नई दिल्ली (05 जनवरी 2018)- लोकसभा में पहले ही पास हो चुके तीन तलाक पर बिल को लेकर राज्यसभा में फिलहाल अनिश्तता बनी हुई है। लेकिन सवाल ये है कि ट्रिपल तलाक को लेकर बीजेपी की भले ही कोई रणनीति हो लेकिन फिलहाल चर्चा यही गर्म है कि बीजेपी को बिल पास होने में ज्यादा राजनीतिक लाभ है या अटके रहने में। हालांकि इस सवाल का जवाब बीजेपी की मंशा में निहित है। जहां मुस्लिमों का सवाल है, गुजरात हो या फिर दूसरे कई मामले, बीजेपी का पॉलिटिकल स्टैंड लगभग क्लियर है लेकिन मुस्लिम महिलाओं के हितों को लेकर बीजेपी गंभीर दिखना चाहती है। लेकिन राज्यसभा में कांग्रेस के बदले हुए रुख ने बीजेपी के लिए आसानी पैदा की या मुश्किलें ये भी बड़ा सवाल है।
दरअसल लोकसभा में कांग्रेस न तो विरोध करने की हालत में थी न ही उसके पास कोई विकल्प था। लेकिन तीन तलाक बिल को लेकर कई हल्कों में कांग्रेस की हुई फज़ीहत औक राज्यसभा में अनुकूल परिस्थितियों के चलते कांग्रेस ने ट्रिपल तलाक़ को लेकर बीजेपी के विजय रथ को मानों ब्रेक लगा दिया है। उधर बीजेपी के अपने सहयोगी टीडीपी ने भी उसके लिए मुश्किलें खड़ी कर दी हैं।
लेकिन सवाल ये है कि आख़िर गुरुवार के गतिरोध के बाद आज शुक्रवार को तीन तलाक बिल पर राज्यसभा में क्या हो सकता है ये सवाल सभी के मन में है। क्योंकि तीन तलाक का बिल लोकसभा से पास होने के बाद राज्यसभा में तकरीबन लटक ही गया है।इस मामले पर वित्तमंत्री अरुण जेटली ने कांग्रेस पर अलग-अलग सदनों में दोहरा रवय्या अपनाने का आरोप लगाया है। जबकि सरकार के पास राज्यसभा में बहुमत न होने की वजह से बीजेपी को बिल पास होता नहीं दिखाई दे रहा है। जिसके बाद पार्टी बहस के बाद इसे सेलेक्ट कमेटी को भेजने के लिए तैयार हो लग रही है।
इस मायनों में एक बार फिर सलेक्ट कमेटी चर्चाओं में है। 2011 में लोकपाल बिल के बाद तीन तलाक मामला भी इसी तरह की चर्चाओं को जन्म दे रहा है। दरअसल आमतौर पर साल भर में संसद में तीन सत्र चलते हैं, जिस दौरान हर छोटे बड़े कानून का मसौदा पेश होता है, जोकि कानून का रूप लेता है। वैसे भी ज्यादातर कानून बनाने के मसौदे को संसद की कमेटियों से गुजरना होता है। इस कमेटी की जिम्मेदारी है कि किसी भी बिल के अटक जाने पर उससे जुड़े तमाम पहलुओं पर गौर किया जाए। और संसद की इन्हीं कमेटियों में से एक कमेटी का नाम है सेल्क्ट कमेटी। जब इस सेलेक्ट कमेटी का काम पूरा हो जाता है उसको खत्म कर दिया जाता है। ये सेलेक्ट कमेटी सांसदों की एक छोटी सी कमेटी होती है। दुनियां के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत के अलावा ब्रितानवी सिस्टम पर आधारित वेस्टमिंस्टर सिस्टम अपनाने वाले ऑस्ट्रेलिया और कनाडा जैसे देशों में भी सेलेक्ट कमेटी होती है। जानकारों की मानें तो विधायिका के कामकाज के लिए ये बहुत ज़रूर है और इसी वजह से इनका नाम सेलेक्ट कमेटी पड़ा।
आपको याद ही होगा कि लोकपाल बिल 2011 में संसद के दोनों सदनों में पास हो गया था। लेकिन राज्यसभा में पास होने से पहले इस बिल को सेलेक्ट कमेटी के पास भेजा गया था। राज्यसभा की सेलेक्ट कमेटी ने तकरीबन एक साल बाद यानि नवंबर 2012 में इस पर अपनी रिपोर्ट सौंपी और बिल में 15 संशोधन करने की राय दी थी। जिसके बाद सरकार ने तमाम संशोधनों को मान लिया था। दरअसल सेलेक्ट कमेटियां दो प्रकार की यानि स्टैंडिंग कमेटी और ज्वाइंट कमेटी कही जाती है। स्टैंडिंग कमेटी बिल की सभी प्रमुख बातों पर बारी-बारी से ठीक उसी तरह से विचार करती है, जैसा कि संसद के दोनों सदनों में किया जाता है। वैसे भी हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था में नियम 125 के तहत राज्यसभा का कोई भी सदस्य किसी बिल को सेलेक्ट कमेटी में भेजने की मांग कर सकता है। अगर इस मांग को मान लिया जाता है तो बिल को सेलेक्ट कमेटी के पास भेज दिया जाता है। और जैसे ही सेलेक्ट कमेटी का गठन होता है, निर्धारित समय के भीतर ये अपना काम करना शुरू कर देती है। लेकिन अगर निर्धारित समय सीमा तय नहीं की गई है तो माना जाता है कि तीन महीने के भीतर रिपोर्ट पेश करनी है। लेकिन कई मामलों में डेडलाइन बढ़ाई जा सकती है।
लेकिन जानकारों की राय में तीन तलाक मामले में बीजेपी के सामने सबसे बड़ी दुविधा ये भी होगी कि अगर मामला सलेक्ट कमेटी को सौंपा गया तो नियमानुसार कमेटी में कई दलों के सदस्य होंगे जिनमें एक का भी विरोध दर्ज करना मजबूरी होगा। ऐसे में हो सकता है कि बीजेपी फिलहाल सलेक्ट कमेटी को न भेजकर बल्कि कुछ दिन रोककर अगली बार राज्यसभा में इसको पास कराने की भी कोशिश कर सकती है। वैसे भी राज्यसभा में तीन तलाक बिल के मामले में बीजेपी कांग्रेस के हाथों अपनी शहादत को भुनाने ती भी कोशिश कर सकती है। जिसका उसका पॉलिटिकल मायलेज भी मिल सकता है।
(लेखक आज़ाद ख़ालिद टीवी पत्रकार हैं डीडी आंखों देखीं, सहारा समय, इंडिया टीवी, इंडिया न्यूज़ समेत कई राष्ट्रीय चैनलों में महत्पूर्ण पदो पर कार्य कर चुके हैं।)