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भारत में स्वास्थ्य के लिए बड़ा खतरा, बच्चों का मोटापा

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गाजियाबाद(13 जून 2015)- तेजी से बदलती लाइफस्टाइल, जंक फूड की बढ़ती संस्कृति, बढ़ती समृद्धि तथा जागरूकता का अभाव आदि कुछ ऐसे कारक हैं जिनसे भारत में मोटापे की महामारी बढ़ती जा रही है लेकिन इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है। बच्चों में मोटापे के बढ़ते मामले गाजियाबाद जैसे शहरों में अधिक तेजी से फैले हैं जहां हाल के वर्षों में पश्चिमी खानपान शैली अपनाने की आदतें, ‘माॅल संस्कृति’ तथा शारीरिक गतिविधियों से बचने की प्रवृत्ति बढ़ी है।
सन 2011 में सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई) के एक अध्ययन के मुताबिक, दिल्ली-एनसीआर में मोटापे के मामले एक खतरनाक स्तर तक पहुंच चुके हैं और ताजा आंकड़े बताते हैं कि हर दूसरे व्यक्ति में अधिक वजन होने के सारे लक्षण मौजूद होते हैं या उनके पेट की चर्बी बढ़ी होती है।
निम्न सामाजिक-आर्थिक तबकों (अधिक वजन 4 प्रतिशत तथा मोटापा एक प्रतिशत से कम) की तुलना में उच्च सामाजिक-आर्थिक वर्ग (अधिक वजन 17.2 प्रतिशत और मोटापा 4.8 प्रतिशत) के बीच कुछ खास कारणों से अधिक वजन तथा मोटापे के मामले ज्यादा पाए गए हैं। सीएसई के मुताबिक, वैश्विक स्तर पर सबसे खतरनाक स्थिति यह है कि उच्च आयवर्ग वाले देशों में बच्चों के बीच मोटापे के जितने मामले पाए जा रहे हैं उसकी तुलना में मध्य आयवर्ग तथा निम्न आयवर्ग वाले देशों के बच्चों में मोटापे के 30 प्रतिशत अधिक मामले देखे जा रहे हैं।
जानी मानी पीआर ऐजेंसी टीमवर्क द्वारा जारी एक प्रेस रिलीज़ के मुताबिक़ एवैश्विक स्तर पर पिछले 50 वर्षों के दौरान संसाधन-संपन्न एवं संसाधनों से अभावग्रस्त सभी तरह के देशों में बच्चों के अधिक वजन और मोटापे के मामले तेजी से बढ़े हैं। इसी तरह भारत में खासकर समृद्ध युवाओं तथा शहरों में स्कूली उम्र के बच्चों में मोटापा जनस्वास्थ्य समस्या बनता जा रहा है। अधिक वजन या मोटापे के कारण बहुत कम्र में ही आप डायबिटीज के बढ़ते खतरे की चपेट में आ सकते हैं। सन 2014 में एसोचैम द्वारा कराए गए एक अध्ययन के मुताबिक, स्कूल जाने वाले 13-16 वर्ष के 10 बच्चों में से एक बच्चे का वजन अधिक पाया गया है जिस कारण कार्डियोवैस्क्यूलर रोगों (सीएसडी) का खतरा 35 प्रतिशत से अधिक बढ़ जाता है।
कोलंबिया एशिया हॉस्पिटल-गाजियाबाद के कंसल्टेंट, पीडियाट्रिक्स डॉ. संजय शर्मा बताते हैं, “गाजियाबाद जैसे शहरों के लिए स्कूली बच्चों में मोटापा एक बड़ी चिंता बन गई है। युवाओं में जहां लाइफस्टाइल सुधारने के लिए जागरूकता बढ़ाई जा रही है, वहीं बच्चों के अधिक वजन पर उतनी चिंता नहीं देखी जा रही है। भारत में बच्चों के अधिक वजन को लेकर कई तरह की गलत अवधारणा अब भी मौजूद है और लोग समझते हैं कि इससे बच्चा स्वस्थ है और ‘बचपन की यह चर्बी’ उम्र बढ़ने के साथ खत्म हो जाएगी। सच तो यह है कि मोटापे का शिकार 50 से 70 प्रतिशत बच्चे युवा उम्र तक भी मोटे ही रह जाते हैं। हमारी यही प्रवृत्ति बच्चों को कार्डियोवैस्क्यूलर रोगों तथा डायबिटीज के प्रति अधिक संवेदनशील बना रही है।”
हालांकि बच्चों के मोटापे में लाइफस्टाइल, खानपान की आदतों और शारीरिक गतिविधियों के अभाव का बड़ा योगदान रहता है लेकिन आनुवांशिक प्रवृत्ति के कारण भी उनमें मोटापे की समस्या रहती है। ऐसे मां-बाप को अपने बच्चे के खानपान पर अतिरिक्त ध्यान देना चाहिए और आनुवांशिक मोटापे के प्रभाव को कम करने के लिए बच्चों की दिनचर्या में शारीरिक गतिविधियां शामिल करने की आदत डालनी चाहिए।
डॉ. संजय शर्मा ने कहा, “मोटापा बढ़ाने में आनुवांशिक गड़बडि़यों की भी बड़ी भूमिका होती है। इस बात के ठोस प्रमाण हैं कि आनुवांशिक कारकों के साथ-साथ पर्यावरण संबंधी कारक भी मोटापा बढ़ाते हैं। हालांकि आनुवांशिक गड़बडि़यों को तो नहीं सुधारा जा सकता है लेकिन लाइफस्टाइल, खानपान की आदतों और शारीरिक गतिविधियां जैसे पर्यावरणीय कारकों में सुधार लाने से मोटापे पर बहुत हद तक सुधार लाया जा सकता है। एक और बढ़ती चिंता की बात है कि आजकल बच्चों के लिए खेल के मैदान छोटे होते जा रहे हैं और ऐसे सुरक्षित खेल मैदानों का अभाव हो गया है जहां बच्चे शारीरिक रूप से सक्रिय रह सकते हैं। बच्चों की पसंद भी बदल रही हैं और वे मैदान में पसीना बहाने के बजाय प्ले स्टेशन तथा कंप्यूटर पर गेम खेलने में ज्यादा वक्त बिताने लगे हैं। इन आदतों पर तत्परता से काबू पाने की जरूरत है।”
अपने बच्चों का वजन कम करने में परिवार की भूमिका भी महत्वपूर्ण होती है। अभिभावकों को हमेशा ऊपर बताए गए गाइडलाइंस का पालन करना चाहिए और अपने बच्चों के लिए रोल माॅडल्स पेश करने की कोशिश करनी चाहिए। बार-बार बाहर खाने की आदतों में कमी लाना और घर में बने भोजन के लिए प्रोत्साहित करना काफी उपयोगी होगा।
डॉक्टर 5-2-1-0 गाइडलाइंस का सुझाव देते हैं जिसे बच्चे के स्वस्थ पोषण और विकास के लिए विशेष रूप से तैयार किया गया है। डॉ. शर्मा बताते हैं, “5-2-1-0 गाइडलाइंस में बच्चों के विकास और वृद्धि के सभी पहलुओं को शामिल किया गया है और मोटापे को दूर रखने के उपाय सुझाए गए हैं। पांच काम मतलब प्रतिदिन पांच प्रकार के फल और सब्जियों को भोजन में शामिल करना है। धीरे-धीरे इन फल-सब्जियों की संख्या बढ़ाकर प्रतिदिन 9 तक किया जा सकता है। दो का मतलब टीवी देखने या कंप्यूटर पर या वीडियोगेम्स खेलने जैसे गतिविधियों में कमी लाते हुए इसे प्रतिदिन दो घंटे से भी कम पर करना है। दो साल से कम उम्र के बच्चों के लिए टेलीविजन देखना बिल्कुल वर्जित किया जाना चाहिए। इसके अलावा बच्चे के बेडरूम से टीवी हटा देने का भी प्रभावी असर होगा। एक का मतलब बच्चों को कुछ शारीरिक गतिविधियों में अनिवार्य रूप से शामिल करने के लिए प्रोत्साहित किया जाना है। छोटे बच्चों के लिए 60 मिनट की भागदौड़ वाला कोई भी खेल उपयुक्त होगा, वहीं बड़े बच्चे डांस, मार्शल आट्र्स, साइक्लिंग या टहलने जैसी किसी भी पसंदीदा गतिविधियों में हिस्सा ले सकते हैं। और अंत में, शून्य का मतलब चीनी से बने बेवरीज, मसलन, सोडा, स्पोट्र्स ड्रिंक्स, कोल्ड ड्रिंक्स और फ्रूट डिंªक्स का सेवन शून्य स्तर पर लाना है।”

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आज़ाद ख़ालिद टीवी जर्नलिस्ट हैं, सहारा समय, इंडिया टीवी, वॉयस ऑफ इंडिया, इंडिया न्यूज़ सहित कई नेश्नल न्यूज़ चैनलों में महत्वपूर्ण पदों पर कार्य कर चुके हैं। Read more

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