नई दिल्ली/जयपुर(10अगस्त2015)- संथारा को लेकर अदालत ने ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। जिसमें संथारा को गैर कानूनी माना गया है। लेकिन जैन समाज आज भी इसे अपना धार्मिक मामला मानता है। जाने माने जैनाचार्य एवं अहिंसा विश्व भारती के संस्थापक आचार्य डॉ.लोकेश मुनि ने कहा कि संथारा आत्महत्या नहीं है। उन्होंने कहा कि आत्महत्या कोई भी व्यक्ति आवेश, आवेग, तनाव, कुणठा, हताशा, निराशा आदि भावों से ग्रसित होकर करता है। जबकि संथारा न जीवन के प्रति लालसा और न मृत्यु के प्रति भय, यह समतामय, समाधिमय मृत्यु के वरण की विशिष्ठ साधना पद्धति है। जो की हजारों वर्ष पूर्व भगवान ऋषभ और भगवान महावीर की वाणी में उपलब्ध है।
अहिंसा विश्व भारती के मीडिया सचिव केनु अग्रवाल द्वारा जारी एक प्रेस रिलीज के मुताबिक आचार्य डॉ. लोकेश मुनि ने कहा कि इस विशिष्ठ साधना पद्धति द्वारा सर्वोदयी प्रख्यात नेता आचार्य विनोबा भावे ने भी संथारा ग्रहण किया था। आचार्य लोकेश ने कहा भगवान महावीर के समय से चली आ रही विशिष्ठ समता व समाधिमय मृत्यु के वरण को आत्महत्या मानना मौलिक अधिकारों का हनन है। उन्होंने राजस्थान कोर्ट के फैसले के बाद अपने विचार व्यक्त करते हुए तहा कि सतीप्रथा और संथारा की एक कोटि मैं तुलना नहीं की जा सकती। आचार्य ओकेश ने कहा भारतीय धर्म व आध्यात्म आत्मा को अमर मानते है, शरीर चोला बदलता है। आत्मा जैन दर्शन के अनुसार अजर अमर है। उन्होंने कहा कि शरीर अक्षम होने पर एक साधक जीवन के अंतिम समय को निकट जानकर समतामय, समाधिमय मृत्यु के वरण के लिए अति प्राचीन विशिष्ठ साधना पद्धति ‘संथारा’ को ग्रहण करता है। उनका कहना है कि संविधान के अनुसार यह उसका मौलिक अधिकार है।