लखनऊ (8 दिसंबर 2019)- नागरिकता संशोधन विधेयक, 2019 यानि CAB और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर NRC को लेकर लोगों में बेचैनी बढ़नी शुरु हो गई है। इसी को लेकर कैफ़ी आज़मी अकादमी, लखनऊ में नागरिकता संशोधन विधेयक, 2019 (CAB) और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) पर एक परामर्श बैठक आयोजित की गई। इस बैठक में नागरिकता संशोधन विधेयक और NRC से संबंधित व्यापक मुद्दों पर विस्तार से चर्चा की गई।
इस मौक़े पर मौलाना खालिद रशीद फिरंगी महली ने कहा कि हमें बिल का विरोध करने के लिए सभी विपक्षी दलों से बात करनी चाहिए। हम चाहते कि वे बिल का विरोध करें। राष्ट्रीय स्तर पर एनआरसी को लागू करना संभव नहीं है। हमें भारत के संविधान और अंतर्राष्ट्रीय कानूनों का पालन करना चाहिए।
कार्यक्रम में बोलते हुए अमीक जामई ने कहा कि सीएबी संविधान विरोधी है। उन्होंने यह भी कहा कि लोगों को वर्तमान सरकार के संवैधानिक विरोधी कदमों का खुलकर विरोध करना चाहिए। अमीक़ जामई ने कहा कि सीएबी और एनआरसी के बारे में जागरूकता पैदा करना जरूरी है। लोगों को पता होना चाहिए कि ये दोनों प्रावधान भारत की छवि को धूमिल करेंगे। असली मुद्दों से लोगों का ध्यान हटाने के लिए सरकार यह सब कर रही है। यह सरकार हमेशा सांप्रदायिक विभाजन पैदा करती है। हम चाहते हैं कि लोगों को शरण के साथ-साथ नागरिकता भी मिलनी चाहिए, अगर वे धार्मिक आधार पर अपने ही देशों में सताए जाते हैं, लेकिन धर्म ऐसे लाभों को तय करने का मापदंड नहीं हो सकता।
प्रो. अली खान महमूदाबाद ने कहा कि CAB न केवल अवैध है बल्कि यह अनैतिक है। सीएबी संविधान की हत्या और ‘भारत के विचार’ की हत्या है। यह हिंदुओं के लिए भी चिंता का कारण होना चाहिए! उन देशों की स्थिति को देखना होगा जो धर्म के आधार पर बनाए गए थे। आज भाजपा मुसलमानों को बदनाम कर रही है कल वे हिंदुओं को बताएंगे कि वे सही तरह के हिंदू नहीं हैं।
प्रो.रूप रेखा वर्मा ने कहा कि इस बिल के माध्यम से हर किसी पर हमला हो रहा है। हम इस बिल के खिलाफ आखिर तक लड़ेंगे। उन्होंने नागरिकता संशोधन विधेयक का विरोध किया। यह केवल मुसलमानों के बारे में नहीं है बल्कि हमारे संवैधानिक मूल्य खतरे में हैं।
अब्दुल हफीज गांधी ने बैठक में बोलते हुए कहा कि भारत में धर्म कभी भी नागरिकता का आधार नहीं रहा है। सरकार का प्रयास नागरिकता को धर्म-केंद्रित बनाने का है। धर्मनिरपेक्षता संविधान की मूल संरचना है। इस देश की धर्मनिरपेक्ष परंपराओं के उल्लंघन में कोई कानून बनाकर इस संरचना का उल्लंघन नहीं किया जाना चाहिए। उन्होंने आगे कहा कि सीएबी और एनआरसी एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। दोनों का हमारे देश की आत्मा को बचाने के लिए विरोध किया जाना चाहिए।
प्रो। रमेश दीक्षित ने कहा कि धर्मनिरपेक्षता संविधान की मूल संरचना है। सीएबी संविधान के इस दर्शन का उल्लंघन करता है। यह विधेयक संविधान के अनुच्छेद 14 का भी उल्लंघन करता है।
डॉ. पवन राव अंबेडकर ने सीएबी पर बोलते हुए कहा कि बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर ने कभी भी इस स्थिति की कल्पना नहीं की, जहां सरकार भारतीय संविधान के बहुलतावादी मूल्यों के खिलाफ काम करेगी। उन्होंने कहा कि लोगों को सीएबी और एनआरसी का बहिष्कार करने के लिए खुलकर सामने आना चाहिए। उन्होंने आगे कहा कि यह केवल मुसलमानों से संबंधित नहीं है बल्कि यह सवाल है कि हम अपने नागरिकों के साथ कैसा व्यवहार करते हैं। सभी नागरिकों को अपनी नागरिकता साबित करने के लिए कतार में नहीं लगाया जा सकता है। नागरिकता साबित करने का बोझ लोगों पर नहीं होना चाहिए, बल्कि सरकार को यह देखना चाहिए कि कौन अवैध प्रवासी है। लेकिन पूरे भारत को अपनी नागरिकता साबित करने के लिए अपने दस्तावेजों के साथ कतार में खड़े होने के लिए पूछना अतार्किक है।
ओवैस सुल्तान खान का कहना था कि NRC पूरी तरह से एक निरर्थक प्रयास है जैसा कि असम के मामले में साबित हुआ। जब यह सत्तारूढ़ पार्टी के अनुरूप नहीं था, तो उसने घोषणा की कि वे एनआरसी को स्वीकार नहीं करेंगे। पूरे अभ्यास पर बहुत पैसा खर्च किया गया। लेकिन परिणाम शून्य है। उन्होंने आगे कहा कि CAB को अधिनियमित करने का प्रयास भेदभाव को संस्थागत बनाने और नागरिकता से प्राप्त किसी भी अधिकार से सबसे बढे अल्पसंख्यक को निष्क्रिय और रहित बनाने के लिए है। उन्होंने कहा कि सीएबी का विचार संविधान के मूल सिद्धांतों के खिलाफ है। सबके लिए यह देश है। यहां हर सताया हुए का स्वागत है।
मानवाधिकार कार्यकर्ता खालिद चौधरी ने कहा कि वह सीएबी का विरोध करते हैं। यह संविधान की धर्मनिरपेक्षता की भावना के खिलाफ है। सीएबी और एनआरसी न केवल अल्पसंख्यकों को प्रभावित करेगा, बल्कि यह देश भर के दलितों, आदिवासियों, वन, झुग्गी-झोपड़ी, प्रवासी और महिलाओं जैसे सभी हाशिए के समुदायों को भी प्रभावित करेगा।
सुश्री सुमाय्या राणा ने कहा कि वह बिल के पूरी तरह से खिलाफ हैं। इन फैसलों को वापस लेना चाहिए। साथ ही एएमयू छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष डॉ. मशकूर अहमद उस्मानी ने कहा कि सीएबी पूरी तरह से असंवैधानिक है। यह संविधान की मूल संरचना का उल्लंघन करता है। यह संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 का भी उल्लंघन है जो सभी को यह अधिकार देता है कि किसी को भी धर्म, आयु, लिंग आदि के आधार पर भेदभाव नहीं किया जाएगा। यह विधेयक पूरी तरह से सांप्रदायिक है, जो सीधे सबसे बड़े अल्पसंख्यक को लक्षित करता है। धर्म से राष्ट्रवाद को परिभाषित नहीं करना चाहिए। यह दो-राष्ट्र सिद्धांत जैसा कुछ है, जो राष्ट्र के धर्मनिरपेक्ष लोकाचार का उल्लंघन करता है।
जबकि सुहैब अंसारी का कहना था कि इस बिल को किसी भी कीमत पर स्वीकार नहीं किया जाना चाहिए। यह देश सभी का है। विधेयक हमारे संवैधानिक मूल्यों पर हमला है। समानता हमारा मौलिक अधिकार है। धर्म के आधार पर भेदभाव असंवैधानिक है।