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गलवान में चीनी लाउडस्पीकर पर ‘तन डोले मेरा मन डोले’ गाना सुनाते, फिर कहते- सर्दी आने वाली है, पोस्ट छोड़ दो, ये जमीन न हमारी है, न तुम्हारी



लेह शहर से 15 किमी दूर बसे स्टोक गांव में रहते हैं ऑनररी कैप्टन फुन्शुकताशी। 1962 के भारत-चीन युद्ध के दौरान वह गलवान घाटी मेंतैनात थे। कैप्टन ताशी की उम्र 84 साल है। वे बताते हैं कि एक दिन उन्हें ऑर्डर मिला की पूरी यूनिट के साथ उन्हें दौलत बेग ओल्डी और गलवान के लिए निकलना है। वो अपनी यूनिट के साथ लेह से पैदल चलकर दौलत बेग ओल्डी सेक्टर और फिर गलवान घाटी तक गए थे। ये रास्ता लगभग 250 किमी का था। कैप्टन ताशी कहते हैं, ‘राशन-पानी के लिए घोड़े और याक होते थे, लेकिन हथियार हम खुद पीठ पर लेकर चलते थे।’

कैप्टन फुन्शुक ताशी1962 के भारत-चीन युद्ध के दौरान गलवान घाटी मेंतैनात थे।

कैप्टन ताशी सेना की 14 जेएंडके मिलिशिया में भर्ती हुए थे, युद्ध के वक्त वो अल्फा कंपनी का हिस्सा थे। ताशी कहते हैं, ‘हम गलवान पहुंचे, हम भी एलएसी पर आ गए थे और उस पार चीनी सेना भी आ गई थी। हम दोनों अपने बंकर बना रहे थे। 2-3 महीने वहीं बैठे रहे। डम्पिंग जोन में राशन आता था। हेलिकॉप्टर से सामान डालते थे, याक और खच्चर से भी सामान पहुंचाया जाता था।’

कैप्टन ताशी 1988 में रिटायर हो गए, तब से वो लेह के पास अपने गांव स्टोक में रहते हैं।

चीनी सेना और भारतीयों के बीच जो वहां चल रहा था उसे याद करते हुुए कैप्टन ताशी के चेहरे मुस्कुराहट आ जाती है। कहते हैं, ‘चीनी सैनिक हमें लाउड स्पीकर पर गाना सुनाते थे। तन डोले मन डोले गाना बजाती थी चीनी सेना। और जब हमारा ध्यान उनकी ओर जाता तो वो लाउड स्पीकर से कहते – सर्दियां शुरू होने वाली है, तुम भी पीछे चले जाओ, हम भी चले जाएंगे। ये जमीन न तुम्हारी है, न हमारी।’

कैप्टन ताशी कहते हैं, ‘राशन-पानी के लिए घोड़े और याक होते थे लेकिन हथियार हम खुद पीठ पर लेकर चलते थे।’

ताशी बताते हैं चीन की पोस्ट ऊंचाई पर थी और हमारी नीचे। लेकिन जिस नाले से हम पानी लेते थे चीनी सैनिक भी वहीं से लेते थे। जब वो पानी लेकर ऊपर आ जाते तो हम लेने जाते, ऐसे बारी-बारी से पानी लेते थे सब।

गलवान से निकलने की कहानी भी ताशी को याद है। वो कहते हैं, ‘हमें ऑर्डर मिला था कि पोस्ट छोड़ दो। अंधेरा हुआ तो हम तैयारी करते रहे। फिर दूसरी तरफ नाले से हमने हरकत करना शुरू कर दिया। दो-तीन आदमी पीछे रह गए,ताकिवो बचे सामान को आग लगा सकें। जितना सामान हमारे साथ था उस पर मिट्‌टी का तेल फेंक दिया और वहां से विड्रॉ कर दिया।

ताशी कहते हैं, अगर युद्ध होता है तो दोनों सेनाओं को बहुत नुकसान होगा।

वो चीन के कब्जे में जाने वाला था। इसलिए हमने सारा सामान जला दिया। वहां सिर्फ एक नाला था निकलने के लिए। अगर वो नाला बंद कर देते तो हमें पकड़ लेतेचीनी सैनिक। इसलिए वहां से निकलना पड़ा। चीन की प्लानिंग ही थी कि वो हमारी पोस्ट पर हमें पकड़ लें। उसके बाद धीरे-धीरे रुकते-रुकते हम निकल आए। दोबारा मैं कभी गलवान लौटकर नहीं गया।’

ताशी कहते हैं, ‘गलवान नाला दोनों साइड से प्लेन है, बीच में एक नाला है, नाले के आसपास गहरी खाई है। नाले में पानी चीन की तरफ से आता है। नाला बड़ा नहीं है, गर्मी में पानी होता है सर्दी में वो जम जाता है।’

ताशी कहते हैं- गलवान नाला दोनों साइड से प्लेन है, बीच में एक नाला है, नाले के आसपास गहरी खाई है।

कैप्टन ताशी 1988 में रिटायर हो गए थे। तब से वो लेह के पास अपने गांव स्टोक में रहते हैं। गलवान में उनके साथ लड़ाई लड़ने वाले और भी सैनिक इसी गांव और आसपास के इलाकों में रहते हैं। ताशी कहते हैं कि अगर युद्ध होता है तो दोनों सेनाओं को बहुत नुकसान होगा।

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Story of war in Galvan- ‘Chinese soldiers used to tell us the song’ Tan Dole Mera Mana Dole ‘on loudspeakers, then say- Winter is coming, leave the post, this land is neither ours nor yours

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Originally published on www.bhaskar.com

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