नई दिल्ली (14 अगस्त 2017)- जनता दल एक बार फिर टूट की कगार पर है। जनता दल अ, ब स से होते हुए हिंदी वर्णमाला से इंग्लिश के यू यानि यूनाइटेड तक जा पहुंचा था। लेकिन यही कथित जनता दल यूनाइटेड एक बार फिर अन यूनाइटेड साबित होने जा रहा है। बीजेपी के साथ नितीश कुमार के प्रेम प्रसंग के बाद शरद यादव के रुख और अब पार्टी द्वारा 21 बड़े नेताओं को बाहर का रास्ता दिखा चुके जेडीयू में एक और बिखराव के संकेत साफ दिख रहे हैं।
बोफोर्स के नाम कभी कांग्रेस को पटखनी देने और करप्शन के मसीहा बने विश्नाथ प्रताप सिंह के दौर में बने जनता दल में लगातार टूट का सिलसिला कोई नया नहीं है। कभी वीपी सिंह के साथ लालू यादव, चंद्रशेखर, मुलायम सिंह .यादव, शरद यादव, देवगौड़ा, इंद्र कुमार गुजराल, जार्ज फर्नांडीज़, अजित सिंह समेत बीजेपी तक ने एक साथ कांग्रेस के खिलाफ मोर्चा खोला था। 2 सीटों तक सिमटी बीजेपी राम मंदिर के मुद्दे पर इस गठबंदन से तालक लेकर अलग खड़ी हुई और आज उसका एक अलग वजूद है। लेकिन वही जनता दल परिवार लगातार बिखराव की नई इबारत लिख रहा है। सबसे पहले चंद्र शेखर मुलायम गुट ने वीपी सिंह को अलविदा कहा तो बाद में आहिस्ता आहित्सा जनता टूटता गया और उसके लिए जनता अ जनता दल स और होते होते जनता दल यू तक का सफर जारी रहा।
लेकिन ताजा जनता दल और तौर पर यूनाइटेड जनता दल एक बार अचानक अन यूनाइटेड क्यों हो गया। ये एक बड़ा ही दिलचस्प और भारतीय राजनीति का असली चेहरा है। यूं तो इतिहास गवाह है कि जब राम चंद्र जी को बनवास हुआ तो भाई और पत्नी के अलावा भले ही कोई उनके साथ गया हो या न गया हो, लेकिन जब रावण और उसके साम्राज्य को खत्म करके विजयी राम चंद्र जी वापस लौटे तो वही लोग जीत का जश्म मनाने सबसे आगे थे। ठीक इसी तरह चंद साल भले जब समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय महासचिच के. सी. त्यागी को मुज़्फ़्फ़रनगर टिकट के बाद पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया था तो शरद यादव ने सिर्फ उनको सहारा दिया बल्कि राजनीतिक तौर पर पूरा सहयोग दिया। लेकिन आज वही के.सी त्यागी तक शरद यादव से शायद इसलिए किनारा करते दिख रहे हैं कि उनको लग रहा है कि शरद यादव का बनबास का काल है। हांलाकि के.सी त्यागी निजी तौर पर आज भी शरद यादव को बेहद मानते और सम्मान करते हैं और राजनीतिक तौर पर उनसे हमदर्दी रखते हैं और उनके विरुद्ध कोई सख्त बात कहने से परहेज़ भी करते हैं।
दिलचस्प बात यह है कि जिस पार्टी के कभी शरद अध्यक्ष होते थे और जिस पार्टी में लाने और रखे जाने के फैसले शरद यादव लेते थे और उसही पार्टी से उनको बाहर का रास्ता दिखाया जा रहा है।
मौजूदा हालात ये हैं कि वरिष्ठ जेडीयू नेता शरद यादव अपने धड़े को ‘असली’ पार्टी के रूप में पेश करने की तैयारी में हैं। उनका दावा है कि कई राज्य इकाइयां उनके साथ हैं दरअसल नीतीश कुमार ने हाल ही में शरद यादव को जेडीयू महासचिव के पद से हटा दिया था। गौरतलब है कि शरद यादव के खेमे का कहना है कि नितीश कुमार ने जब अपने राजनीतिक दल समता पार्टी का जेडीयू में विलय किया था तो उस समय यादव पार्टी प्रमुख थे। ऐसे में माना जा रहा है कि यादव पार्टी नहीं छोड़ेंगे। शरद का गुट का कहना है कि खुद नीतीश कुमार तक मानते हैं कि पार्टी का अस्तित्व बिहार से बाहर नहीं है। ऐसे में उनको बिहार के लिए नई पार्टी का गठन करना चाहिए। उनको जेडीयू पर कब्जा करने की कोशिश नहीं करनी चाहिए।
वैसे जेडीयू के 2 राज्यसभा सांसद अली अनवर अंसारी और वीरेंद्र कुमार भी नीतीश के बीजेपी के साथ जाने के फैसले से नाराज हैं और दोनों ही सांसदों को शरद यादव का समर्थक माना जा रहा है। उधर शरद यादव के खिलाफ सख़्त रुख अपनाते हुए नीतीश ने शुक्रवार को ही कहा दिया था कि शरद यादव अपना फैसला लेने के लिए स्वतंत्र हैं। जहां तक पार्टी की बात है तो वह पहले ही फैसला ले चुकी है। जबकि जेडीयू प्रवक्ता केसी त्यागी का कहना है कि शरद यादव ने एनडीए से बाहर जाने का रास्ता खुद चुन लिया है। हम ऐसी परिस्थिति से बचना चाहते हैं कि उनको निकाला जाए। के सी ने कहा कि वो एनडीए के खिलाफ बोल रहे हैं और आर जे डी लालू प्रसाद यादव की तारीफ कर रहे हैं।
कुल मिलाकर भले ही जनता दल में टूट और बिखराव का इतिहास पुराना रहा हो लेकिन इस बार जनता दल में फूट की वजह करप्शन और सही और गलत के गठबंधन की हो। लेकिन इस पूरे खेल में एक दूसरे पर उंगली उठाने वाला एक भी चेहरा बेदाग़ नज़र नहीं आ रहा। और तमाम विवादों के बीच जनहित और जनता का कोई मुद्दा भी सामनें नहीं है। ये अलग बात है कि जनता के नाम पर बने इस दल का नाम जनता जदल ज़रूर है।
(लेखक आज़ाद ख़ालिद टीवी पत्रकार हैं डीडी आंखों देखी, सहारा समय, इंडिया टीवी, वॉयस ऑफ इंडिया, इंडिया न्यूज़ सहित कई नेश्नल चैनलों में महत्वपूर्ण पदों पर कार्य कर चुके हैं।)