नई दिल्ली (27 जनवरी 2018)- आसियान देशों के साथ भारत के मज़बूत रिश्तों में एक नया अध्याय और जुड़ गया है। भारत के गणतंत्र दिवस पर आसियान देशों के नुमाइंदो की मौजूदगी ने इस रिश्ते को दुनियां के सामने पेश किया है। इसी मौक़े पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ‘आसियान-भारत: साझा मूल्य, समान नियति’ के शीर्षक से एक लेख लिखा है। प्रधानमंत्री ने इस ये लेख में आसियान-भारत साझेदारी के बारे में अपना दृष्टिकोण साझा किया है। पीएम मोदी का ये लेख आसियान के सदस्य देशों के प्रमुख दैनिक समाचार पत्रों के संपादकीय पन्ने पर प्रकाशित हुआ है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गणतंत्र दिवस के मौके पर 1.25 अरब भारतीयों को देश की राजधानी नई दिल्ली में आयोजित भारत के गणतंत्र दिवस समारोह में 10 आसियान राष्ट्रों के राजनेताओं की मेजबानी की बधाई दी। प्रधानमंत्री ने कहा कि गुरुवार को मुझे आसियान-भारत साझेदारी के 25 वर्षों का जश्न मनाने के अवसर पर आयोजित स्मारक शिखर सम्मेलन के लिए आसियान के राजनेताओं की मेजबानी करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था। उन्होंने कहां कि हमारे साथ उनकी उपस्थिति आसियान राष्ट्रों की ओर से अभूतपूर्व सद्भाव को परिलक्षित करती है। इस सद्भाव पर सौम्य प्रतिक्रियास्वरूप सर्दियों के इस मौसम में भारत ने आज प्रात: गर्मजोशी भरी मित्रता का परिचय देते हुए उनका सम्मानपूर्वक स्वागत किया है। उन्होंने कहा कि यह कोई सामान्य आयोजन नहीं है। यह उस उल्लेखनीय यात्रा में ऐतिहासिक मील का पत्थर है जिसने भारत और आसियान को अपने 1.9 अरब देशवासियों यानी दुनिया की लगभग एक-चौथाई आबादी के लिए अत्यंत अहम वादों से भरी आपसी साझेदारी के एक सूत्र में बांध दिया है। भारत-आसियान साझेदारी भले ही सिर्फ 25 साल पुरानी हो, लेकिन दक्षिण-पूर्व एशिया के साथ भारत के रिश्ते दो सहस्राब्दियों से भी अधिक पुराने हैं। शांति एवं मित्रता, धर्म व संस्कृति, कला एवं वाणिज्य, भाषा और साहित्य के क्षेत्रों में अत्यंत प्रगाढ़ हो चुके ये चिरस्थायी रिश्ते अब भारत और दक्षिण-पूर्व एशिया की शानदार विविधता के हर पहलू में मौजूद हैं जिससे हमारे लोगों के बीच सहूलियत और अपनेपन का एक अनूठा आवरण बन गया है। दो दशक से भी अधिक समय पहले भारत ने व्यापक बदलावों के साथ दुनिया के लिए अपने दरवाजे खोल दिए थे और विगत सदियों के दौरान विकसित सहज रुझान से प्रेरित होकर वह स्वाभाविक रूप से पूरब की ओर उन्मुख हो गया। इस प्रकार पूरब के साथ भारत के एकीकरण की एक नई यात्रा शुरू हुई। भारत की दृष्टि से हमारे ज्यादातर प्रमुख साझेदार और बाजार यथा आसियान एवं पूर्वी एशिया से लेकर उत्तरी अमेरिका तक दरअसल पूरब की ओर ही अवस्थित हैं। यही नहीं, भूमि एवं समुद्री मार्गों से जुड़े हमारे पड़ोसी यथा दक्षिण-पूर्व एशिया और आसियान हमारी ‘लुक ईस्ट’ नीति एवं पिछले तीन वर्षों से हमारी ‘एक्ट ईस्ट’ नीति के तहत ऊंची कारोबारी छलांग लगाने में अत्यंत मददगार साबित होते रहे हैं।
आसियान और भारत इसके साथ ही संवाद करने वाले साझेदारों के बजाय अब रणनीतिक साझेदार बन गए हैं। हम 30 व्यवस्थाओं के जरिए व्यापक आधार वाली आपसी साझेदारी को आगे बढ़ा रहे हैं। आसियान के प्रत्येक सदस्य देश के साथ हमारी राजनयिक, आर्थिक और सुरक्षा साझेदारी बढ़ रही है। हम अपने समुद्रों को सुरक्षित और निरापद रखने के लिए मिलकर काम करते हैं। हमारा व्यापार और निवेश प्रवाह कई गुना बढ़ गया है। आसियान भारत का चौथा सबसे बड़ा व्यापार भागीदार है और भारत आसियान का सातवां सबसे बड़ा व्यापार भागीदार है। भारत द्वारा विदेश में किए जाने वाले निवेश का 20 प्रतिशत से भी अधिक हिस्सा आसियान के ही खाते में जाता है। सिंगापुर की अगुवाई में आसियान भारत का प्रमुख निवेश स्रोत है। इस क्षेत्र में भारत द्वारा किए गए मुक्त व्यापार समझौते अपनी तरह के सबसे पुराने समझौते हैं और किसी भी अन्य क्षेत्र की तुलना में सबसे महत्वाकांक्षी हैं।
हवाई संपर्कों का अत्यंत तेजी से विस्तार हुआ है और हम नई अत्यावश्यकता एवं प्राथमिकता के साथ महाद्वीपीय दक्षिण-पूर्व एशिया में काफी दूर तक राजमार्गों का विस्तार कर रहे हैं। बढ़ती कनेक्टिविटी के परिणामस्वरूप आपसी सान्निध्य और ज्यादा बढ़ गया है। यही नहीं, इसके परिणामस्वरूप दक्षिण-पूर्व एशिया में पर्यटन के सबसे तेजी से बढ़ते स्रोतों में अब भारत भी शामिल हो गया है। इस क्षेत्र में रहने वाले 6 मिलियन से भी अधिक प्रवासी भारतीय, जो विविधता में निहित और गतिशीलता से ओत-प्रोत हैं, हमारे लोगों के बीच आपसी मानवीय जुड़ाव बढ़ाने की दृष्टि से अद्भुत हैं।
प्रधानमंत्री ने दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के संगठन आसियान के प्रत्येक देश के बारे में अपने विचार इस प्रकार साझा किये हैं।
थाईलैंड
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मुताबिक़ थाईलैंड आसियान देशों में से एक महत्वपूर्ण व्यापारिक साझेदार के रूप में उभर कर सामने आया है और भारत में निवेश करने वाले महत्वपूर्ण देशों में से एक है। भारत और थाईलैंड के बीच द्विपक्षीय व्यापार पिछले दशक में बढ़कर दुगने से अधिक हो गया है। दोनों देशों के संबंध कई क्षेत्रों में विस्तृत रूप से फैले हुए हैं। हम दक्षिण और दक्षिण-पूर्व को जोड़ने वाले महत्वपूर्ण क्षेत्रीय साझेदार हैं। हम आसियान, पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन और बिमस्टेक (बहु-क्षेत्रीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग के लिए बंगाल की खाड़ी के देशों के संगठन) में घनिष्ठ सहयोगी तो हैं ही, मीकांग-गंगा सहयोग, एशिया सहयोग वार्ता और हिन्द महासागर के तटवर्ती देशों के संगठन में भी साझेदार हैं। 2016 में थाईलैंड के प्रधानमंत्री की भारत की राजकीय यात्रा से द्विपक्षीय संबंधों में दीर्घकालीन असर पड़ा।
थाईलैंड के महान और जनप्रिय नरेश भूमिबोल अदुल्यदेज के देहांत पर पूरा भारत थाईलैंड के अपने भाई-बहनों के साथ शोकमग्न हो गया था। अपने थाई मित्रों के साथ भारत के लोगों ने भी नये नरेश महामहिम महा वाजिरालोंगकोर्न बोदीन्द्रदेबायावारांगकुन के खुशहाल और शांतिपूर्ण शासन के लिए प्रार्थना की।
वियतनाम
भारत के वियतनाम के साथ परम्परागत रूप से घनिष्ठ और सद्भावपूर्ण संबंधों की जड़ें विदेशी शासन से मुक्ति के लिए एक जैसे संघर्ष और राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ी हैं। महात्मा गांधी और राष्ट्रपति हो चि मिन्ह जैसे महान नेताओं ने उपनिवेशवाद के खिलाफ लड़ाई में देशवासियों को ऐतिहासिक नेतृत्व प्रदान किया। 2007 में वियतनाम के प्रधानमंत्री एंगुयेन तान डुंग की भारत यात्रा के दौरान हमने सामरिक साझेदारी समझौते पर दस्तखत किये। 2016 में मेरी वियतनाम यात्रा से इस सामरिक साझेदारी ने समग्र सामरिक साझेदारी का रूप ले लिया।
वियतनाम के साथ भारत के संबंध बढ़ते हुए आर्थिक और वाणिज्यिक संपर्कों को रेखांकित करते हैं। भारत और वियतनाम के बीच द्विपक्षीय व्यापार दस वर्षों में करीब 10 गुना बढ़ गया है। रक्षा सहयोग भारत और वियतनाम के बीच सामरिक साझेदारी के महत्वपूर्ण आधार स्तंभ के रूप में उभर कर सामने आया है। विज्ञान और टेक्नोलाजी दोनों देशों के बीच सहयोग का एक अन्य महत्वपूर्ण क्षेत्र है।
म्यांमार
भारत और म्यांमार के बीच 1600 किलोमीटर से ज्यादा लंबी साझा जमीनी और समुद्री सीमा है। हमारे बीच मित्रता की जड़ें धार्मिक और सांस्कृतिक परम्पराओं में निहित हैं और हमारी साझा बौद्ध बिरासत हमें उतने ही घनिष्ठ रूप से बांधे हुए है जितना पुराना हमारा ऐतिहासिक अतीत है। भला इस मित्रता को श्वेडगोन पगोडा की लगमगाती मीनार से अधिक भव्य तरीके से कौन उजागर कर सकता है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की मदद से बेगान के आनंद मंदिर का जीर्णोद्धार भी मित्रता की इस साझी बिरासत का द्योतक है।
औपनिवेशिक युग में हमारे नेताओं के बीच राजनीतिक संबंध बने थे और उन्होंने आजादी की साझा लड़ाई में बड़ी उम्मीदों और एकता का प्रदर्शन किया। गांधीजी ने कई बार यांगून का दौरा किया था। बालगंगाधर तिलक को तो कई साल के लिए यांगून भेजकर देश निकाला दे दिया गया था। भारत की आजादी के लिए नेताजी सुभाष चंद्र बोस के आह्वान ने म्यांमार में बहुत से लोगों को उद्वेलित कर दिया था।
पिछले दशक में हमारा व्यापार दुगने से भी ज्यादा बढ़ गया है। हमारे निवेश संबंध भी काफी सुदृढ़ हुए हैं। म्यांमार के साथ भारत के संबंधों में विकास संबंधी सहयोग की महत्वपूर्ण भूमिका है। फिलहाल भारत की ओर से सहायता राशि 1.73 अरब डालर से अधिक है। भारत का पारदर्शी विकास सहयोग म्यांमार की राष्ट्रीय प्राथमिकताओं के अनुसार है जिसका आसियान से जुड़ने के मास्टर प्लान यानी वृहद योजना के साथ पूरा तालमेल है।
सिंगापुर
सिंगापुर, इस क्षेत्र के साथ भारत के संबंधों की विरासत के झरोखे, वर्तमान की प्रगति और भविष्य की संभावनाओं तरह है। सिंगापुर भारत और आसियान के बीच एक पुल की तरह है।
आज यह पूर्व के साथ हमारे प्रवेश का मुख्य मार्ग है, यह हमारा प्रमुख आर्थिक साझेदार है और महत्वपूर्ण सामरिक सहयोगी भी है जिसकी झलक कई क्षेत्रीय और वैश्विक मंचों में हमारी सदस्यता से परिलक्षित होती है। सिंगापुर और भारत सामरिक सहयोगी भी हैं।
हमारे राजनीतिक संबंध सद्भाव, सौहार्द और भरोसे पर टिके हुए हैं। हमारे रक्षा संबंध दोनों के सुदृढ़तम रक्षा संबंधों में से हैं।
हमारी आर्थिक साझेदारी में दोनों देशों की प्राथमिकताओं का प्रत्येक क्षेत्र शामिल है। सिंगापुर भारत का प्रमुख गंतव्य और निवेश स्रोत है।
हजारों भारतीय कंपनियां सिंगापुर में पंजीकृत हैं।
16 भारतीय शहरों से सिंगापुर के लिए सप्ताह में 240 सीधी उड़ानें उपलब्ध हैं। सिंगापुर की यात्रा करने वाले पर्यटकों की संख्या की दृष्टि से भारतीय पर्यटक समूह तीसरे स्थान पर है।
सिंगापुर की विविधतापूर्ण संस्कृति भारत के लिए प्रेरणास्पद है। प्रतिभा का सम्मान करने की भावना की वजह से वहां भारतीयों की उपस्थिति बड़ी जीवंत और गतिशील है और ये लोग दोनों राष्ट्रों की घनिष्ठता बढ़ाने में योगदान कर रहे हैं।
फिलीपींस
करीब दो महीने पहले अपनी फिलीपींस यात्रा करने पर मुझे बड़ा संतोष हुआ था। आसियान-भारत, ईएएस और इनसे संबंधित शिखर सम्मेलनों में भाग लेने के अलावा मुझे राष्ट्रपति दुतेर्ते से मुलाकात का सुअवसर मिला और हमने अपने घनिष्ठ और समस्यामुक्त संबंधों को आगे बढ़ाने पर चर्चा की। दोनों देश सेवा के क्षेत्र में मजबूत हैं और हम सबसे ऊंची विकासदर वाले दुनिया के प्रमुख देशों में शामिल हैं। व्यापार और कारोबार की हमारी क्षमताओं की वजह से हमारे सामने अनेक संभावनाएं हैं।
मैं समावेशी विकास लाने और भ्रष्टाचार से संघर्ष के बारे में राष्ट्रपति दुतेर्ते की वचनबद्धता की सराहना करता हूं। ये ऐसे क्षेत्र हैं जिनमें दोनों देश मिल कर कार्य कर सकते हैं। हमें यूनीवर्सल आईडी कार्ड, वित्तीय समावेशन, बैंकिंग को सबकी पहुंच के दायरे में लाने, प्रत्यक्ष लाभ अंतरण और नकदी विहीन लेन-देन को बढ़ावा देने के बारे में अपने अनुभवों को फिलीपींस के साथ साझा करने में बड़ी प्रसन्नता हो रही है। सभी को वाजिब दामों पर दवाएं उपलबध कराना फिलीपींस सरकार की प्राथमिकता का एक अन्य विषय है और हम इसमें योगदान करने को तैयार हैं। मुंबई से मरावी तक आतंकवाद ने किसी को नहीं बख्शा है। इस साझा चुनौती से निबटने में हम फिलीपींस के साथ सहयोग बढ़ा रहे हैं।
मलेशिया
भारत और मलेशिया के बीच समसामयिक संबंध काफी विस्तृत हैं और कई क्षेत्रों में फैले हुए हैं। मलेशिया और भारत सामरिक साझेदार हैं और कई बहुपक्षीय तथा क्षेत्रीय मंचों में भी सहयोगी हैं। 2017 में मलेशिया के प्रधानमंत्री की भारत की राजकीय यात्रा हमारे द्विपक्षीय संबंधों पर गहरा असर डाला है।
आसियान में मलेशिया भारत के तीसरे सबसे बड़े व्यापारिक साझेदार के रूप में उभर कर सामने आया है और भारत में निवेश करने वाला आसियान देशों में से महत्वपूर्ण निवेशक है। पिछले दस वर्षों में दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार दुगने से ज्यादा बढ़ गया है। 2011 से भारत और मलेशिया के बीच विस्तृत द्विपक्षीय आर्थिक सहयोग समझौता है। यह समझौता इस अर्थ में अनोखा है कि इसने सामान के व्यापार के क्षेत्र में आसियान से कही अधिक वचनबद्धाओं वाला प्रस्ताव किया और सेवाओं के विनिमय में डब्ल्यूटीओ से भी अधिक के प्रस्ताव किये। दोनों देशों के बीच दोहरे कराधान को रोकने के संशोधित समझौते पर मई 2012 में दस्तखत किये गये और सीमा शुल्क के क्षेत्र में सहयोग के लिए 2013 में समझौता हुआ जिसने हमारे व्यापार और निवेश सहयोग को और भी सुविधाजनक बना दिया है।
ब्रूनेई
भारत और ब्रूनेई के बीच द्विपक्षीय व्यापार पिछले दशक में दुगने से ज्यादा हो गया है। भारत और ब्रूनेई संयुक्त राष्ट्र, गुट निरपेक्ष आंदोलन (नाम), राष्ट्रमंडल, एआरएफ आदि संगठनों के साझा सदस्य हैं। विकासशील देशों के रूप में मजबूत पारम्परिक और सांस्कृतिक संबंधों के साथ प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय विषयों पर ब्रूनेई और भारत के विचारों में काफी हद तक समानता है। 2008 में ब्रूनेई के सुल्तान की भारत यात्रा दोनों देशों के संबंधों में एक मील का पत्थर साबित हुई। भारत के उपराष्ट्रपति ने फरवरी 2016 में ब्रूनेई का दौरा किया।
लाओ पीडीआर
भारत और लाओ पीडीआर के बीच संबंध व्यापक रूप से कई क्षेत्रों में फैले हुये हैं। भारत लाओ पीडीआर के विद्युत वितरण एवं कृषि क्षेत्र में सक्रिय रूप से काम कर रहा है। आज, भारत और लाओ पीडीआर अनेक बहुपक्षीय और क्षेत्रीय मंचों पर सहयोग करते हैं।
यद्यपि भारत और लाओ पीडीआर के बीच व्यापार संभावनाओं से कम है लेकिन भारत ने लाओ पीडीआर से भारत में निर्यात को प्रोत्साहित करने के लिये लाओ पीडीआर को ड्यूटी फ्री टैरिफ प्रेफरेंस स्कीम की सुविधा प्रदान की हुई है। हमारे पास सेवा क्षेत्र में अपार संभावनायें जो कि लाओ पीडीआर की अर्थव्यवस्था के निर्माण में काम आती हैं। आसियान-भारत सेवा और निवेश समझौते का लागू होना सेवा क्षेत्र में हमारे व्यापार को बढ़ाने में मदद करेगा।
इंडोनेशिया
हिंद महासागर में केवल 90 समुद्री मील की दूरी पर स्थित भारत और इंडोनेशिया दो सहस्त्राब्दियों से सभ्यता आधारित एक संबंध की निरंतरता को साझा करते हैं।
चाहे यह ओडिशा में वार्षिक बालीजात्रा का उत्सव हो या रामायण और महाभारत की कहानियां जो कि पूरे इंडोनेशियाई भूक्षेत्र में दिखती हैं, यह अनोखे सांस्कृतिक तंतु एशिया के दो सबसे बड़े लोकतंत्रों के लोगों को एक विशेष मैत्रीपूर्ण रिश्ते में बांधते हैं।
‘विविधता में एकता’ या भिन्नेका तुंगल इका दोनों ही देशों में मान्य साझा सामाजिक मूल्यों के ढांचे का एक महत्वपूर्ण पक्ष है, वैसे ही लोकतंत्र के साझा मूल्य और कानून का शासन भी है।
आज, रणनीतिक सहयोगियों के रूप में, हमारा सहयोग राजनीतिक, आर्थिक, रक्षा एवं सुरक्षा, सांस्कृतिक एवं लोगों के बीच संबंधों जैसे सभी क्षेत्रों में फैला हुआ है। आसियान में इंडोनेशिया हमारा लगातार सबसे बड़ा व्यापारिक सहयोगी बना हुआ है। भारत और इंडोनेशिया के बीच द्विपक्षीय व्यापार पिछले 10 वर्षों में 2.5 गुना बढ़ा है। वर्ष 2016 में राष्ट्रपति जोको विडोडो की भारत की राजकीय यात्रा का द्विपक्षीय संबंधों पर दीर्घकालिक प्रभाव पड़ा है।
कंबोडिया
भारत और कंबोडिया के बीच परंपरागत और मैत्रीपूर्ण संबंध सभ्यताओं पर आधारित हैं जो गहराई से जुड़े हुए हैं। अंगकोर वाट मंदिर का भव्य ढांचा हमारे प्राचीन ऐतिहासिक, धार्मिक और सांस्कृतिक संबंधों का एक शानदार गवाह और भव्य प्रतीक है। 1986-1993 के मुश्किल समय में अंग्कोर वाट मंदिर का पुनरुद्धार और पुनर्स्थापन कार्य करने में भारत गौरवान्वित हुआ। ता-प्रोह्म मंदिर में चल रहे पुनरुद्धार के काम में भारत एक मूल्यवान सहयोगी बना हुआ है।
खमेर रूज की सत्ता समाप्त होने के बाद भारत पहला ऐसा देश था जिसने 1981 में नई सरकार को मान्यता दी थी। पेरिस शांति समझौता एवं 1991 में इसको पूर्ण किये जाने में भी भारत शामिल था। नियमित तौर पर होने वाले उच्च-स्तरीय दौरों की वजह से मित्रता के यह परंपरागत संबंध और सुदृढ़ हुए है। हमने अपने सहयोग का विविध क्षेत्रों जैसे संस्थागत क्षमता विकास, मानव संसाधन विकास, विकासात्मक एवं सामाजिक परियोजनायें, सांस्कृतिक आदान-प्रदान, सैन्य सहयोग, पर्यटन और लोगों के बीच संबंधों जैसे क्षेत्रों में विस्तार किया है।
आसियान के संबंध में और अन्य वैश्विक मंचों पर कंबोडिया भारत का एक महत्वपूर्ण सहयोगी और साझीदार है। भारत कंबोडिया के आर्थिक विकास में एक साझीदार बनने के लिये प्रतिबद्ध है और परंपरागत संबंधों को और प्रगाढ़ बनाने की दिशा में उन्मुख है।
यही नहीं, भारत एवं आसियान और भी बहुत कुछ कर रहे हैं। आसियान के नेतृत्व वाली अन्य संस्थाओं जैसे पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन, एडीएमएम (आसियान रक्षा मंत्री एवं अन्य की बैठक) तथा एआरएफ (आसियान क्षेत्रीय मंच) में हमारी साझेदारी इस क्षेत्र में शांति एवं सुरक्षा को बढ़ावा दे रही है। भारत व्यापक क्षेत्रीय आर्थिक भागीदारी समझौते का एक उत्सुक भागीदार है जो कि सभी 16 भागीदारों के लिये एक व्यापक, संतुलित और निष्पक्ष समझौते की अपेक्षा करता है।
भागीदारी में शक्ति एवं स्थायित्व केवल संख्याबल से ही नहीं आता है बल्कि संबंधों की गहराई से भी आता है। भारत एवं आसियान देशों के संबंध किसी भी प्रकार की प्रतिस्पर्धा एवं दावेदारी से मुक्त हैं। हमारे पास भविष्य के लिये एक साझा दृष्टिकोण है जो कि समावेषण एवं एकीकरण, सभी राष्ट्रों की सार्वभौमिक समानता तथा व्यापार और पारस्परिक संबंधों के लिये स्वतंत्र एवं खुले मार्गों के समर्थन के प्रति प्रतिबद्धता पर आधारित है। यह इनके आकार पर आधारित न हो। आसियान-भारत साझेदारी लगातार प्रगति करेगी। युवा जनसंख्या, गतिशीलता एवं मांग के मामले में हसिल बढ़त के साथ-साथ तेजी से परिपक्व होतीं अर्थव्यवस्थायें – भारत एवं आसियान – एक मजबूत आर्थिक साझेदारी का सृजन करेंगी। संपर्क के साधन बढ़ेंगे और व्यापार का विस्तार होगा। एक ऐसे समय में जब भारत में एक सहयोगात्मक एवं प्रतिस्पर्धात्मक संघीय प्रणाली है, हमारे राज्य भी दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों के साथ एक फलदायी सहयोग संबंधों का विकास कर रहे हैं।
भारत का उत्तर-पूर्व एक पुनरुत्थान के पथ पर है। दक्षिण-पूर्व एशिया के साथ संपर्क इसकी प्रगति को और गति प्रदान करेगा। इस तरह से एक जुड़ा हुआ उत्तर-पूर्व हमारे सपनों के आसियान भारत संबंधों के लिये एक सेतु का काम करेगा।
एक प्रधानमंत्री के तौर पर मैंने चार वार्षिक आसियान-भारत शिखर सम्मेलनों एवं पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलनों में भाग लिया है। इसने क्षेत्र को स्वरूप देने के दृष्टिकोण में आसियान की एकता, इसकी केंद्रीय भूमिका और नेतृत्व के संबंध में मेरे विश्वास को और मजबूत किया है।
यह उपलब्धियों से भरा वर्ष है। पिछले वर्ष भारत की स्वतंत्रता के 70 वर्ष पूरे हुये। आसियान ने 50 वर्षों का स्वर्णकाल पूरा किया। हममें से प्रत्येक अपने भविष्य की ओर आशा भरी नजरों से और साथ ही हमारी साझेदारी की ओर विश्वासपूर्वक देख सकता है।
70 वर्ष की आयु में भारत अपनी युवा जनसंख्या की वजह से चेतना, उद्यमशीलता एवं ऊर्जा बिखेर रहा है। विश्व की सबसे तेज गति से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्था होने की वजह से भारत वैश्विक अवसरों का नया स्थल और विश्व अर्थव्यवस्था में स्थिरता का आधार बन गया है। प्रत्येक दिन बीतने के साथ भारत में व्यापार करना और आसान एवं सुगम बन रहा है। मुझे आशा है कि एक पड़ोसी और मित्र के नाते आसियान देश एक नये भारत के बदलाव का एक अभिन्न हिस्सा बनेंगे।
हम आसियान की खुद की प्रगति की सराहना करते हैं। आसियान ऐसे समय में अस्तित्व में आया था जब दक्षिण एशिया एक क्रूर युद्ध का अखाड़ा तथा अनिश्चित भविष्य वाले देशों का क्षेत्र बना हुआ था, ऐस समय में आसियान ने 10 देशों को एक समान उद्देश्य और साझा भविष्य के लिये संगठित किया। हममें ऊंची महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने और अपने समय की चुनौतियों का सामना करने की क्षमता है चाहें वे चुनौतियां आधारभूत ढांचे और शहरीकरण की हों या टिकाऊ कृषि की या एक स्वस्थ धरती की हों। हम डिजिटल तकनीक, आविष्कार और संपर्क के साधनों की शक्ति का प्रयोग करके जीवन को एक अभूतपूर्व गति से और विशाल स्तर पर बदल सकते हैं।
भविष्य की उम्मीद को शांति की एक ठोस चट्टान की जरूरत होती है। यह युग बदलावों, अस्थिरता और ऐसे परिवर्तनों का है जो कि इतिहास में दुर्लभ है। आसियान और भारत के पास अपने समय की अनिश्चितता और विप्लव से निकल कर अपने क्षेत्र एवं विश्व के लिये एक स्थिर और शांतिपूर्ण भविष्य के निर्माण के लिये एक स्थिर मार्ग तैयार करने के अपार अवसर भी हैं लेकिन वास्तव में विशाल जिम्मेदारियां भी हैं।
भारतीयों ने पूरब की तरफ हमेशा एक पोषण करने वाले सूर्योदय और प्रकाश के अवसरों के लिये देखा है। अब, पहले की ही तरह, पूरब या हिंद-प्रशान्त क्षेत्र भारत के भविष्य और हमारी साझा नियति के लिये अपरिहार्य है। आसियान-भारत साझेदारी इन दोनों के लिये ही एक निर्णायक भूमिका अदा करेगी। इस बीच, दिल्ली में आसियान और भारत दोनों ने ही अपने भविष्य की यात्रा के लिये अपने संकल्प को दोहराया है।
Tags:ASEAN-India Commemorative SummitBruneianCambodiaIndonesiaMalaysiamodi articleMyanmarNarendra Modi welcomPhilippineprime ministerrepublic daySingaporeThailandVietnam