Breaking News

मौलाना तौक़ीर रज़ा ख़ान की दूरअंदेशी और अज़मत को सलाम!

molana toqir razaदेवबंद/रामपुर (13 मई 2016)- इन दिनों सियासी हल्क़ो और मज़हबी गलियारों में एक नाम ने बड़े बड़ों की नींद उड़ा दी है। भले ही देश की जनता, ख़ासतौर से मुस्लिम समाज की उम्मीदें इस शख़्सियत से बढ़ गईं हों, लेकिन जिनकी सियासी और मज़हबी दुकानें बंद होने का डर पैदा हुआ है ऐसे चंद लोग बेचैन भी देखे जा रहे हैं।
जी हां हम बात कर रहे हैं मुस्लिम समाज की नामवर शख़्सियत और आला हज़रत जैसे अज़ीम घराने के चश्म ओ चिराग़, आली जनाब मौलाना तौक़ीर रज़ा ख़ान साहेब..। मौलाना तौक़ीर रज़ा साहेब ने अंधेरे के दौर में एक ऐसी किरन की उम्मीद जगाई जिसका काफी वक़्त से न सिर्फ उम्मत ए मुस्लिमा को इंतज़ार था बल्कि भारत की अवाम के लिए भी बेहद ज़रूरी है।
इत्तिहाद ए मिल्लत कौंसिल के अध्यक्ष और मौलाना अहमद रज़ा ख़ान की विरासत के पासबां मौलाना तौकीर रज़ा ख़ान ने देवबंद जाकर मुस्लिम समाज में बढ़ती दूरियों और को ख़त्म करने की पहल की है। एक ऐसे दौर में जबकि इस्लाम और मुस्लिम दुश्मन ताक़तें एक जुट होकर अपनी नापाक साज़िशों के अंज़ाम देने में लगी हैं, और मुस्लिम समाज मसलकी इख़्तिलाफात और देवबंदी बरेलवी सोच के दायरे में फंसता जा रहा है। ऐसे में मौलाना तैौक़ीर रज़ा की इस पहल ने उम्मीद की रौशनी दिखाने का काम किया है।
सबसे बड़ी बात है कि मौलाना तौक़ीर रज़ा ख़ान ने किसी का इंतज़ार किये बगै़र ख़ुद पहल करते हुए, वक़्त की नज़ाकत को समझा और बेहद बाबरकत क़दम उठाया है। देवबंद, जिससे करोडो़ं मुस्लिमों की आस्था जुड़ी और बरेली जहां करोड़ों मुस्लिमों की धड़कन बसी है, अगर ये दोनो इदारे मुस्लिम समाज की सरपरस्ती के लिए एक साथ खड़े हो जाएं तो यक़ीनन बड़ी बात होगी। साथ ही वो दिन भी दूर नहीं कि जब देवबंदी और बरेलवी दूरियां ख़त्म होंगी तो शिया सुन्नी और दीगर दूसरे मसलकी इख़्तिला़फ़ात भी दूर होने की सूरत ए हाल पैदा होगी।
और हां लगे हाथों मौलाना तौक़ीर रज़ा ख़ान के देवबंद जाने और उसके बाद कुछ लोगों, चाहे वो कुछ देवबंदी हों या उनके अपने ख़ानदान के ही, उनकी नाराज़गी का ज़िक्र भी होना ज़रूरी है। देखिये जब भी कोई बड़ा इंक़लाब आता है तो कुछ लोगों की दुकानदारी और जत्थेदारी पर असर तो पड़ता ही है। लेकिन वक़्त और हालात का तक़ाज़ा यही है कि फिलहाल मौलाना तौक़ीर रज़ा द्वारा देवबंद जाकर की गई एक बड़ी पहल के मुसबत पहलुओं पर विचार करते हुए नेगेटिव सोच को न सिर्फ नज़रअंदाज़ किया जाए. बल्कि उन लोगों को भी तमाम ख़तरात से आगाह किया जाए। नहीं तो कहीं ऐसा न हो कि जो लोग एक दूसरे मुसलमानों के ही इस्लाम से ख़ारिज होने की बात कर रहे हैं उनकी नादानी के चलते मुसलमानों और देश को कोई बड़ा नुक़सान न पहुंचा जाए।
(लेखक आज़ाद ख़ालिद टीवी पत्रकार हैं डीडी आंखों देखीं, सहारा समय, इंडिया टीवी, इंडिया न्यूज़, वॉयस ऑफ इंडिया समेत कई दूसरे राष्ट्रीय चैनलों में महत्वपूर्ण पदों पर कार्य कर चुके हैं।)

About The Author

आज़ाद ख़ालिद टीवी जर्नलिस्ट हैं, सहारा समय, इंडिया टीवी, वॉयस ऑफ इंडिया, इंडिया न्यूज़ सहित कई नेश्नल न्यूज़ चैनलों में महत्वपूर्ण पदों पर कार्य कर चुके हैं। Read more

Related posts

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *