नई दिल्ली– न तो कोई हिंदु न ही मुसलामान, सिख, ईसाई ये चाहता है कि उसका कोई भाई या उसके समाज का कोई भी शख़्स आतंकी बने। क्योंकि आतंकी की गोली या बम हिंदू या मुसलमान को पहचान कर जान नहीं लेते।
वैसे भी किसी समाज और देश की सेहत और उसके संरक्षण के लिए ज़रूरी है कि वहां पर मौजूद क़ानून के रखवाले ईमानदारी से अपना कर्तव्य निभाते रहें। वैसे भी दुनियां, समाज और आम जनमानस के जीवन और अस्तित्व को बचाए और सुचारु रूप से चलाए रखने के लिए ही क़ानून की ज़रूरत होती है।
क़ानून की सबसे बड़ी विशेषता यही है कि उसकी नज़र में सभी बराबर हैं… किसी भी प्रकार का भेदभाव या विद्वेश क़ानून की नज़र में कभी नहीं होता। क़ानून की नज़र में कोई न छोटा न बड़ा… न कोई ख़ास होता है। लेकिन कभी कभी उसके पालनकर्ता अपनी ज़िम्मेदारी और कर्तव्य के पालन में कोताही कर जाते हैं। इतिहास गवाह कि क़ाननू के रखवालों की लापरवाही से ही समाज बिगड़े और तबाह हुए हैं। एक आदर्श राम राज की परिकल्पना में क़ानून के रखवालों की नज़र में सभी बराबर थे, और क़ानून के पालन में किसी को किसी भी प्रकार की तरजीह नहीं दी जा सकती है।
दरअस्ल इतना सब कुछ कहने और लिखने की आज एक ख़ास वजह है। यदि किसी के भाई का कोई मर्डर कर दे, या कोई किसी के घर में चोरी कर ले, और हत्यारा या चोर पीड़ित का कितना ही सगा क्यों न हो… उसकी यही चाहत और मांग रहती है कि दोषी को उसके किये की सज़ा मिलनी चाहिए… यानि क़ानूनी कार्रवाई के दौरान हर तरह के जज्बात और लगाव भी बेमानी हो जाते हैं। कुल मिलाकर क़ानून की असल आत्मा भी इसी सिंद्धात पर काम करती है, कि निर्दोश को राहत और दोषी को सज़ा मिलनी चाहिए ताकि पीड़ित को इंसाफ और समाज को सुरक्षा दी जा सके।
लेकिन पिछले कुछ दिनो से देखने में आ रहा है कि हमारे देश में क़ानून के कुछ रखवालों ने अपने मापदंड और पैमाने अपने हिसाब से ढाल लिए हैं। ये कोई शिकायत या किसी पर दोषारोपण नहीं बल्कि एक ज़रूरत है, जिस पर ध्यान दिया जाना ज़रूरी ताकि हमारा समाज और देश सुरक्षित और ख़ुशहाल रह सके।
अब बात करते हैं कुछ ऐसे ही मामलों की जिनकी वजह से लगता है कि हमारे यहां के क़ानून के कुछ रखवालों को अपना आत्ममंथन करने की ज़रूरत है। हाल ही में कोलकाता में जमातुल मुजाहिदीन बंगलादेश के किसी कथित आंतकी संघटन ने जगह जगह पोस्टर लगा कर पश्चिमी बंगाल में बम धमाकों की धमकी दी थी। इसके बाद पुलिस ने जिस व्यक्ति को गिरफ्तार किया था वो मुस्लिम न होकर हिंदु समाज का एक भाई निकला…. जिसका नाम अमिय सरकार था। यह ख़बर दो दिंसबर 2014 को स्टेट्समेन में प्रकाशित भी की गई थी।
हाल ही में राजस्थान के कई दर्जन मंत्रियों को मेल के द्वारा इंडियन मुजाहिदीन यानि आईएमम के नाम से राज्य को सीरियल धमाकों से दहलाने की धमकियां दी गईं। इस ख़बर को लेकर देशभर के मीडिया ने बेहद ज़ोर शोर से कवरेज की। पुलिस ने इस मामले में इंडियन मुजाहिदीन के खिलाफ बाक़ायदा एफआईआर तक दर्ज की थी। लेकिन जब राजस्थान एटीएस ने सुशील चौधरी नाम के शख़्स को गिरफ्तार किया और ये बात सामने आई कि सुशील चौधरी ने ही सीरियल धमाकों से राज्य को दहलाने वाले तमाम धमकी भरे ई-मेल भेजे थे, तो मीडिया के भी तेवर बदल गये और देश के कई कथित शुभचिंतकों ने भी चुप्पी साध ली।
दिंसबर 2014 में मुज़फ्फ़रनगर के कई हिंदु धार्मिक स्थलों में गाय के मांस डाले जाने और मुस्लिम धार्मिक स्थलों में भी विवादित मांस डालने और भड़काऊ और विवादित बयानों वाले पोस्टर लगाए जाने से पहले से ही सांप्रदायिक दंगे की मार झेल चुका शहर और वहां की जनता बेहद तनाव में थे। लेकिन जब पुलिस ने इस मामले में एक शख़्स को रंगे हाथों गिरफ्तार करने का दावा किया तो उसकी पहचान एक हिंदु युवक देशराज सिंह के तौर पर हुई, जो कथिततौर पर विश्व हिंदु परिषद का सक्रिय कार्यकर्ता बताया गया। यह ख़बर भी सरसरी तौर पर स्थानीय और राष्ट्रीय मीडिया में दिखाई गई।
ठीक इसी तरह बंगलोर में भी अबुल खान नाम के एक शख़्स ने बम धमाकों की ट्विटर पर धमकी दी तो पूरी मशीनरी हिल गई। लेकिन जब इस मामले से पर्दा हटा तो बंगलोर पुलिस के हाथ लगा एक ऐसा युवक जो अबुल खान न होकर एक हिंदु युवक था… जो मुस्लिम युवक की फर्जी आई डी बनाकर और फर्जी ट्विटर पेज बनाकर लोगों को धमका रहा था।
अब अगर पुलिस कार्रवाई की बात करें तो जो पुलिस इसी तरह के कई मामलों में पकड़े गये मुस्लिमों युवकों, उनके परिवार उनके रिश्तेदारों और आसपास तक के लोगों को कई कई साल के लिए सलाखों के पीछे धकेल चुकी थी …. उस ही पुलिस ने उन चारों घटनाओं में पकड़े गये फर्जी मुस्लिम नौजवानों के साथ क्या कार्रवाई की उसको सुनकर शायद हर कोई हैरान रह जाएगा। इन चारों के खिलाफ न तो कोई गंभीर अपराध में मामला दर्ज किया गया न ही इनसे उन लोगों के बारे में ही पूछा गया जिनके इशारे पर ये लोग समाज को डराने का खेल खेला गया। साथ ही न ही इन लोगों से पूछताछ इस बात की गई कि कहीं इन लोगों का किसी कथित हिंदु आंतकी संघटन से वाकई सम्बंध तो नहीं है। क्या ये लोग कथित आंतकी सरगना प्रज्ञा ठाकुर या फौज की तकनीक लीक करने वाले आतंकी मेजर कुलकर्णी से तो नहीं जुडे हैं। साथ ही क्या इन लोगों या इनको संरक्षण देने वालों में से किसी ने असीमानंद या किसी दूसरे से कथित आंतकी से ट्रेनिंग तो नहीं ली थी। सबसे बड़ा सवाल ये है कि क्या इस तरह के लोगों का भविष्य में बाबरी मस्जिद या मालेगांव या अजमेर ब्लास्ट जैसी कोई आंतकी वारदात करने का तो प्लान नहीं है।
बाहरहाल सबसे बड़ी राहत की बात यही है कि समय रहते पुलिस ने इन लोगों के नापाक मंसूबों को नाकाम कर दिया। लेकिन सुरक्षा ऐजेंसियों के लिए कई सवाल ऐसे हैं जिनका जवाब सामने आना बेहद ज़रूरी है।
इन लोगों को महज मानसिक बीमार या पागल करार देकर राहत देना उन लोगों को संरक्षण देने जैसा है जो बाबरी मस्जिद जैसी आंतकी वारदात को अंजाम देने में माहिर हैं। साथ ही कनून के रखवालों के लिए हर मुल्जिम से पूछताछ करना और आगे होने वाली वारदात को रोकना भी बेहद ज़रूरी है।
(लेखक आज़ाद ख़ालिद टीवी जर्नलिस्ट हैं, सहारा समय, इंडिया टीवी, वॉयस ऑफ इंडिया, इंडिया न्यूज़ सहित कई नेश्नल न्यूज़ चैनलों में महत्वपूर्ण पदों पर कार्य कर चुके हैं।)