गाजियाबाद (14 अक्तूबर 2018)- उत्तर प्रदेश में योगी सरकार के आने के बाद दावा किया जा रहा था कि निजाम बदल गया है। चाहे भूमाफिया हो या गुंडे बदमाश या फिर भ्रष्ट सरकारी अफसर, अब इनके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी। लेकिन इन सभी दावों के बीच लखनऊ में पुलिस के हाथों विवेक तिवारी हत्याकांड से लेकर गाजियाबाद के दंपत्ति के साथ कविनगर पुलिस द्वारा किये गये उत्पीड़न जैसे कई मामलों की अभी चर्चा थमी भी नहीं थी कि गाजियाबाद पुलिस और प्रसासन एक और कारनामा सामने आ गया है। गाजियाबाद के थाना मसूरी के कुछ पुलिसकर्मियों पर आरोप है कि करोडो़ं की सरकारी भूमि पर कब्जा करने वालों को बचाने और शिकायतकर्ता पर दबाव बनाने के नाम पर कथिततौर पर दस लाख रुपए की डील की गई है! हांलाकि इन दिनों गाजियाबाद की डीएम और यहां के एसएसपी के बारे में चर्चा है कि दोनों ईमानदार हैं यहां तक कि मसूरी एसओ के खिलाफ भी हाल फिलहाल में रिश्वतखोरी का कोई सबूत सामने नहीं आया है! तो ऐसे में सवाल ये पैदा होता है कि आखिर ये कथित दस लाख रुपए किस-किस ने लिये हैं ? दरअसल इन दिनों इस मामले के अलावा भी मसूरी थाना क्षेत्र के कुछ मामले लोगों की जुबान पर हैं। कहने वाले तो यहां तक कह रहे हैं कि भले ही थाने में दलालों के प्रवेश पर बैन लगाने की बात की जाती हो लेकिन मसूरी क्षेत्र का एक नामी दलाल थाने में अपने दबदबे के नाम पर जमकर उगाही कर पुलिस को मोटी रकम पहुंचा रहा है। इतना ही नहीं यहां पर झूठे मामले में फंसाने और उगाही के नाम पर लोगों से मोटी रकम ऐठने वाला ऐसा गैंग सक्रिय है जिसके तार थाने से लेकर सरकारी अस्पताल और पीएचसी तक फैले हुए हैं।
ताजा मामला मसूरी थाना क्षेत्र के ग्राम इंदरगढ़ी का है जहां फुरकान नाम के एक शख्स ने गांव में करोड़ों रुपए की सरकारी भूमि पर भू माफिया द्वारा कब्जा करने और अवैध रूप से बेचने की शिकायत 15 सितंबर 2015 को गाजियाबाद प्रशासन से की थी। लेकिन तीन साल से भी अधिक का समय बीतने के बाद भी न तो सरकारी भूमि खाली कराई गई न ही आरोपियों के खिलाफ कोई ठोस कार्रवाई की गई। इंतिहा तो यह है कि जांच के नाम पर चल रहे इस खेल में सरकारी भूमि पर कब्जा करने वाला भू माफिया और उनको संरक्षण देने वाले सरकारी अफसरों को बचाने के लिए शिकायत कर्ता पर दबाव बनाया जाने लगा और उसको धमकियां दी गईं। शिकायतकर्ता द्वारा मामले पर डीएम और पुलिस कप्तान के अलावा जब ऊपर तक शिकायत की गई, तो शुक्रवार 12 अक्तूबर को तहसीलदार के सामने जांच और घटनास्थल पर पैमाइश के दौरान शिकायतकर्ता को फोन करके बुलाकर उसको जानसे मारने की कोशिश की गई और मामले को दबाने के लिए उसके खिलाफ ही 307 जैसी गंभीर धाराओं में एफआईआर दर्ज कर ली गई है।
पीड़ित पक्ष का कहना है कि हमने भू-माफिया के खिलाफ जब से शिकायत की थी तब से ही उनको संरक्षण देने वाले कुछ सरकारी अफसर और इलाके के दबंग उनकी जान के पीछे पड़ गये थे। हमने जब उनकी शिकायत जिलाधिकारी महोदय से की और मामले की जांच का अनुरोध किया तो माफिया द्वारा शिकायत वापस लेने का दबाव बनाया जाने लगा। आरोप है कि इस मामले में तहसील विभाग के कुछ अफसर जिनकी शह पर भूमाफिया ने करोड़ों की भूमि पर अवैध कब्जा और उसको बेचने का काम किया था अपनी गर्दन फंसते देख अब भूमाफिया को बचाने के लिए अदालत सहित जिला प्रशान को भी गुमराह कर रहे हैं।
इस मामले का सबसे गंभीर पहलू यह कि कई साल से पैमायश और जांच को टालते रहे प्रशासन के कुछ अफसरों ने शुक्रवार को बेहद घिनौनी चाल चली। आरोप है कि भूमाफिया, पुलिस और प्रशासन के कुछ अफसरों ने मिलकर एक शातिर चाल के तहत शुक्रवार को शिकायतकर्ता फारूख को फोन करके कहा कि आज तहसीलदार साहब मौका मुआयना करने आ रहे हैं आप भी वहां आओ। इस पर फारूख ने भू-माफिया के डर से वहां आने से इंकार किया तो फोन करने वाले ने कहा कि तहसीलदार साबह के साथ पुलिस बल है आप बेफिक्र हो कर आओ। जिसके बाद जैसे ही फारूख अकेला वहां पहुंचा उस पर लाठियों और हथियारों से हमला कर दिया गया। बड़ी मुश्किल से जब घायल फारूख थाने पहुंचा तो थाने की पुलिस पहले ही उसके और उसके परिवार के खिलाफ 307 जैसी गंभीर धाराओं में मामला दर्ज कर चुकी थी। इतना ही नहीं उसका बेटा जो सरकारी कर्मचारी है, जो उस समय अपनी ड्यूटी पर था और उसकी अपस्थिति उसके कार्यालय में दर्ज भी है को भी आरोपी बना दिया गया। साथ ही फारूख के दो भतीजे जिनमें एक अपने कार्यालय में था जिसकी उपस्थति वहां दर्ज है और दूसरा जो रुद्रपुर था और उसकी उपस्थति भी वहां के टोल बूथ की पर्ची से साबित होती को भी नामजद कर दिया गया। दरअसल दंबग भूमाफिया और पुलिस के कुछ लोगों के बीच कथिततौर पर दस लाख रुपए में एक डील की गई थी। जिसके तहत चाल यह थी कि पहले तो फारूख को मौके पर मारपीट कर सबक सिखा दो और बाद में थाने में उसके ही खिलाफ मामला दर्ज कर दिया जाए ताकि उसको शिकायत वापस लेने को मजबूर किया जा सके। लेकिन जब पुलिस ने मामला उलटा पड़ता देखा और सारे सबूत अपने ही खिलाफ जाते दिखे तो फिर मामले को मैनेज करने के लिए फारूख के तरफ से भी दूसरे पक्ष के खिलाफ 307 यानि जान से मारने की कोशिश में मामला दर्ज कर लिया है।
अब सवाल यह पैदा होता है कि जो शख्स पिछले तीन साल से प्रशासन को करोड़ों की सरकारी भूमि पर अवैध कब्जे और बेच जाने की शिकायत कर रहा है तो उसकी जांच के लिए प्रशासन ने अब तक क्या कार्रवाई की ? साथ ही क्या प्रशासन उन अफसरों और पुलिसकर्मियों को चिंन्हित करेगा जो इस पूरे खेल में लाखों रुपए वसूल चुके हैं? सबसे बड़ा सवाल यह है कि इस पूरे खेल में करोड़ों रुपए की भूमि और पुलिस की कमाई सहित करोड़ों के खेल में बंटवारा किस किस के बीच हुआ है ?
और एक सवाल यह भी है कि जब तहसीलदार के कहने पर शिकायतकर्ता को मौका ए वारदात पर फोन करके बुलाया जाता है (जिसकी रिकार्डिंग तक उपलब्ध है) तो फिर तहसीलदार की मौजूदगी में सरकारी कार्य में बाध डालने और शिकायतकर्ता को जानसे मारने की कोशिश करने वालों के खिलाफ अब तक तहसीलदार की ओर से शिकायत क्यों दर्ज नहीं कराई गई? कहीं ऐसा तो नहीं इस पूरे खेल में तहसीलदार या उनका कोई करीबी भी बहती गंगा में हाथ तो नहीं धो रहा था ? इस पूरे मामले का सबसे बड़ा सवाल तभी हल हो सकता है जब तहसीलदार द्वारा की जाने वाली कार्रवाई सामने आ जाएगी। इतना तो तय है कि करोड़ों की सरकारी भूमि पर कब्जे और बेचे जाने के इस खेल में कई सरकारी अफसरों की भूमिका बेहद संदिग्ध होती जा रही है। हांलाकि इस मामले पर आरोपी खुलकर तो नहीं बोल रहे लेकिन खुद को बेकसूर बता रहे हैं उधर प्रशासन भी निष्पक्ष जांच के बाद जल्द कार्रवाई की बात कर रहा है।
कुल मिलाकर शिकायतकर्ता फारूख व फुरकान का कहना यही है कि जिलाधिकारी रितु महेश्वरी और एसएसपी वैभव कृष्ण से मुलाकात के बाद उनको उम्मीद है कि उनको न्याय मिलेगा। लेकिन उनका यह भी कहना है कि सारी उम्र सरकार की नौकरी करके अपने परिवार को पाला है और सरकारी संपत्ति पर कब्जा करने वालों के खिलाफ अगर शिकायत करना मेरे और मेरे परिवार के लिए जान जोखिम का काम बन जाएगा तो हमें यह सोचना पड़ेगा कि अब क्या करें।