नई दिल्ली(11 जुलाई 2016)- पिछले लोकसभा चुनाव में गाजियाबाद से जनरल वी.के सिंह के हाथों करारी शिकस्त खाकर, पिछले कई साल से जनता की नज़रों से गायब कांग्रेसी नेता और फिल्म अभिनेता राजबब्बर एक बार सियासी गलियारों की चर्चा बने हुए हैं।
कई दशक से उत्तर प्रदेश में अपने वजूद को तरस रही कांग्रेस ने आगामी विधानसभा चुनावों से पहले राज बब्बर को उत्तर प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया है। कभी सलमान खुर्शीद तो कभी मधूसूदन मिस्त्री तो कभी निर्मल खत्री पर दांव खेल चुकी कांग्रेस अपने युवराज को सियासी मैदान पर टिकने के लिए उत्तर प्रदेश में किसी चेहरे की तलाश में थी। फिलहाल कांग्रेस ने फिल्मी चमक दमक के दम पर जनता के बीच अपनी राजनीतिक पहचान बनाने के लिए दांव खेला है। बाबरी मस्जिद में ताला डलवाने से लेकर उसमें पूजा के लिए ताला खुलावाने और बाबरी मस्जिद को शहीद कराने की सीधे तौर पर दोषी मानी जाने वाली कांग्रेस गुजरात में अपने पूर्व सासंद अहसान जाफरी की निर्मम हत्या पर खामोशी जैसे कुछ दूसरे आरोपों की वजह से अल्पस्खयकों में अपना भरोसा खो चुकी है। ऐसे में मेरठ दंगे हों या फिर मुरादाबाद में ईद के दिन दंगों का मामला, या फिर मलियाना और हाशिम पुरा कांड इन जैसे कई मामलों में गुलाम नबी आजाद जैसे प्रभावविहीन माने जाने वाले मुस्लिम नेता गुलाम नबी आज़ाद को प्रदेश का प्रभारी बना कर मुस्लिमों के बीच स्थापित होने का सपना देख रही है।
दरअसल उत्तर प्रदेश और बिहार के पिछले दो विधानसभा चुनाव हों या फिर राजस्थान, हरियाणा और महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों के अलावा पिछला लोकसभा चुनाव, इन सभी में अपने युवराज की नाकाम रणनीति से जूझ रही, कांग्रेस हाईकमान ध्रतराष्ट्र की तरह सियासी गलियारों में चर्चा का विषय बनी हुई है। कांग्रेस की बेबसी का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि लोकसभा चुनाव में मोदी की कंपेनिंग करने वाले जिस पीके ने कांग्रेसी का बैंड बजाया और युवराज को पप्पू तक बना डाला और कांग्रेस मुक्त भारत की परकल्पना लेकर कांग्रेस की नय्या को डुबोया, आज कांग्रेस उसी की बैसाखी के सहारे अपने युवराज को गद्दी तक ले जाने का सपना बुनती दिख रही है। सियासी हल्कों में चर्चा ये भी है कि कांग्रेस ने 400 करोड़ रुपए में पीके टीम को कांग्रेस को उबारने का ठेका दिया है। जबकि किसी विज्ञापन ऐजेंसी के दावों के दम पर जनता को रिझाने का ख्वाब देख रही कांग्रेस के लिए उत्तर प्रदेश में राहे आसान नहीं लग रही है। लेकिन खुद कांग्रेस के भीतर एक खेमा ये भी मान रहा है कि भले ही इस बार उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में कुछ मिले या न मिले लेकिन अगर अगले लोकसभा चुनाव तक निर्जीव तुल्य उत्तर प्रदेश कांग्रेस की धड़कने वापस आ गईं तो सौदा महंगा न होगा।
बहरहाल बड़े दावों और विज्ञापन रणनीति के दम पर कांग्रेस को खड़ा करने का कथित दावा करने वाली टीम पीके का फैसला कहें या कांग्रेस हाइकमान की मजबूरी, उत्तर प्रदेश में राज बब्बर को कप्तानी की जिम्मेदीरी सौंप दी गई है। भले ही राज बब्बर मेहनती और मंझे हुए सियासंतदां माने जाते हो लेकिन ये पारी उनकी साख का भी इम्तिहान होगी।