देहरादून (11 जुलाई 2015)- हरियाली और प्रकृति के अपूर्व संगम और प्राकृतिक छटा वाले उत्तराखंड की सुंदरता को मानो इन दिनों नज़र लगती जा रही है। यहां के पर्वतीय और मैदानी क्षेत्रों से दिनोंदिन हरियाली खत्म होती जा रही है। जगह-जगह सीमेंट-कंकरीट के जंगल उग रहे हैं। भू एवं वन माफियाओं की सक्रियता के कारण यह स्थिति बन रही है। दूसरे जंगलों में हर साल लगने वाली आग व अतिक्रमणकारियों की वजह से भी हरियाली मिटती जा रही है। अभी तक तो राज्य सरकार इन सब पर अंकुश लगाने में नाकामयाब साबित रही है। राज्य के मैदानी इलाकों में तो हरियाली का नामोनिशान ही नहीं रहा। बागों में खड़े हरे-भरे फलदार वृक्षों पर शासन-प्रशासन की मिली भगत से खुलेआम आरियां चला कर बाग उजाड़े जा रहे हैं। आलम यह है कि नित नयी कालोनियों का जन्म हो रहा है। अंधाधुंध पेड़ों के कटान से पर्यावरण पर भी असर पड़ रहा है। इससे जंगली जानवरों व पक्षियों के आसरे उजड़ रहे हैं, पशुओं के लिए चारे की कमी हो रही है।
इसी सबको ध्यान में रखते हुए राज्य सरकार ने राज्य को हरा-भरा बनाने के लिए हरियाली योजना शुरु की है। जिसके तहत मुख्यमंत्री हरीश रावत ने हर साल मनाए जाने वाले उत्तराखंड के लोकप्रिय हरेला त्यौहार के उपलक्ष में ‘आओ मनाएं हरेला’ अभियान की शुरुआत की है। हरेला उत्तराखंड का एक प्रमुख त्यौहार है, जिसे हरियाली या हरयाण नाम से भी जाना जाता है। मुख्यमंत्री ने ‘मेरा पेड़ मेरा धन’ योजना को भी मूर्त रूप देने के लिए हरेला अभियान से जोड़ा है। जिसके तहत फलदार और चारा देने वाले पेड़ लगाए जाएंगे। वैसे भी पहाड़ हों या मैदान सरकार के साथ-साथ आम नागरिक भी फलदार व अन्य प्रजातियों का वृक्षारोपण करे तो वह दिन दूर नहीं जब राज्य की खोती हरियाली लौट सकेगी। यही नहीं फलदार वृक्षों के अधिक से अधिक लगाने पर जंगली जानवरों को जंगलों में ही भोजन मिलेगा। उनका रुझान बस्तियों की तरफ व खड़ी फसलें नष्ट करने की तरफ कम होगा। फलदार पेड़ जंगलों की बंजर व अन्य खाली पड़ी जमीन, नदियों- नालों के किनारे रोपित किए जा सकते हैं।
यह योजना कितनी सफल होगी यह तो आने वाला समय ही बताएगा। लेकिन फिलहाल राज्य के लोगों को ज्यादा से ज्यादा वृक्ष लगाने पर जोर दिया जा रहा है। सरकार का प्रयास तो अच्छा है मगर इसके साथ ही यदि सक्रिया वन व भू माफियाओं पर अंकुश लगाने की सोचती तो सोने पे सुहागा वाली कहावत चरितार्थ होती।
(देहरादून से स्वतंत्र पत्रकार ओम प्रकाश उनियाल की रिपोर्ट)