हमारे पड़ोस मे सत्ता परिवर्तन, यानि तब्दीली ए इक़तदार के बाद नई हुकूमत और नये प्रधानमंत्री ने मुल्क की ईमानदारी से खिदमत करने की कसम खाई है। इसको वहां की अपोजिशन जमातों की मेहनत की जीत बताया जा रहा है।
कहते हैं कि कभी शेर और बकरी एक ही घाट पर पानी नहीं पीते। लेकिन अगर ऐसा कोई मिसाल देने की कोशिश करता है तो समझें या तो शेर की नीयत मे फितूर है या फिर बकरी बेवक़ूफ, या ये कोई दिखावा है। ख़ैर ये आज का हमारा न तो टॉपिक है न ही कोई खबर…आज हम बात कर रहे हैं पाकिस्तान में सत्ता परिवर्तन यानि तब्दीली ए इक़तदार के नाम पर इमरान खान के खिलाफ एक ही मंच पर इकठ्ठा होने वाले विपक्ष यानि हिज्बे इख्तिलाफ जमातों की। यूं तो पातिस्तान में कई सियासी जमाते हैं,जिनका जनता की भलाई करने के अलावा सबसे बड़ा काम एक दूसरे को कोसना ही है.. अकेले पातिस्तान की बानी माने जाने वाली मुस्लिम लीग तक के कई धड़े इन दिनो मार्किट मे हैं। नून, काफ वगैरा बगैरा। लेकिन कथित तौर पर यानि मुबय्यना तौर पर बतौर प्राइवेट लिमेटेड कंपनी चलाई जा रही जमातों में भुट्टों ख़ानदान या फिर शरीफ परिवार के अलावा एमक्यूएम या पीटीआई तक में इंटरनल डेमोक्रेसी के नाम पर जो चल रहा है सब को मालूम है। बहरहाल हम बात कर रहे थे इमरान खान के खिलाफ बनने वाला मुत्तेहदा मुहाज़ यानि सयुंक्त विपक्ष। माफ करना इस मुहाज को लेकर हमारी कोई टिप्पणी या कोई तनकीद नहीं है। और हमने जो शुरु में एक ही घाट पर शेर और बकरी के पानी पीने की कहावत और शेर की नीयत मे फितूर या फिर बकरी की समझ का जिक्र किया था इसका इन नेताओं या सियासी जमातो ते एक ही प्लेटफार्म पर आने की घटना से कोई लेना देना नहीं है। वो हम वैसे ही बात कर रहे थे। तो आइए बात करते हैं पाकिस्तान की मौजूदा सियासी उठापठक की। इस्लाम के नाम पर और मुसलमानों की भलाई के नाम पर वजूद मे आए इस मुल्क में अग़राज़ मक़ासिद यानि उद्देश्य किस तरह से सच्चाई की तऱफ गामज़न हुए है ये पूरी दुनियां ने देखा है। 1971 में दो मुस्लिम नेताओं के आपसी टकराव और पाकिस्तान के दो टुकडे होने के बाद अफगानिस्तान पर बमबारी के लिए लगभग 50 हजार फालइट पाकिस्तान की सरजमीन से उड़ कर मुस्लिम हमदर्दी का सबूत देती रहीं। खुद पाकिस्तानी रिकार्ड के मुताबिक लगभग 70 हजार लोग इस खेल में मार डाले गये और ये सब आपस में यानि मुसलमान बनाम मुसलमान ही रहा । इतना ही नहीं मस्जिद खानकाह या मजारों के अलावा जनाजे तक की नमाज के दौरान लोगों को मौत के घाट उतारा गया और तो और स्कूली बच्चों तक पर आतंकी हमले किये गये। लेकिन आज हम बात कर रहे हैं पाकिस्तान की भलाई के नाम एक ही प्लेटफार्म आए उन सियासी लोगों की जो कभी एक दूसरे को न सिर्फ जमकर कोसते थे बल्कि एक दूसरे पर इतने शर्मनाक इल्जाम लगाते थे कि कोई भी जीहिस इंसान शर्म से पानी पानी हो जाए। किसी जमाने में फांसी पर लटका दिये गये पाकिस्तान के पूर्व मुखिया जुल्फिकार अली भुट्टो और बाद में सरेआम गोलियों से भून दी गई बेनजीर भुटटो के भुट्टो के परिवार के लोगों और नवाज़ शरीफ या फिर एमक्यूम या दूसरी जमातो के एक दूसरे के खिलाफ दिये बयानों को अगर याद किया जाए तो हैरानी होती है कि ये सब किस मुंह से एक दूसरे का साथ देने को तैयार हुए। उधर चाहे खैबर बख्तून के जमातें या फिर वहां के मिसिंग परसन्स का मुद्दा या फिर शरीफ परिवार बनाम एमक्यूएम ये सब कैसे इस बात को भूल गये कि कभी उनके मुंह से एक दूसरे के लिये कैसे अल्फाज निकलते थे। हम फिलहाल कोई दावा नहीं कर रहे बल्कि सिर्फ इतना कह रहे हैं कि या तो पाकिस्तानी मीडिया में दिये गये इन लोगों के एक दूसरे के खिलाफ बयान या फिर सिर्फ गूगल पर सर्च करके देखा जा सकता है कि कभी एक दूसरे को खुंखार नजरों से घूरने वाले आखिर किस तरह से एक ही प्लेटफार्म पर आकर एक दूसरे की बाहों में बाहें डाल रहे हैं। बहरहाल हमारे पड़ोसियों को बधाई कि उनके देश के एक बेहद बीमार और कई मामलों में अदालती कार्रवाई के लिए बीमारी की वजह से अदालत तक में पेशी तक पर न जा सकने वाले शख्स न सिर्फ अब पूरी तरह सेहतमंद हो गये हैं बल्कि बतौर नये पीएम मुल्क की खिदमत को उठ खड़े हुए हैं। लेकिन आते ही उनके मुंह से कश्मीर पर बोलना ये जाहिर करता है कि वो भारत मुखालफत की बासी कढ़ी में उबाल की कोशिश से एक बार फिर अवाम की हमदर्दी बटौरना चाहते हैं। लेकिन सच्चाई यही है कि आज भी पाकिस्तान की अवाम को मिराज खालिद पूर्व प्रधानमंत्री जो एक गरीब किसान का बेटा जिसने दूध बेचकर बेहद ईमानदारी से अपनी पढ़ाई मुकम्मल की और देश के कई बड़े ओहदों पर रहने के बावजूद किराये के मकान में जिंदगी गुजार गया, जैसे किसी ईमानदार शख्स की बहुत याद आ रही होगी। न कि किसी ऐसे शख्स की जिसके चपरासियों तक के खातों में करोडों रुपये मिल सकते हों।
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