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Bjp politics in iftar party क्या बीजेपी नेता टोपी और रोज़ा इफ्तार की खुजूर क़बूल फरमाएंगे

-होली जुमा विवाद से अपने वोट को साधने वाले अब देखे जा सकते हैं इफ्तार पार्टी में

Bjp politics in iftar party
Bjp politics क्या बीजेपी नेता टोपी और रोज़ा इफ्तार की खुजूर क़बूल फरमाएंगे

-जिस समाज के खिलाफ सड़कों पर उतरे उसी समाज की इफ्तार पार्टी में अपने नेता को देख कर मायूस हो सकता है कट्टर वोट बैंक 

-सैकुलर सोच वाले इफ्तार पार्टी के समर्थन में 

उत्तर प्रदेश – पिछले विधानसभा चुनाव में बीजेपी के एक उम्मीदवार के लिए उनके एक सैकुलर समर्थक की मदद से शहर के कुछ मुस्लिम कबाड़ियों, प्रापर्टी डीलर्स और थानों के चक्कर लगाने वालों ने एक मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र में सभा का आयोजन करने का प्लान किया। अपने नेता को खुशी खुशी इस आयोजन की खबर उन्होंने दी तो बीजेपी समर्थित कुछ सलाहकारों की राय के बाद नेता जी ने वहां जाने से इंकार कर दिया। और काफी पूछने के बाद बेहद लाजिकल कारण बताया कि हो सकता था कि इस सभा से कुछ मुस्लिम वोट मुझको मिल जाते लेकिन हजारों वो हिंदू वोट कट जाता जो हमारी आइडियोलॉजी के अंधभक्त हैं। और हुआ भी वही यानी नतीजे आने पर उनकी ऐतिहासिक जीत सामने आई।
बहरहाल भले ही फिलहाल न तो विधानसभा चुनाव हैं न ही लोकसभा चुनाव। लेकिन चूंकि बीजेपी एक तो हमेशा चुनावी मौड में रहती है दूसरी अपने राजनीतिक समीकरण को साधना भी जानती है। यही कारण है कि विपक्ष आमतौर पर बीजेपी की रणनीति के आगे छटपटाता नजर आता है।
खैर हाल ही में देखा यह गया है कि बीजेपी ने जब जब मुस्लिम को टारगेट किया है तब तब उसका दूसरी तरफ वोट बैंक मजबूत हुआ है चाहे बुलडोजर का एक्शन हो या फिर ज्ञानवापी या फिर अतीक का मामला, बीजेपी को अपने कट्टर वोट बैंक को एकमुश्त करने में और एकजुट करने में कामयाबी मिली है। बीजेपी का सीधा कैलकुलेशन यह भी है कि अगर उसने अपने वोट बैंक को जोकि 80% हिंदू समाज की आबादी के तौर पर देखा जा सकता है, देशभर में एकजुट कर लिया तो यकीनन माइनॉरिटी खासतौर से मुस्लिम समाज का वोट बैंक अगर इकट्ठा हो भी जाता है, तो उसके कोई मायने नहीं हैं। हालांकि सच्चाई यह भी है की एक चौथाई लगभग मुस्लिम वोट बैंक जो कि देश में माना जाता है, वह कई पार्टियों में बटा हुआ है। कांग्रेस भी उसकी दावेदारी करती है समाजवादी पार्टी भी उसकी दावेदारी करती है और बीएसपी भी और असदुद्दीन ओवैसी अलग ताल ठोकते हैं। ऐसे में बीजेपी कभी मुस्लिम वोट बैंक की तरफ आकर्षित होने का रिस्क सीधे तौर पर नहीं लेगी।
क्योंकि मैथमेटिक्स उसका इतना कमजोर नहीं है कि 20 से 25% वोट बैंक में वह 5वें हिस्सेदार बनकर अपने कोर वोट बैंक को नाराज कर सके।और यही वजह है की आम तौर पर भाजपा के नेता टोपी और रोजा इफ्तार की खजूर से दूर नजर आते हैं।
अब हम आपसे बात करते हैं फिलहाल की। अभी हाल ही में आपने देखा होगा की होली और जुम्मा और रमजान को लेकर माहौल गर्माया रहा।जिसको कि कुछ लोगों ने 2027 की या फिर आने वाले दिनों में ग्राम पंचायत चुनाव की तैयारी के तौर पर देखा। लेकिन अभी क्योंकि रमजान भी चल रहे हैं, ऐसे में मुस्लिम समाज के अंदर कुछ बेचैन लोग, जो कि अपने वजूद को तरस रहे हैं, जैसे कि कुछ प्रॉपर्टी डीलर भू माफिया कबाड़ी और खासतौर से वह लोग जो कि थानों में पकड़वाने या छुड़वाने का धंधा करते हैं, वह चाहते हैं कि अपने वर्चस्व को बनाए रखने के लिए बीजेपी से नजदीकी दिखाएं। और यही वजह है कि वह लगातार भाजपा के नेताओं के संपर्क में है उनका झोला और थैला उठा रहे हैं दरिया भी बिछाने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन तेज दरार भाजपा नेता उनसे उचित दूरी बनाकर ही काम चला रहे हैं। अगर वह कहीं अपने पोस्टर या होर्डिंग भी लगाते हैं तो उस पर उनका कोई पद नहीं होता, बस भाजपा वर्कर या बीजेपी समर्थक लगे होते हैं। ऐसे में इतना तो साफ है कि जो तेज तर्रार और बीजेपी की रणनीति को समझने वाले भाजपा नेता यकीनन इस तरह के तत्वों से सीधे तौर पर मिलने से भी बचते हैं, और उनके आयोजनों में जाने से भी बचते हैं।
दरअसल वह यह भी जानते हैं कि जो लोग उनके इर्द-गिर्द घूम रहे हैं, वह वोट दिलाने में तो इतने कामयाब नहीं है जितना के वह उनको नुकसान पहुंचा सकते हैं। क्योंकि अगर इफ्तार पार्टी में टोपी या पार्टी में ही उनके फोटो खींचकर वायरल कर देंगे तो यकीनन उनका जो कट्टर वोट बैंक, बल्कि कहा जाए जो एंटी मुस्लिम वोट बैंक, कहीं ना कहीं चटक जाएगा और उनको आने वाले वक्त में कभी भी उसका नुकसान हो सकता है। यही वजह है की बड़े से बड़ा नेता भले ही कितना सेकुलर बनने की कोशिश करता हो लेकिन सीधे तौर पर किसी मुस्लिम आयोजन में नजर आने से बचता है। हाल के दिनों में मुस्लिम समाज के कुछ कबाड़ियों, कुछ प्रॉपर्टी डीलर्स ने और अपने निजी स्वार्थ को साधने वाले कुछ लोगों ने कोशिश तो बहुत की लेकिन अभी भी वह इस कोशिश में नाकाम नजर आ रहे हैं। हाल के दिनों में फिर वही खजूर की आड़ में राजनीति का खेल शुरू होने वाला है जैसा कि पहले कभी कांग्रेस के जमाने में, जैसा कि कभी समाजवादी पार्टी के जमाने में और बीएसपी के नेताओं के हाथों इफ्तार पार्टी के नाम पर राजनीति होती थी और बिरयानी बांटकर अपनी राजनीतिक रोटियां सेकी जाती थी।
ऐसे में बीजेपी की तरफ वही लोग आकर्षित हो रहे हैं या बीजेपी के लोगों को अपनी तरफ जोड़ने की कोशिश कर रहे हैं जो कि दावा करते हैं कि आप हमारे यहां इफ्तार पार्टी में आइए, हम आपको भारी वोट बैंक से रूबरू कराएंगे और आपकी पैठ बनवाएंगे।
लेकिन बीजेपी के नेता समझते हैं कि अगर वहां से कुछ सपोर्ट मिल भी जाएंगे तो उनके हजारों वोट नाराज भी हो सकते हैं और ऐसा रिस्क लेते हुए हर समझदार नेता अपनी आईडियोलॉजी और अपने समीकरण को बिगाड़ना नहीं चाहता।
जहां तक बिरयानी का सवाल है पिछले कुछ दिनों से मुस्लिम समाज के वोट बैंक के लिए बिरयानी एक पर्याय बन चुका है। तीन से ₹4000 की बिरयानी की देग में 100 से डेढ़ सौ 200 लोगों को निपटाया जाता है, बल्कि कहीं ना कहीं साधा जाता है। और एक इतने सस्ते सौदे को अब मुस्लिम समाज भी समझने लगा है कि यह वह बिरयानी की प्लेट वह जाल है जो कि उनके वोट बैंक को साधने के लिए मछलियों की तरह चारा डाला जाता है लेकिन मछली तो जाल में फंस जाती है लेकिन यह वोट बैंक अपने घर वापस लौट आता है।
बहरहाल जब तक रमजान है ईद है और आने वाले चुनाव की राजनीति गर्म है तब तक आपको रोजा इफ्तार भी नजर आएगा खजूर भी नजर आएगी और टोपी भी नजर आएगी। उसमें समाजवादी पार्टी के लोग भी होंगे कांग्रेसी नेता भी होंगे बीएसपी के नेता भी होंगे, लेकिन आकर्षण बीजेपी के नेताओं का ही रहेगा। सवाल यही है कि वह अपने कोर वोट बैंक को नाराज करके कितने मुस्लिम वोटो को हासिल करने के लिए रिस्क ले पाते हैं। क्योंकि यह भी जानते हैं की जिस वोट बैंक को किसी समाज के खिलाफ सड़कों पर उतर कर उन्होंने अपनी ताकत बनाई है, आज अगर उनका नेता उसी समाज के दर पर वोट बैंक के लिए टोपी या खजूर का लालच देखता नजर आएगा तो यकीनन बड़ा सवाल खड़ा हो जाएगा।

हालांकि सैकुलर सोच वाले इस तरह की इफ्तार पार्टी के हमेशा समर्थन में रहे हैं।

 

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आज़ाद ख़ालिद टीवी जर्नलिस्ट हैं, सहारा समय, इंडिया टीवी, वॉयस ऑफ इंडिया, इंडिया न्यूज़ सहित कई नेश्नल न्यूज़ चैनलों में महत्वपूर्ण पदों पर कार्य कर चुके हैं। Read more

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