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फर्ज़ीवाड़े से क़ाबू नहीं होगा अपराध

फर्ज़ीवाड़े से क़ाबू नहीं होगा अपराध
फर्ज़ीवाड़े से क़ाबू नहीं होगा अपराध

पुलिस के लिए सबसे बड़ी चुनौती है, अपराधियों का क़ाबू करना… ताकि समाज को अपराध से बचाया जा सके। लेकिन ये भी सच है कि पुलिस की भी अपनी सीमाएं हैं। किसी भी अपराधी को सजा पुलिस नहीं दे सकती… ये काम है अदालत का। किसी भी अपराधी के खिलाफ कार्रवाई करते समय पुलिस का सिर्फ इतना रोल है, कि उसको गिरफ्तार करके अदालत के सामने पेश करे। ताकि अदालत पुलिस के द्वारा मुहय्या कराए कराए गये सबूतों के आधार पर आरोपी की सज़ा तय कर सके।

दरअसल इस सारी क़वायद के दौरान पुलिस के द्वारा जुटाए गये सबूतों के आधार पर ही आरोपी का बरी होना या उसको सजा मिलना तय होता है। लेकिन अक्सर देखा गया कि पुलिस आरोपी को गिरफ्तार करके अदालत तो भेज देती है… लेकिन उनके खिलाफ सबूत न होने या ठीक से पैरवी न होने की वजह से आरोपी बरी हो जाता है। अगर आंकड़ो पर गौर करें तो लगभग सभी राज्यों में कन्विक्शन रेट इतना कम है, कि अदालत से बरी होने वाले लोगों की तादाद खासी नज़र आती है। और तो और देश की सबसे बड़ी जांच ऐजेंसी यानि सीबीआई की ही बात करें… तो उसका भी कन्विक्शन रेट बहुत ही कम है। जिसकी वजह है सबूतों की कमी।

यानि पुलिस जिसको गिरफ्तार करके अदालत के सामने लाती है उसके खिलाफ पर्याप्त सबूत नहीं दे पाती और अदालत में अपना पक्ष नहीं रख पाती। नतीजा समाज में अपराध ज्यों के त्यों पनपता रहता है, और अपराधी और भी बेख़ौफ हो जाते हैं। दूर ना जाएं तो अक्सर अपनी ही आसपास पुलिस जब भी किसी को गिरफ्तार करती है… तो उसमें उसके ऊपर कई तरह के आरोप लगाए जाते हैं। कभी तो एक ही अपराध के लिए कई कई लोगों को थाने बुलाना और बाद में हैसियत के हिसाब से मोटी रकम वसूल कर उनको छोड़ते रहना तक देखने में आता है। पुलिस की छवि का हाल ये है कि कई बार पुलिस पर आरोप तो यहां तक हैं कि कई मामलों में असली मुल्जिम बाहर आ जाते हैं और पुलिस की कमाई ना करा पाने वाला कोई बेचारा गरीब झूठे मामले में जेल में सड़ता रहता है।

कई बार तो ये भी हुआ है कि पुलिस के हत्थे लगा कोई आरोपी खुद को बचाने या अपने किसी विरोधी को सबक सिखाने या पुलिस के इशारे पर किसी बेगुनाह का नाम ले लेता है। जिसके बाद पुलिस उसको ना सिर्फ उठा लेती है… बल्कि कमाई ना हो पाने की दशा में उसको जेल भी भेज देती है। ये तमाम आरोप वो हैं जो अक्सर पुलिस के दामन को दागदार करते रहते हैं। हांलाकि ये सच है कि आम जनता पुलिस के भरोसे ही खुद को महफूज समझती है। अगर पुलिस का इक़ाबाल और भरोसा ना हो तो आम जनता का जीना मुहाल हो जाए।

ऐसे में पुलिस को भी चाहिए कि अपने रुतबे और इक़बाल की लाज को बचाए और अपने इक़बाल को बनाए रखना उसकी जिम्मेदारी है। हाल ही में कई मामलों में देखा गया है कि पुलिस ने कुछ लोगों को चाकु, तमंचा या ड्रग्स के साथ पकडा तो ज़रूर लेकिन अदालत ने पाया कि वो बेक़सूर थे। इसी तरह के सभी मामलों में आरोप यही लगते हैं कि पुलिस फर्जीवाड़ा करके अपराधियों के खिलाफ की गई कार्रवाई का ग्राफ तो बढ़ा लेती है… लेकिन अपराध और अपराधियों पर काबू नहीं..!

(लेखक आज़ाद ख़ालिद टीवी जर्नलिस्ट हैं, सहारा समय, इंडिया टीवी, वॉयस ऑफ इंडिया, इंडिया न्यूज़ सहित कई नेश्नल न्यूज़ चैनलों में महत्वपूर्ण पदों पर कार्य कर चुके हैं।)

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आज़ाद ख़ालिद टीवी जर्नलिस्ट हैं, सहारा समय, इंडिया टीवी, वॉयस ऑफ इंडिया, इंडिया न्यूज़ सहित कई नेश्नल न्यूज़ चैनलों में महत्वपूर्ण पदों पर कार्य कर चुके हैं। Read more

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