तुलना राजनीति का सबसे घटिया हथियार है. आज देश के लिए सर्वोच्च बलिदान देने वाली पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की शहादत का दिन है. आज ही के दिन उनकी हत्या आतंकवादियों ने कर दी थी. पटेल की जयंती का भारी भरकम आयोजन और खेल तमाशा पटेल के प्रति श्रद्धा के कारण नहीं बल्कि कांग्रेस के प्रति नफरत का नतीजा है . सब जानते हैं कि कांग्रेस का इतिहास अमेरिका विरोधी रहा है और संघ पर हमेशा अमेरिका का एजेट होने जैसे आरोप लगे हैं. जाहिर बात है वो हर चीज़ भुलानी है जो कांग्रेस से जुड़ी हो. एक प्रधानमंत्री पूर्व प्रधानमंत्री को भुला देने की सारे उपक्रम कर रहा है. सिर्फ इसलिए क्योंकि वो उससे वैचारिक नफरत करता है. देश के लिए योगदान का जहां तक सवाल है तो तलनात्मक रूप से दोनों ही नेताओं का कम नहीं था.
सिर्फ इंदिरा गांधी को भुलाने को कोशिश हो रही हो ऐसा नहीं है. महात्मागांधी भी हमेशा निशाने पर रहते हैं. स्वच्छ भारत अभियान 2 अक्टूबर को आयोजित किया जाता है. प्रचार और ईवेन्ट पूरे धूम धड़ाकों के साथ गांधी को छिपाने की कोशिश में लग जाते हैं. गांधी जयंती पर सरकारी विभागों और संस्थाओं को गांध्री जी को श्रद्धांजलि देने वाले सारे विज्ञापन गायब हो चुके हैं. अगर इक्का दुक्का खादी ग्रामोद्योग का विज्ञापन आता भी है तो उस पर मोदी जी का फोटो होता है. गांधी जी का नहीं. और तो और गांधी जी की जयंती पर लालबहादुर शास्त्री के साथ उनकी तुलना नियमित रूप से की जाती है. अगर गांधी जी गुजरात के नहीं होते तो शायद उन पर और भी तेज़ हमले होते.
देश के शहीद देश की विरासत हैं. किन्हीं पार्टियों की नहीं. देश के प्रधानमंत्री को पद संभालते ही पार्टी और पक्ष से ऊपर उठकर काम करना चाहिए लेकिन होता नहीं है. मुझे पता है इस पोस्ट पर जो कमेंट आएंगे वो भी तुलनाओं से भरे होंगे. और जो लोग भी ये कर रहे होंगे वो खुद तुलना के खेल के शिकार हैं.
(लेखक गिरीजेश वशिष्ठ टीवी पत्रकार हैं, सहारा समय की लांचिग टीम के अलावा एस-1 को लांच कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा चुके हैं, वर्तमान में आज तक चैनल में महत्वपूर्ण पद पर कार्यरत हैं।)