देश के जाने माने समकालीन लेखक, नाटककार, अभिनेता और फिल्म निर्देशक गिरीश कर्नाड का 81 साल की उम्र में सोमवार को निधन हो गया। वह लंबे समय से बीमार चल रहे थे। पद्मश्री, पद्मभूषण और ज्ञानपीठ पुरस्कार पाने वाले गिरीश कर्नाड को अमर उजाला की ओर से आकाशदीप सम्मान दिया जा चुका है। दिल्ली के तीनमूर्ति सभागार में अमर उजाला ने शब्द सम्मान समारोह में उन्हें वर्ष 2018 के सर्वोच्च सम्मान ‘आकाशदीप’ से नवाजा गया था।
भारतीय भाषाओं के सामूहिक स्वप्न के सम्मान में अमर उजाला फाउंडेशन द्वारा लेखन-जीवन के समग्र अवदान के लिए सर्वोच्च शब्द सम्मान ‘आकाशदीप’ दिया जाता है। साल 2018 के लिए हिंदी के प्रख्यात आलोचक डॉ. नामवर सिंह और हिंदीतर भाषाओं में विख्यात कलाकर्मी-चिंतक गिरीश कर्नाड को यह सम्मान दिया गया था। सम्मान में पांच-पांच लाख रुपये की राशि सम्मिलित होती है। हिंदी दिवस की पूर्व-संध्या पर इसकी घोषणा की गई थी।
अमर उजाला के इस शब्द सम्मान समारोह के मौके पर पूर्व राष्ट्रपति डॉ. प्रणव मुखर्जी भी आए थे। उनकी ओर से बेटे रघु ने पूर्व राष्ट्रपति से यह सम्मान रिसीव किया था। उन्होंने इसे अनूठी और सराहनीय पहल बताया था। इस समारोह में डॉ. नामवर सिंह के साथ गिरीश कर्नाड का नाम तय किया गया था। पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने अमर उजाला के इस कार्यक्रम की तस्वीरें ट्विटर पर शेयर की है। उन्होंने लिखा कि गिरीश कर्नाड के निधन पर गहरा दुख हुआ। उनका निधन भारतीय सिनेमा और साहित्य के लिए एक बहुत बड़ी क्षति है।
आकाशदीप सम्मान मिलने पर गिरीश ने कहा था कि वे शब्द सम्मान की गरिमा से अभिभूत हैं। उन्होंने कहा था कि यदि आप गड़बडिय़ों, अव्यवस्थाओं और कोलाहल के बीच भ्रम को नहीं समझ सकते, तो आप नाटकों में हो ही नहीं।
अमर उजाला शब्द सम्मान समारोह में गिरीश कर्नाड ने कहा था कि मैं भाग्यशाली रहा कि विविध भाषा संस्कृति में पला-बढ़ा। यही कारण है कि मैं अच्छी हिंदी बोल सकता हूं। मैं कवि बनना चाहता था। मेरी थियेटर में भी रुचि थी, लेकिन मेरा नाटक लेखक बनने का कोई इरादा नहीं था। स्कॉलरशिप मिलने के बाद मैं लंदन पहुंचा। उस समय एक धारणा थी कि यदि मैं विदेश जाउंगा, तो मैं विदेश की किसी गोरी मेम से शादी कर लूंगा। तभी एक दिन मेरे मन में ययाति लिखने का विचार आया। इसके बाद जिंदगी में कई मोड़ आए।
उन्होंने कहा था कि नाटकों के लेखन-निर्देशन, अभिनय के अलावा फिल्म निर्देशन में भी आया। जादूगरी में भी मेरी दिलचस्पी थी। जादू के शो चाव से देखता था। लेकिन जादू नहीं कर पाया। फिर मैंने मुंबई छोड़ा और वापस आ गया, क्योंकि मेरी पत्नी कहती थी कि बहुत हो गया हिंदी सिनेमा। मैं भाग्यशाली हूं कि मुझे आज भी ऑफर आते हैं। मेरे लिए सबसे महत्वपूर्ण चीज नाटक था। आज भी है। फिल्मों से पैसा कमाया। कभी आत्मसंतुष्टि नहीं हुई। मेरे सभी नाटक कन्नड़ भाषा में हैं। हिंदी और कन्नड़ ने मुझे बनाए रखा है।