नई दिल्ली (23 दिंसबर 2019)- हाल के दिनों की दो बड़ी ख़बरों से ये तो एक बार फिर साबित हो गया है, कि भारत में हर धर्म के लोग मिलजुल कर आपसी भाईचारे के साथ रहना चाहते हैं। सीएए यानि नागरिकता संशोधन एक्ट को लेकर मुसलमान भले ही आंशकित था, लेकिन हिंदु भाइयों ने, न सिर्फ सीएए का उनसे पहले विरोध किया, बल्कि देशभर में हिंदु भाइयों ने गिरफ्तारी से लेकर प्रदर्शन तक में मुस्लिम समाज को मैसेज दिया कि 1947 की तरह आज भी आपसी भाईचारा देश के लिए ज़रूरी है। ठीक उसी तरह झारखंड के चुनावी नतीजों में असदउद्दीन ओवैसी की पार्टी, आल इंडिया मजलिस ए इत्तेहादुल मुस्लिमीन यानि AIMIM की ज़मानत ज़ब्त होने से ये साफ हो गया कि वहां भी मुसलमान धर्म या समाज के नाम पर नहीं बल्कि विकास और सैक्यूलिरिज़्म के नाम पर वोट करने गया था।
दरअसल झारखंड के चुनावी नतीजों के बाद फिलहाल ये चर्चा करना कि बीजेपी के हाथ सत्ता फिसल कर जेएमएम और कांग्रेस के गठबंधन के पास चली गई है, के बजाय देश के वर्तमान हालात पर ज्यादा फोकस ज़रूरी है। ये सच्चाई है कि सत्ताएं आती जाती रहती है, लेकिन देश की सांझी विरासत और आपसी मेल मिलाप ही देश के वजूद के लिए ज़रूरी है।
झारखंड में जनता ने जिस तरह से वोट किया उससे इतना तो साफ हो ही गया है कि जनता अब धर्म के नाम पर नहीं, बल्कि विकास और आपसी सदभाव के आधार पर ही चुनावी नतूजे तय करेगी। चुनाव आयोग द्वारा उपलब्ध जानकारी के मुताबिक़ झारखंड में जितना वोट नोटा यानि किसी उम्मीदवार को नकारने वाले ऑप्शन को मिला है उससे भी कम वोट ओवैसी की पार्टी को लोगों ने दिया है। हांलाकि कऊ दूसरे दलों से उनकी पार्टी ने काफी बेहतर प्रदर्शन ज़रूर किया है। साथ ही ये बात किसी भी दल के लिए कोई बड़ी नहीं, लेकिन बैरिस्टर ओवैसी ने जिस तरह से झारखंड के चुनाव को धर्म और हिंदु मुस्लिम रूप देने की कोशिश की उसके बाद नतीजों से साफ हो गया कि देश का मुसलमान और हिंदु समाज, धर्म के आधार पर नहीं बल्कि विकास की राजनीति चाहता है।
ओवैसी की मजलिसों में जिस तरह से जज़्बाती बातें और कई मामलों पर शोर मचाया गया, उसको लगभग जनता ने एक बार फिर नकार कर जता दिया है कि 1947 में जिन्ना की कॉल को ठुकराने वाला मुस्लिम समाज आज भी देश के सामने किसी को कुछ नहीं समझता। वैसे भी इस देश की सबसे बड़ी यही सुंदरता है कि न तो मुस्लिम समाज ने नेहरु,इंदिरा और मुलायम सिंह और मायावती जैसे नेताओं के मुक़ाबले में कभी रफी अहमद क़िदवई या फिर किसी अन्य मुस्लिम नेता को अपना भाग्य सौंपा। साथ ही आज भी मुस्लिम को अगर मुसलिम से समाज ने नहीं स्वीकार किया तो जनसंघ को भी हिंदु समाज ने कभी देश की सत्ता नहीं सौंपी थी। उसी समाज ने झारखंड के नतीजों से साफ कर दिया कि CAA या NRC पर उसके लिए जो समाज धर्मों की दीवार तोड़कर साथ खड़ा रहा, उसी का अधिकार हम पर सबसे पहले है।
बहरहाल झारखंड में विधानसभा चुनावों के नतीजों की अगर बात करें तो 2019 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी को मिले प्रचंड बहुमत के बाद हरियाणा, महाराष्ट्र और झारखंड में आने वाले परिणाम भाजपा के लिए इस बात के भी संकेत हैं, कि सिर्फ धर्म की राजनीति से हटकर जनता की अपेक्षाएं, रोज़गार, महिला सुरक्षा, आर्थिक हालात, जीडीपी, काननू व्यवस्था, शिक्षा जैसे जनहित के मुद्गों पर सच्चाई से ध्यान दिया जाए नहीं तो डबल इंजन वाली सरकारों के नारे को जनता नकारने में देर नहीं लगाएगी।