नई दिल्ली (10-01-2018)- दुनियां भर में भारत ही एक ऐसा देश है जहां छोटा हो या बड़ा ताक़तवर हो या कमज़ोर क़ानून सभी के लिए बराबर है और इंसाफ होता भी है और दिखता भी। दुनियां के सबसे बड़े लोकतंत्र के सविंधान की सुंदरता को देखकर भारत की अज़मत का एहसास होता है। भारत की अदालतों और यहां की न्याय व्यवस्था की तारीफ के लिए अक्सर शब्दों की कमी महसूस होती है। बाबा साहेब और भारतीय संविधान का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा यही है कि भले ही 100 अपराधी छूट जांए लेकिन कोई निर्दोष सज़ा न पाए। जिसका सबूत अक्सर देखने को मिलता रहता है।
इस्लामिक स्कॉलर ज़ाकिर नाईक पर कई गंभीर आरोप लगे। पुलिस और जांच ऐजेंसियों ने देशहित और समाजहित में उचित क़दम उठाए। इस देश की जनता की बेहतर सोच का ये सबूत है कि ज़ाकिर नाईक को लेकर किसी धर्म या समुदाय के लोगों ने न समर्थन किया न जांच ऐजेंसियों पर सवाल उठाए। हांलाकि कुछ लोगों को ज़ाकिर नाईक को लेकर कुछ सवाल मन में ज़रूर थे। लेकिन अब अदालत ने भी साफ कर दिया है कि जब तक भारतीय न्यायिक व्यवस्था मौजूद है तब तक नाइंसाफी किसी के साथ नहीं होगी।
जी हां इस्लामिक स्कॉलर जाकिर नाईक के मामले में अदालत के सामने प्रवर्तन निदेशालय यानि ईडी को मानो फज़ीहत का सामना कर ना पड़ा है। इस मामले में ज्यूडीशियल ट्रिब्यूनल ने जांच को लेकर ईडी को लगभग फटकार लगाई है। ट्रिब्यूनल के जस्टिस मनमोहन सिंह ने ईडी द्वारा नाईक की अटैच की गई संपत्ति को ईडी के कब्जे में देने से इंकार करते हुए कई गंभीर सवाल खड़े कर दिये हैं।
आपको याद दिला दें कि डॉ. ज़ाकिर नाईक मामले पर इससे पहले भी राष्ट्रीय जांच एजेंसी यानि नेश्नल सिक्यूरिटी ऐजेंसी (एनआइए) को इंटरपोल से झटका लग चुका है। जहां एनआईए द्वारा जब रेड कॉर्नर नोटिस जारी करने की उसकी अर्जी खारिज कर दी गई थी।
ट्रिब्यूनल के जज ने ईडी के वकील से कहा कि मैं ऐसे 10 बाबाओं के नाम बता सकता हूं जिनके पास 10 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा की प्रापर्टी है और उन पर आपराधिक मामले भी चल रहे हैं। जज ने सवाल किया कि क्या आपने उनमें से एक के खिलाफ भी कार्रवाई की? ज्यूडिशियल ट्रिब्यूनल ने ईडी के वकील से ये भी पूछा कि जब आप चार्जशीट में ही तय अपराध नहीं बता पाए हैं तो फिर संपत्ति को जब्त करने का आधार क्या है। जिस पर वकील ने कहा कि नाईक ने युवाओं को अपने भाषणों के जरिए उकसाया है। तो इस पर जस्टिस सिंह ने बताया कि ईडी ने कोई भी प्रथम दृष्टया सुबूत या किसी भी भटके हुए या भ्रमित युवक का बयान पेश नहीं किया है, कि किस तरह से नाईक के भाषणों के प्रभाव से युवक अवैध कामों में गए।
इतना ही नहीं जस्टिस सिंह ने ये भी पूछा कि क्या आपने किसी का बयान दर्ज किया है कि वे कैसे इन भाषणों से प्रभावित हुए? आपकी चार्जशीट में तो ये भी दर्ज नहीं है कि 2015 ढाका के आतंकी हमले में इन भाषणों की क्या भूमिका थी। बाद में जज साहब ने कहा कि ऐसा लगता है कि ईडी ने अपनी सुविधा के हिसाब से 99 पीसदी भाषणों को नजरअंदाज करते हुए सिर्फ एक फीसद पर विश्वास जताया है। ईडी के वकील से जज ने कहा कि आपने वो भाषण पढ़े जो चार्जशीट में शामिल हैं? उन्होने कहा कि मैंने ऐसे बहुत से भाषण सुने हैं और मैं आपको कह सकता हं कि अभी तक मुझे कुछ भी आपत्तिजनक नहीं मिला है। इसके बाद ट्रिब्यूनल ने यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया और ईडी को चेन्नई में स्कूल व मुंबई में एक व्यापारिक मह्तव की प्रापर्टी पर कब्ज़ा लेने पर रोक लगा दी। एनफोर्समेंट डॉयरेक्ट्रेट यानि ईडी इससे पहले नाईक की तीन संपत्तियों को अटैच कर चुकी है, जिनमे स्कूल और मुंबई की प्रॉपर्टी भी शामिल हैं। मामले की सुनवाई में ट्रिब्यूनल ने कहा कि अब ईडी इनका फिजिकल पजेशन नहीं ले पाएगी, इसके बाद सुनवाई टाल दी गई है। उधर प्रवर्तन निदेशालय के सूत्रों के मुताबिक़ मामले पर हाईकोर्ट में अपील की जाएगी।
कुल मिलाकर इस मामले से एक बार फिर साबित हो गया है कि पुलिस और जांच ऐजेंसियां कई बार जल्दबाज़ी या राजनीतिक दबाव में कुछ ऐसे फैसले ले लेतीं है जो सबूतों और तथ्यों की कमी और सच्चाई के दम पर अदालत में चिक ही नहीं पाते। ऐसे में जनता के बीच पुलिस और जांच ऐजेंसियों साख पर सवाल उठने लगते हैं, जोकि अच्छे संकेत नहीं है।