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बारिश के बावजूद राहुल गांधी की रैली के मायने!

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नई दिल्ली(25जुलाई2015)-बात सोच की होती है… और नज़रिए की…! कभी कभी बेहद मामूली बात बड़े अंजाम को जनम् देती है… ! और कई बार बड़ी बड़ी बातें भी बेअसर साबित हो जातीं है! विदेशों से 100 दिन में काला धन वापस देश में लाने की बड़ी बात करने वाले इंसान का सफर प्रधानंमंत्री पद के उम्मीदवार से होते हुए देश के बड़े पद यानि पीएम की गद्दी तक पहुंचने के बावजूद अपना असर खो जाएं तो कोई ताज्जुब नहीं ! और कई कई बार करोड़ों रुपए खर्च करने के बावजूद वाराणसी न जाने जैसी छोटी बात देश की जनता की नज़र में बड़ी बन जाए…. तो कुछ कहा नहीं जा सकता ! हाल ही दिनों में प्रधानमंत्री महोदय वनारस अपने संसदीय क्षेत्र जाने को लेकर चर्चाओं में थे। लेकिन वर्तमान में इसी दौरे को लेकर चर्चा और भी बढ़ चुकी है.. कि तीन बार पूरी तैयारियों और करोड़ों खर्च के बावजूद प्रधानमंत्री का इंतज़ार उनके संसदीय क्षेत्र की जनता करती रह गई। हो सकता है कि देश की बागडोर संभालने और अनेक प्रकार की व्यस्ताओं के बाद प्रधानमंत्री महोदय को अपने संसदीय क्षेत्र में जाने का मौका न मिला हो। लेकिन जनाब… देश की जनता को उस मासूम बच्चे की तरह देखा सकता है… जिसको इससे कोई मतलब नहीं कि उसका पिता ऑफिस से लेकर घर को चलाने के लिए रात कितना व्यस्त है…उसको तो बस अपना दस रुपए का खिलौना मिलना चाहिए ! अपने मामूली खिलौने के लिए बच्चा जब अपने पिता से रूठ सकता है… तो भला जनता तीन तीन बार अपने आदरणीय पीएम के इंतज़ार को किस खाने में रखे… ये सोचने की बात है !
हालांकि ये सच्चाई है कि वर्तमान प्रधानमंत्री पिछले कई प्रधानमंत्रियों के मुकाबले विदेश दौरों और अनेक प्रकार के कार्यों की वजह से अधिक व्यस्त नज़र आते हैं। लेकिन उनके द्वारा दिखाए गये कई सपने अच्छे दिनों के इंतज़ार की तरह कई लोगों को रात में आ आ कर कई तरह के सवाल कर रहे हैं। अब चूंकि हम और हमारे देश की जनता भी उतावली ही है… मह़ज एक ही साल मे हम हर तरह की उम्मीदों को पूरा होते देखने के लिए बेचैन हैं।
लेकिन सच्चाई ये भी है कि व्यापम का मामला हो या फिर बतौर विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के हाथों कथित रूप से एक भगोड़े को विदेश भागने मे मदद करने के आरोप… या फिर राजस्थान की सीएम पर कई प्रकार के फायदों के लालच में कथित रूप से एक भगोड़े को बचाने के एवज़ फायदा उठाने के आरोप। ये तमाम वो सवाल हैं… जो किसी भी भक्त की नज़र में छोटे हो सकते हैं लेकिन इनका असर और इनकी गूंज बड़ी है बहुत बड़ी है।
देश के सेवक के तौर पर सेवा करने का दावा करने वाले जब सीट पा जाएं तो अपने संसदीय क्षेत्र में बारिश या किसी अन्य वजह से न तीन तीन बार अपना दौरा रद्द कर दें…. हो सकता है कि बड़े पद पर रहने वालों के बड़ें कामों की वजह से कुछ बड़े फैसले लिये गये हों। लेकिन विपक्ष की भूमिका में खड़ा एक नौजवान तमिलनाड में भारी बारिश के बावजूद अपनी जनता के बीच न सिर्फ खड़ा रहा… बल्कि उसकी बातों को जादू ऐसा सिर चढ़ कर बोला कि जनता भी बारिश के बावजूद उसको सुनने के लिए डटी रही। हो सकता है कि कुछ लोगों की नज़र में ये बहुत छोटी बात हो….मगर इसकी हुमक बहुत बड़ी है। ऐसा नहीं है कि जनता आंख मूंदे खड़ी है। उसको सब दिखता है, चूंकि देश की जनता ने इस बार अपने पीएम से बहुत सी उम्मीदें बांधी हुई थीं, इसलिए हो सकता है कि उसकी बेचैनी जायज़ हो। ऐसे में राहूल गांधी का तमिलनाडू में बारिश में भीगते रहने के बावजूद जनता के दरबार में डटे रहना और लगातार हर रोज़ जनता के बीच उनके मुद्दों को लकर जाते रहना भी एक बड़े बदलाव की वजह बन सकता है।
(लेखक आज़ाद ख़ालिद टीवी पत्रकार हैं डीडी आंखों देखी, सहारा समय, इंडिया टीवी, वॉयस ऑफ इंडिया, इंडिया न्यूज़ समेत कई दूसरे चैनलों में महत्वपूर्ण पदों पर कार्य कर चुके हैं, वर्तमान में http://www.oppositionnews.com में बतौर संपादक कार्यरत हैं।)

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आज़ाद ख़ालिद टीवी जर्नलिस्ट हैं, सहारा समय, इंडिया टीवी, वॉयस ऑफ इंडिया, इंडिया न्यूज़ सहित कई नेश्नल न्यूज़ चैनलों में महत्वपूर्ण पदों पर कार्य कर चुके हैं। Read more

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