लखनऊ/ग़ाज़ियाबाद (13 मई 2016)- पिछले जुमे यानि 6 मई 2016 को जो हमने देखा या जिस अज़ीम मजलिस में सैंकड़ों लोगों से साथ हम शामिल थे और जो हमारी आंखों ने देखा वो शायद इसी भारत देश की सुंदरता है और ये सब सिर्फ यहीं हो सकता था। हमने लखनऊ के चर्च में सैंकड़ो लोगों के साथ नमाज़ अदा की। वो भी ऐसे दौर में जबकि मज़हब के नाम पर एक दूसरे के सामने आने का कोई मौक़ा कोई गंवाना नही चाहता।
महान हैं चर्च प्रबंधन के वो लोग जिन्होने न सिर्फ अपने खुले दिल और भाई चारे का सबूत दिया बल्कि भारत का गौरव दुनियां के सामने ऊंचा किया है।
लखनऊ के डालीगंज जैसे भीड़भाड़ वाले इलाक़े में चर्च प्रबंधन ने मुस्लिम समाज के लोगों की परेशानी को देखते हुए चर्च के अहाते में सैंकड़ो लोगों को न सिर्फ नमाज़ अदा करने की इजाज़त दी बल्कि ख़ुद सामने खड़े होकर पूरे इंतज़ाम को संभाला। डालीगंज में एक बुज़ुर्ग महिला टीचर के देहांत के बाद उनकी नमाज़ ए जनाज़ा अदा किया जाना था। और भारी ट्रैफिक, भीड़ और मुस्लिम समाज के कुछ लालचियों द्वारा कब्रिस्तानों और मस्जिदों की ज़मीनो को खुर्द करने की वजह से नमाज़ अदा करने के लिए जगह की कमी पड़ गई। लेकिन चर्च प्रबंधन ने अपने बड़प्पन का सबूत देते हुए मरहूमा के परिजनों के दर्द को समझते हुए बहुत बड़ा फैसला लिया। इस फैसले का इलाके के मुस्लिम समाज ने बेहद शुक्रिया अदा किया और आज भी चर्च प्रबंधन की दरियादिली की चर्चा है।
सवाल ये है कि जिस महानता और दरियादिली का परिचय लखनऊ की जनता ने दिया ऐसा कहीं और भी हो सकता है। आपस के गम और ख़ुशी में एक साथा रहने वाले अलग अलग मज़हब और समुदाय के लोग अगर कुछ ख़ास मौक़ो पर समझदारी और आपसी भाईचारे का सबूत देते रहें तो यक़ीनन समाज को तोड़ने और मज़हब के नाम लड़ाने वालों की दुकानें बंद हो जाएंगी और हमारा देश आपसी मौहब्बत और प्यार की मिसाल पूरी दुनियां को दे सकेगा।