारवारिक संघर्ष से भी आपका रू ब रू होना ज़रूरी है।
अभी फिलहाल इतना ही आगे हम सीकरी के बेहद शरीफ और दीनी शख़्सियत हाफिज़ रियाज़ साहेब जिनको हमने देखा भी है और उनसे नज़दीकी भी रही, का भी ज़िक्र करेंगे।
आपसे यहां ज़िक्र किये गये परिवारों के लोगों के गुज़ारिश है कि अपनी जानकारी हमसे शेयर करें। पुरानी फोटो और यादे हम तक भेजें।(आप देख रहे हैं.. https://www.oppositionnews.com )
आगे उन लोगों का ज़िक्र करेंगे जो उच्च शिक्षा लेकर गांव से बाहर देश से बाहर जाकर लोगों की सेवा के साथ साथ समाज में उच्च मुक़ाम पा चुके हैं, या पा रहे हैं। इनमें लंदन से लेकर दुनियां के अलग अलग कोने में रह रहे सीकरी के लोगों से जानकारी शेयर करने की रिक्वेस्ट है।
साथ ही अलीगढ़ में भाई मुजीब,भाई यूसुफ,डॉक्टर अरशद, डॉक़्टर वसीम, लखनऊ में जनाब कफील,अलीगढ़ में डॉक्टर शमीम (माइक्रो बॉयोलॉजी), लंदन में भाई फरीद शौकत साहेब उनके परिवार, मिडलईस्ट में मौजूद कौसर नसीम साहेब उनके परिवार, दिल्ली से लेकर देशभर के सभी वो लोग सीकरी से ताल्लुक़ रखते हैं और ख़ुद को सीकरी वाला कहलाने में शर्म नहीं मगसूस करते.. अपनी या अपने और लोगों की जानकारी शेयर कर सकते हैं।
यक़ीन मानिए आपको लगेगा कि आप अपने गांव की गलियों में वो धूल फांक रहे हैं, जिसको आज आप ए.सी कमरों और कारों में बैठ कर मिस कर रहे हैं। (जारी है…)
(आपसे गुज़ारिश है कि वहां से जुड़े फोटो, यादें और जानकारी हमको [email protected] पर मेल करें। )
Very nice memories thanks