ग़ाज़ियाबाद (1 अक्टूबर 2024)- भ्रूणहत्या… यूं तो आम ज़िन्दगी में क़ानूनन एक अपराध है और इस पर सख़्ती से प्रतिबंध है। लेकिन कभी-कभी राजनीति में कुछ ऐसे मामले देखने को मिलते हैं कि लोग तरह तरह की बातें करने लगते हैं।
रवि गौतम नेता बनने के लिए यूं तो बीएसपी में बड़े बड़े सपने लेकर बाक़ायद शामिल हुए थे, लेकिन टिकट बंटवारे के नाम पर कथित तौर पर मनुवादियों द्वारा बदनाम की जाती रही बहन जी मायावती की बहुजन समाज पार्टी में रवि गौतम ज़्यादा देर तक टिक नहीं सके। महज़ कुछ ही दिनों में रवि गौतम बीएसपी में आए भी, बड़ा सम्मेलन भी किया, टिकट के दावेदार भी बने, दलित मुस्लिम गठजोड़ के दम ख़याली विधायक भी बने। और बाहर भी कर दिए गए।
दरअसल रवि गौतम न तो बीएसपी को समझ पाए और न ही मायावती जी को। क्योंकि बहन जी का आशीर्वाद और टिकट मिलने की उम्मीद के बीच अचानक जब उनके टिकट कटने की चर्चा शुरू हुई तो उनका रिएक्शन बिल्कुल गैर-राजनीतिक हो गया। रवि गौतम यह समझ पाए कि उप चुनाव को लेकर अपनी पुरानी परंपरा को दरकिनार करने वाली बसपा प्रमुख मायावती चाहतीं क्या हैं। दरअसल ग़ाज़ियाबाद की सीट पर पहली बार रवि गौतम बतौर दलित भले ही शुरू में मज़बूत दिखने लगे हों, लेकिन एक तो यहां के कुछ कथित दलित ठेकेदारों का फीडबैक और कुछ सुश्री मायावती को वैश्य समाज से एक नया मोहरा मिल जाना, रवि गौतम के लिए अभिशाप बन गया। लेकिन अगर रवि गौतम इधर उधर आरोप प्रत्यारोप के बजाय बसपा और मायावती जी को समझते हुए वेट एंड वाच करते तो बीएसपी में आने वाला समय रवि गौतम का होता। रवि गौतम बीएसपी का सिपाही बनकर नये उम्मीदवार को चुनाव लड़वाते।
लेकिन जिस तरह से रवि गौतम ने उपचुनाव को ही सब कुछ मानकर बसपा के कुछ बड़े चेहरों तक के खिलाफ मोर्चा खोला उसका नतीजा वही हुआ जिसका अंदाजा उनको नहीं था। हालांकि सच्चाई ये भी है कि रवि गौतम के आरोप न सिर्फ गंभीर थे, बल्कि बहन जी के कुछ कथित कलैक्टरों की मोटा कलैक्शन थ्योरी को बेनकाब करते हैं। भले ही अपने आडियो से मायावती को बदनाम कर गये नसीमुद्दीन सिद्दीकी फिलहाल बसपा से बाहर निकल गये हों, लेकिन उनके जैसे आज भी कथित तौर पर वसूलते कुछ हैं, ऊपर पहुंचाते कुछ हैं।
बहरहाल एक तो आधे अधूरे ज्ञान वाले सलाहकारों से घिरे, बड़बोले , सिर्फ पैसे के दम पर और खुद को सबसे बड़ा ज्ञानी मानने वाले कई लोगों का अंजाम लोकसभा चुनाव से लेकर अब तक सामने आ चुका है। गाजियाबाद, मेरठ ,लखीमपुर हो या अमरोहा या आने वाले समय में धौलाना राजनीति करवट बदलती रहेगी।
फिलहाल बात गाजियाबाद उप चुनाव के लिए बीएसपी में हो रही उठापटक रवि गौतम के अलावा स्थानीय बीएसपी के दिग्गज राजकुमार गौतम और बालकराम को भी ले बैठी। बीएसपी ने आपसी छीछालेदर और कथित मोटी वसूली के आरोप से बचने के लिए, रवि गौतम के अलावा इन दोनों को भी बाहर का रास्ता दिखा दिया है। हालांकि एक आध बड़बोले और भी चर्चा में हैं ,जो करोड़ों ख़र्च के दावों और महंगें गिफ्ट्स के दम खुद और आने वाली अपनी पीढ़ी को हाथी की सवारी की ताल ठोंकते थे, लेकिन उनके पैरोकार ने उनको चुपचाप रहने की सलाह दी है। फिलहाल तीन लोग बीएसपी से बाहर कर दिए गए हैं, लेकिन चर्चा ये भी है कि देर सवेर कुछ और बड़बोले अनुशासनहीनता की चपेट में आ सकते हैं। प्यादा हो या उनके पैरोकार हाईकमान की नज़र सब पर है। नसीमुद्दीन सिद्दीकी जैसी सीख, समाज व पार्टी हित में इस बार मायावती जी को काफी सख़्त बना चुकी है।