नोएडादिल्ली(2अगस्त2015)-नोएडा में हाल ही मे दो पत्रकारों के खिलाफ सैक्स रैकेट से सांठ गांठ के आरोप सामने आए। ये कोई पहला मामला नहीं था कि जब किसी नामी और कथिततौर पर बड़े चैनल के पत्रकारों पर उगाही या अवैध क़िस्म के धंधों मे संलिप्तता के आरोप सामने आए हों। अभी कल ही एक बाइक को जब पुलिस ने रोका तो उसको चलाने वाले ने दिखाया कि वो पत्रकार है और पुलिस का ध्यान उसने अपनी बाइक पर लगे एक निजी चैनल के स्टीकर की तरफ दिलाया। लेकिन शायद पुलिस को भी ज़िद हो गई, उसने न सिर्फ उसके कागज़ात मांगे बल्कि उसकी जब तलाशी ली तो पत्रकारिता की आड़ में दूसरे राज्यों से शराब की तस्करी करने वाला एक शराम माफिया बेनक़ाब हो गया।
लेकिन सवाल ये उठता है कि क्या ये पत्रकार अपने आप ही सारे काले कारनामों को अंजाम देते हैं या फिर उनकी कमाई में से हिस्सा ऊपर तक यानि चैनल मालिकान और चैनल के बड़े अफसरों तक भी जाता है। हमने लगभग दो दशक तक कई बड़े और नामी चैनलों और पत्रकारों के साथ सीखी गई अपनी पत्राकरिता के दौरान, सैंकड़ो बार किसी भी आरोपी चाहे हैबिचुअल क्रिमिनल हो, या फिर अचानक हाथ आने वाला, कोई निजी कार्य करने वाला शख़्स हो, या फिर सरकारी नौकरी करते हुए पकड़ा गया कोई अफसर या कर्मचारी। हमेशा पुलिस को और खुद अपने चैनल और सीनियर को इसी बात पर ज़ोर देते हुए देखा है कि इसके ऊपर कौन था इसके गैंग में कौन कौन लोग थे कौन कौन इसको संरक्षण दे रहा था।
दिल्ली में उमा खुराना स्टिंग कांड में चैनल का पांच हज़ार का एक बेचारा कर्मचारी बलि का बकरा बना कर जेल भिजवा दिया गया ताकि कई कई लाख रुपए तनख्वाह पाने वालों को बचाया जा सके। ज़ी न्यूज़ के संपादक समेत कई बडे लोग सैकंड़ो करोड़ की उगाही के आरोप में जेल की हवा खाने के बावजूद आज भी समाज को आइना दिखाने के नाम पर चैनल की स्क्रीन पर बेशर्मी से मुस्कुराते देखे जा सकते हैं।इसके अलावा नीरा राडिया मामला भी लोगों को याद होगा।
दरअसल अगर इस पूरे खेल की जड़ में जाकर देखा जाए तो चैनल को चलाने वाले लोगों के सामने दो रास्ते हैं। एक तो ये कि वो आर्थिक संकट के चलते चैनल को या तो घसीटें और फिर बंद कर दे या फिर उगाही के धंधे में सीधे तौर पर उतर जाएं। पिछले साल ही चैनल वन के मालिकान पुलिस से चोर सिपाही का खेल खेलते सुने गये। इन पर आरोप था कि एक लड़की की आड़ मे ये लोग अफसरों और वीआईपी लोगों की सैक्स सीडी बनाकर उनको करोड़ों के लिए ब्लैकमेल करते थे। मामला उजागर हुआ तो लड़की समेत इनके दलाल पत्राकर तक जेल में और चैनल मालिक फरार। हालांकि चैनल मालिकान का कहना था कि उनको साजिश के तहत फंसाया गया था।
बहरहाल ये मामला भी कोई पहला नहीं था। अब सवाल यही है कि आखिर कब तक समाज को आईना दिखाने वाले चेहरे अपनी चेहरे पर लगी कालिख से मुंह चुराते रहेंगे। साथ ही पुलिस इनके छोटे गुर्गों के बजाए गैंग के असल चेहरों को कब बेनक़ाब करेगी।
(लेखक आज़ाद ख़ालिद डीडी आंखों देखी, सहारा समय, इंडिया टीवी, इंडिया न्यूज़, वॉयस ऑफ इडिया समेत कई अन्य चैनलों में महत्वपूर्ण पदों पर कार्य कर चुके हैं।)