काकोरी शहीद पं. राम प्रसाद बिस्मिल के जन्मदिन 11जून पर विशेष
स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में नया अध्याय जोड़ने वाले महान क्रांतिकारी पo राम प्रसाद “बिस्मिल”का जन्म 11 जून 1897 को शाहजहांपुर नगर के मोहल्ला खिरनीबाग में हुआ,मूल रूप से इनके पूर्वज ग्वालियर के चंबल नदी किनारे ग्राम तोमरघार के निवासी थे l अकाल के कारण उनका परिवार शाहजहांपुर आ बसा l निर्धन परिवार ऊपर से दुर्भिक्ष की आपदा परिवार के पास खाने तक को नहीं था lबहुत कोशिश के बाद तीन रुपये माह के वेतन पर इनके दादा नारायण लाल को अत्तार की दुकान पर नोकरी मिल गई , परिवार का इसमें गुजारा सम्भव न था l इनकी दादी ने घरों में काम की तलाश की परन्तु दादी को लोग इस भय से काम न देते कि कहीं बुढ़िया मुट्ठी भर अनाज न खा ले l बहुत अनुनय विनय के बाद दादी को घरों में चक्की पर आटा पिसाई का काम मिलता, आधा पेट भोजन कर किसी तरह परिवार का जीवन यापन होता रहा l दुर्भिक्ष के दिन समाप्त हुए पिता मुरलीधर को 15 रुपये मासिक पर नगर पालिका में नोकरी लग गई l इनकी माँ मूलमती बहुत धर्मनिष्ठ थी, बाल्यकाल से ही उन्होंने राम प्रसाद को सुदृढ़ स्वास्थ्य बनाने एवं सचरित्र रहने की शिक्षा दी l किशोरावस्था में ही वे आर्यसमाज के सम्पर्क में आ गये l शाजहाँपुर में आर्यकुमार सभा की स्थापना की l सत्यार्थप्रकाश और स्वामी दयानंद सरस्वती की जीवनी का गहन अध्ययन किया और बहुत प्रभावित हुए वेदाध्ययन के उपरांत प्रकांड वेद ज्ञाता होकर पण्डित कहलाये जाने लगे l सदर आर्यसमाज शाहजहांपुर में ही निवास करने लगे l यहीं से सामाजिक एवं क्रांतिकारी गतिविधियों का संचालन करने लगे l युवावस्था से पूर्व ही उनका जुड़ाव तत्कालीन सशस्त्र क्रांतिकारियो से हो गया l क्रांतिकारी गेंदालाल दीक्षित के सम्पर्क में आये और खुलकर स्वाधीनता संग्राम में आ गये, मैनपुरी षड़यंत्र केस के बाद शाहजहांपुर लौट आये और उपनाम बिस्मिल के नाम से विख्यात हो गये l दैनिक सन्ध्योपासना एवं यज्ञ करते थे l शाहजहांपुर के मिशन स्कूल में अशफ़ाक़उल्ला के सम्पर्क में आये l अशफ़ाक़ उल्ला के बड़े भाई बिस्मिल के सहपाठी थे,
शाहजहांपुर में स्वाधीनता संग्राम के दौरान खन्नौत नदी के किनारे उन्होंने एक सभा को सम्बोधित किया औरअपने सम्बोधन के अंत मे कहा-
” बहे बहरे फ़ना में जल्द यारब लाश बिस्मिल की,
भूखी मछलियां हैं जौहरे शमशीर क़ातिल की”
अशफ़ाक़ उल्ला खां भी उस सभा में मौजूद थे उनके व्याख्यान का उन पर बहुत प्रभाव पड़ा lउसी दिन से वे दृढ़ संकल्प के साथ बिस्मिल के साथी बन गये और अधिकांश समय बिस्मिल के साथ रहकर क्रांतिकारी गतिविधियों में भाग लेने लगे l वे अधिकांश समय बिस्मिल के पास आर्यसमाज भवन में रहते l वे इस्लाम के पक्के पाबंद ,पांचों वक़्त के नमाज़ी थे l इन दोंनो का अटूट प्रेम भारतीय समाज की अमूल्य निधि है lराम प्रसाद बिस्मिल स्वस्थ शरीर, बहुत साहसी,बहुत अच्छे शायर और कवि थे l 9 अगस्त 1925 की अर्द्धरात्रि में काकोरी ट्रेन केस
राम प्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में हुआ जिसमें चंद्रशेखर आज़ाद,अशफ़ाक़ उल्ला खां,ठाकुर रोशन सिहं,राजेन्द्र नाथ लाहिड़ी,दामोदर स्वरूप सेठ,गोविंद चरण कार, मन्मथनाथ गुप्त,केशव चक्रवर्ती,आदि क्रांतिकारियों ने भाग लिया lकाकोरी ट्रेन केस ने अंग्रेजी साम्राज्य की नींव हिला दी
19 दिसम्बर 1927 को आज़ादी के दीवाने राम प्रसाद बिस्मिल को गोरखपुर जेल में फाँसी दे दी गये, अशफ़ाक़उल्ला खां को फैज़ाबाद,ठाकुर रोशन सिहं को मलाका जेल इलाहाबाद, और राजेंद्र नाथ लाहिड़ी को गोण्डा जेल में फांसी दे दी गई l
अदालत ने अशफ़ाक़ उल्ला खां को बिस्मिल का विशेष सहयोगी ठहराया l
” दो जिस्म एक जान हैं अशफ़ाक़ ओ बिस्मिल,
हिंदुस्तान की शान हैं,अशफ़ाक़ ओ बिस्मिल,
इस देश को कमजोर कोई कर नहीं सकता, इस देश पर कुर्बान हैं
अशफ़ाक़ ओ बिस्मिल”स्वाधीनता संग्राम में असंख्य क्रांतिकारियों ने नई पीढ़ी के उज्ज्वल भविष्य के लिये अपने प्राण न्योछावर किये, हजारों आज़ादी के दीवानों ने अपना जीवन जेलों में यातनाएं झेलते हुए बिताया l क्रांतिकारियों का स्वप्न आदर्श गणराज्य स्थापित करना था , क्या वास्तव में प्रजातंत्र उनकी इच्छाओं के अनुरूप स्थापित हुआ, निश्चित रूप से नहीं , ये शहीदों के स्वप्न एवं उनकी परिकल्पना का भारत नहीं , भारतवासियों और समस्त जनप्रतिनिधियों, लोकसेवकों को इस पर चिंतन करने की आवश्यकता है l शहीदों ने बहुत कष्ट, अत्याचार , यातनाएं झेलकर हमें आज़ादी दिलाई lउनके बलिदान पर खड़ेआज़ादी के भव्य भवन को सुदृढ़ एवं सुंदर कैसे बना सकते हैं इस पर गहन चिंतन हो l आंदोलनो के दौरान हिंसा, सार्वजनिक सम्पत्ति का विनाश चिन्ता का विषय है ये प्रव्रत्ति कमोबेश प्रत्येक आंदोलन में पाई जाती है ये रुकनी चाहिए ,टी वी डिबेटस पर जिस तरह बहुत से लोग अमर्यादित व्यवहार करते हैं ये बहुत चिन्ता का विषय है , मधुर व्यवहार ,सम्मानजनक भाषा भारतीय परंपरा रही है
” जबां तो कहती है सारा कसूर उसका है,
ज़मीर कहता है कि जिम्मेदार मैं भी हूँ ‘
आज़ादी दिलाने का दुर्लभतम कार्य हमारे ये पूर्वज, ये युग के देवता अपना उत्तरदायित्व पूरी तरह निभाकर संसार से विदा हुए अब दायित्व हमारे सभी राजनैतिक दलों , जनप्रतिनिधियों, लोकसेवकों,समस्त धर्मगुरुओं, तथा समस्त भारतवासियों के ऊपर है हम अज्ञानता , अंधविश्वास, धर्मांधता, निजस्वार्थ, संकीर्ण राजनीति, जातिवाद को छोड़कर शहीदों के सुंदर स्वप्न साकार करने की और अग्रसर हों तथा आपसी सामाजिक प्रेम एवं सदभाव बढ़ाने का प्रयास करें यही किसी भी देश की उन्नति का आधार है और यही शहीदों के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी l
राम प्रसाद ” बिस्मिल”के ये अंतिम शब्द सदैव देश को दिशा देते रहेंगे
” यदि देश हित मरना पड़े मुझको हज़ारों बार भी, तो भी न मैं इस कष्ट को निज ध्यान में लाऊं कभी,
हे ईश भारतवर्ष में शतबार मेरा जन्म हो, कारण सदा ही मृत्यु का देशोपकारक कर्म हो,
मरते बिस्मिल, रोशन ,ओ लहरी,अशफ़ाक़ अत्याचार से,
होंगे पैदा सैंकड़ों उनके रूधिर की धार से “
(आलेख विद्यार्णव शर्मा पूर्व पी.पी.एस.उत्तर प्रदेश पुलिस)